लखनऊ: राजधानी के इंदिरानगर इलाके के एक बीडीएस छात्र ने अपने ही कमरे में आत्महत्या कर ली. यह खौफनाक कदम उठाने से पहले छात्र ने अपने दोस्तों को ऑनलाइन गेम खेलने के लिए नोटिफिकेशन भेजा था. जांच में सामने आया कि छात्र ऑनलाइन गेम खेलने का शौकीन था. इसी घटना से तीन दिन पहले राजधानी के ही बंथरा इलाके में ऑनलाइन गेम के शौकीन दसवीं के छात्र ने मोबाइल गेम में नुकसान के बाद आत्महत्या कर ली. एक हफ्ते में इन दो मौतों से हर कोई सिहर गया. खासकर वे मां-बाप जिनके बच्चे हर वक्त मोबाइल में अपना समय काटते हैं.
केस 1
इंदिरानगर इलाके के फरीदनगर स्वास्थ्य भवन में कार्यरत अंजना सिंह अपने बीडीएस की पढ़ाई कर रहे बेटे दिव्यांश (23) के साथ रहती थीं बीते रविवार को उनका बेटा यह कह कर अपने रूम में चला गया कि सुबह जल्दी उठा देना, कॉलेज जाना है. सुबह जब मां अपने बेटे को जगाने गई तो देखा कि उसकी लाश पड़ी हुई है. पुलिस जांच में सामने आया कि दिव्यांश ने जिस वक्त आत्महत्या की, उस दौरान उसके कान में ईयर फोन लगा हुआ था और रात को अपने रूम में जाकर अपने दोस्तों को ऑनलाइन गेम खेलने के लिए नोटिसिफिकेशन भेजा था. दिव्यांश ऑनलाइन गेम खेलने का शौकीन था.
केस 2
बंथरा में रहने वाले सिक्योरिटी गार्ड बृजेश कश्यप का बेटा शिवा दसवीं क्लास में पढ़ता था. ऑनलाइन क्लास के चलते ब्रजेश ने अपने बेटे के लिए एक स्मार्टफोन खरीदा था, लेकिन बेटा पढ़ाई से अधिक मोबाइल में ऑनलाइन गेम खेलता था. जानकारी के मुताबिक शिवा ने मोबाइल गेम खेलने के लिए अपने जानकारों से दस हजार रुपये उधार लिए थे, लेकिन उसने सारे पैसे गंवा दिए. अब पैसे चुकाने के लिए उसे कहीं से कोई मदद नहीं मिली तो उसने मौत को गले लगा लिया. ऑनलाइन गेम की वजह से जाने वाली ये दोनों मौतें कोई कोई पहली या दूसरी घटना नहीं है. बल्कि इससे पहले भी कई ऐसे मामले आ चुके हैं, जिसकी वजह से बच्चे और उनके मां बाप की जिंदगी बर्बाद हो चुकी है. ऐसे में सवाल है कि आखिर इस तरह के मोबाइल गेम पर क्यों अंकुश नहीं लगाया जाता है?
बच्चों को करते हैं टारगेट
साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे कहते हैं कि वैसे तो जो कोई भी स्मार्टफोन का इस्तेमाल करता है, उसके मोबाइल में कोई न कोई गेम होता ही है. खाली समय पर लोग वक्त काटने के लिए खेलते हैं, लेकिन बीते कुछ वर्षों में कई ऐसे ऑनलाइन गेम लॉन्च हुए हैं, जो किसी ड्रग्स से भी ज्यादा खतरनाक हैं. इन गेम को खेलने वाले इस कदर लती हो जाते हैं कि गेम के हर स्टेप को पार करने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं. कई बार तो बच्चे अपने पेरेंट्स के डेबिट, क्रेडिट या यूपीआई से पैसे ट्रांसफर कर देते हैं और पेरेंट्स को काफी समय के बाद पता चलता है. कभी गेम के चलते युवा अपराध तक करने के लिए तैयार रहते हैं अमित कहते हैं कि गेम बनाने वाली कंपनियां ऑनलाइन गेम को इस तरह से डिजाइन करती हैं कि पहले गेम के कुछ स्टेप फ्री में खेलने देते है और बाद में जब उसका नशा हो जाए तो हर स्टेप के लिए टास्क और पैसे बढ़ाते जाते हैं, जिससे युवा लंबे समय तक गेम खेलते रहते हैं.
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