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निर्माणाधीन 24 अस्पतालों की परियोजनाओं के लिए उपकरण, मशीनरी व मैन पावर की कोई योजना नहीं: उपराज्यपाल - LG VK Saxena on hospitals audit

LG VK Saxena on hospitals audit: उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने स्वास्थ्य विभाग में रिक्त पदों को लेकर समीक्षा बैठक की. इस दौरान यह तथ्य सामने आए कि दिल्ली में निर्माणाधीन 24 अस्पतालों की परियोजनाओं में स्वास्थ्यकर्मी, डॉक्टर और जरूरी उपकरणों की लागत और उनकी संख्या को शामिल नहीं किया गया है.

उपराज्यपाल वीके सक्सेना
उपराज्यपाल वीके सक्सेना (Etv Bharat)

By ETV Bharat Delhi Team

Published : Aug 22, 2024, 8:15 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली में निर्माणाधीन 24 अस्पतालों की परियोजनाओं को लेकर उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने गंभीर सवाल उठाए हैं. उपराज्यपाल के अनुसार इन अस्पतालों को चलाने के लिए 38,000 पदों की आवश्यकता होगी, यहां तक कि जब स्वास्थ्य और लोक निर्माण मंत्री ने इन अस्पतालों का निर्माण शुरू किया था, तब भी उनके द्वारा इन पदों को भरने की बात तो दूर, उन्हें सृजित करने का भी कोई प्रयास नहीं किया गया है.

उपराज्यपाल कार्यालय में स्वास्थ्य विभाग द्वारा दिए गए प्रेजेंटेशन के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में योजना की कमी और वित्तीय कुप्रबंधन के संबंध में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. निर्माणाधीन 24 अस्पतालों का सिविल वर्क उपकरण, मशीनरी व मैन पावर की कोई योजना बनाए बिना शुरू किया गया था. उपराज्यपाल ने कहा कि यह एक गलत योजना और गलत कल्पना वाली परियोजना का एक बड़ा उदाहरण है. जो आपराधिक उपेक्षा के समान है. इन अस्पतालों के लिए न तो मैनपावर को मंजूरी दी गई, न ही बेड, मशीनों और उपकरणों की आवश्यकता पर ध्यान दिया गया.

निर्माणाधीन और पुनर्निर्माण अस्पतालों की सूची (ETV BHARAT)

8,000 करोड़ रुपये का जिक्र नहीं:उपराज्यपाल के अनुसार, इन सबके लिए कोई बजटीय प्रावधान नहीं किया गया था. दिल्ली के लोग जिस चीज़ को देख रहे हैं, वह कंक्रीट के गोले का निर्माण है. इसमें कोई उपकरण, बिस्तर, ऑपरेशन थिएटर नहीं हैं. तकरीबन 8,000 करोड़ रुपये की लागत से अस्पतालों के नाम पर डॉक्टर, नर्स और कर्मचारियों की नियुक्ति को लेकर कोई जिक्र नहीं है.

"उपराज्यपाल कार्यालय फिर से भूल गया है कि दिल्ली सरकार का 'सेवा' विभाग पिछले 10 वर्षों से एलजी/केंद्र सरकार के नियंत्रण में है. एलजी साहब और उनका 'सेवा' विभाग स्वास्थ्य विभाग सहित दिल्ली सरकार के किसी भी विभाग में नए स्वीकृत पदों के निर्माण के लिए जिम्मेदार है और फिर यह एलजी का सेवा विभाग है जो आगामी और मौजूदा अस्पतालों के लिए अतिरिक्त डॉक्टरों, विशेषज्ञों और पैरामेडिक्स की भर्ती के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है. यह पूरी तरह से एलजी साहब के अधीन सेवा विभाग है जहां उन्हें आगामी अस्पतालों और अस्पताल ब्लॉकों के लिए डॉक्टरों, विशेषज्ञों और पैरामेडिकल स्टाफ के नए स्वीकृत पद सृजित करने थे." -सौरभ भारद्वाज, स्वास्थ्य मंत्री, दिल्ली सरकार

निर्माणाधीन और पुनर्निर्माण अस्पतालों की सूची (ETV Bharat)

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'अस्पतालों में मैन पावर को लेकर कोई योजना नहीं'दरअसल, आम आदमी पार्टी शासित दिल्ली सरकार ने 13 मौजूदा अस्पतालों को 'ब्राउन फील्ड' परियोजनाओं के रूप में पुनर्विकास करने, 04 नए अस्पतालों को 'ग्रीन फील्ड' परियोजनाओं के रूप में बनाने और 07 मौजूदा अस्पतालों को 'आईसीयू अस्पताल' के रूप में फिर से तैयार करने की कवायद की थी. वह भी कर्मचारियों की संख्या को ध्यान में रखे बिना. इन अस्पतालों में कितने मैन पावर की आवश्यकता होगी, कितने मशीनरी और उपकरण की आवश्यकता और उसके लिए कितना बजट चाहिए इसके बारे में कोई योजना नहीं बनाई गई है.

चिकित्सा कर्मचारियों के पद सृजित नहीं हुए हैं:कुल मिलाकर, निर्धारित समय से छह से सात साल पीछे चल रहे इन निर्माणाधीन अस्पतालों के लिए डॉक्टरों, पैरामेडिकल और तकनीकी कर्मचारियों की विभिन्न श्रेणियों में 37,691 अतिरिक्त पदों की आवश्यकता होगी. लेकिन अभी तक पद सृजित नहीं हुए हैं. इन 24 परियोजनाओं का टेंडर 2019-2021 के दौरान 3906.70 करोड़ रुपये की लागत से किया गया था. इन सभी को 06 महीने से 01 वर्ष के समय में पूरा किया जाना था, क्योंकि मुख्य रूप से प्रीफ़ैब सामग्री का उपयोग किया जाना था. हालाँकि, न केवल परियोजनाओं में देरी हुई है, बल्कि उन्हें पूरा करने के लिए अतिरिक्त 3800 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी, जिससे लागत में लगभग 100 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.

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चिकित्सा उपकरणों की लागत की अनदेखी:इसके अलावा, सभी परियोजनाएं पूरी होने पर फर्नीचर, चिकित्सा उपकरण आदि के लिए लगभग 5,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन करने की आवश्यकता होगी. इसके अलावा, इन अस्पतालों को चलाने के लिए प्रति वर्ष 4800 करोड़ रुपये की परिचालन लागत की आवश्यकता होगी. उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने यह देखकर आश्चर्य जताया कि इन लागतों को भी ध्यान में नहीं रखा गया, जबकि सरकार लगातार वर्षों से एक के बाद एक बजट पेश करती रही. ऐसा प्रतीत होता है कि उपरोक्त परियोजनाओं को जानबूझकर बिना किसी योजना के टेंडर किया गया था, जिसका एकमात्र उद्देश्य लोक निर्माण विभाग द्वारा इन्हें ठेकेदारों को सौंपना था.

गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2024-2025 के दौरान इन परियोजनाओं के लिए आवंटित पूरा बजट महज 400 करोड़ रुपये है. हालांकि, दिलचस्प बात यह है कि ठेकेदारों के पक्ष में मध्यस्थता मामलों को निपटाने के लिए आवश्यक राशि 600 करोड़ रुपये है. यह अलग वित्तीय अनियमितता की ओर इशारा करता है.

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