नई दिल्ली: दिल्ली में यमुना नदी की सफाई वर्षों से बड़ा मुद्दा है. कोई भी सरकार अभी तक यमुना की सफाई कराने में सफल नहीं हो पाई है. सरकारों ने कई तरह के प्लान यमुना सफाई के लिए बनाए, लेकिन कोई भी प्लान प्रभावी तरीके से जमीन पर नहीं उतर सका. इन्हीं उपायों में से एक उपाय था दिल्ली में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के जरिए यमुना में गिरने वाले गंदे नालों के पानी को साफ करने का. सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट द्वारा गंदे नालों के पानी को साफ करके इसका इस्तेमाल सिंचाई, झीलों को भरने और अन्य तरह के प्रयोग में लाकर उसे यमुना में गिरने से रोकना था. लेकिन यह सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी यमुना की गंदगी को कम करने में ज्यादा असरदार साबित नहीं हुए.
रिसर्च करने वाली संस्थाओं से मांगे प्रपोजल:शुरू में 10 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए. उसके बाद धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ाकर 37 कर दी गई. फिर भी यमुना का पानी साफ नहीं हुआ. अब दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल कमिटी ने इस बात पर शोध कराने का निर्णय लिया है कि आखिर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के इस्तेमाल से यमुना में कितनी गंदगी कम हुई है. क्या यमुना के पानी में गंदे नालों का पानी न गिरने से कुछ कमी आई है. क्या सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता को और बढ़ाने की जरूरत है. इनकी क्षमता को बढ़ाने से क्या यमुना में साफ पानी देखने को मिलेगा. इसको लेकर डीपीसीसी ने रिसर्च करने वाली संस्थाओं से रिसर्च प्रपोजल मांगे हैं.
यमुना के पानी की शुद्धता: यमुना की सफाई और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के असर के शोध को लेकर दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल कमेटी के सदस्य डॉक्टर अनिल गुप्ता ने बताया कि दिल्ली में यमुना का प्रवेश बिंदु पल्ला है और निकास बिंदु असगरपुर है. अगर हम प्रवेश और निकास बिंदु के बीच यमुना के पानी की शुद्धता की बात करें, तो जब यमुना दिल्ली में प्रवेश करती है तो कम प्रदूषित पानी के पांचों मानक लगभग पूरे होते हैं. जब वह दिल्ली के एरिया को छोड़कर यूपी की सीमा में प्रवेश करती है तो उस पानी में जीवन लगभग खत्म हो जाता है. यमुना मृतप्राय हो जाती है. उसका पानी किसी काम का नहीं रहता. उसमें मल मूत्र की मात्रा इतनी अधिक बढ़ जाती है, जो उसकी लिमिट का मानक को पार कर जाता है. उन्होंने कहा कि दिल्ली जल बोर्ड की तरफ से संचालित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बहुत ज्यादा कारगर साबित नहीं हो रहे हैं. इनको कारगर कैसे बनाया जाए, इसके लिए शोध पर विचार किया गया है.
डीपीसीसी की रिपोर्ट में 37 में से 21 एसटीपी फेलःडॉ. अनिल गुप्ता ने बताया कि डीपीसीसी की अगस्त की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में लगे 37 एसटीपी में से 21 मानकों के अनुरूप नहीं थे. 21 एसटीपी द्वारा शोधित पानी का टीएसएस (टोटल सस्पेंडेड सॉलिड), बीओडी (बायोलॉजिकल ऑक्सिजन डिमांड), सीओडी (केमिकल ऑक्सिजन डिमांड), फीकल कोलीफॉम (अनट्रीटेड सीवरेज की मौजूदगी) जैसे मानकों पर खरे नहीं उतरे. डीपीसीसी के अनुसार, जो सरकारी संस्थान पर्यावरण की फील्ड में काम करते हैं और इस स्टडी के इच्छुक है, वह 15 दिनों में अपना प्रपोजल, तरीका और अनुमानित लागत की पूरी डीटेल डीपीसीसी को भेज दें.