नई दिल्ली: भारत के गली कूचों में खेले जाने वाले क्रिकेट को एक एहसास और धर्म में बदलने की शुरुआत कहां से हुई होगी? जेहन में सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर, कपिल देव, विराट कोहली जैसे दिग्गजों का नाम आता है. इन खिलाड़ियों को देखकर युवा पीढ़ी को प्रेरणा मिलती रही है. लेकिन इन खिलाड़ियों ने इस खेल की शुरुआत नहीं की थी. सब जानते हैं अंग्रेजों ने क्रिकेट की शुरुआत की थी लेकिन 'भारतीय क्रिकेट का पिता' कौन था, जिसके खेलने के निराले अंदाज पर गोरे भी फिदा थे. वह खिलाड़ी जिसने इस खेल में गोरे रंग का तिलिस्म तोड़कर अपनी पहचान बनाई और भारत में हजारों लोगों को क्रिकेट खेलने की प्रेरणा दी. यह थे रणजीत सिंह कुमार, जिनके ऊपर रणजी ट्रॉफी का नाम पड़ा था.
कौन हैं रणजीत सिंह कुमार
आप भारतीय क्रिकेट की शुरुआत पर नजर डालते हैं तो उस वक्त यह खेल महाराज, राजकुमार, नवाबों में बड़ा मशहूर था. क्रिकेट की प्रकृति तब ऐसी ही थी. रणजीत सिंह उस जमाने के बेस्ट क्रिकेटर माने जाते थे. 10 सितंबर, 1872 को उनका जन्म भले ही एक किसान पिता के यहां हुआ लेकिन उनका परिवार नवानगर के राजसी शासक विभा सिंह से संबंधित था. एक ऐसी विरासत, रणजीत सिंह जिसके उत्तराधिकारी 1878 में बन गए थे. वह आगे चलकर अपनी रियासत के राजा भी बने, लेकिन इससे पहले वह एक ऐसे क्रिकेटर थे जिसकी कला, उपलब्धि और शख्सियत एक राजा की छवि को ढक देती है.
क्रिकेट की शुरुआत उनके बचपन में हो चुकी थी जिसने रफ्तार पकड़ी इंग्लैंड में. 1888 में 16 साल की उम्र में उनका दाखिला कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में कर दिया गया था, जहां से उनकी जिंदगी एक नया मोड़ लेने वाली थी. यहां अपनी पढ़ाई के दौरान उन्होंने लोकल क्रिकेट मैच देखे. इन मैचों के प्रति लोगों की भीड़ के उत्साह ने उनके मन में क्रिकेट के प्रति अलग ही रोमांच पैदा कर किया था.
रंगभेद का करना पड़ा था सामना
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी टीम के साथ शुरू हुआ उनका क्रिकेट सफर, ससेक्स और लंदन काउंटी के साथ खेलने में गुजरा और फिर 1896 में उनको इंग्लैंड क्रिकेट टीम में चुन लिया गया. तब ऑस्ट्रेलिया की टीम एशेज टेस्ट मैच खेलने के लिए इंग्लैंड में आई थी. लेकिन यह सफर इतना आसान नहीं था. क्रिकेट में तब गोरों का राज था और सांवले रंग के रणजीत सिंह को अपने रंग के कारण कई बार चुनौतियों का सामना करना पड़ा. एंथनी बेटमैन की पुस्तक 'क्रिकेट, लिटरेचर एंड कल्चर: सिंबलाइजिंग द नेशन, डिस्टैबिलाइजिंग एम्पायर' में इस बात का जिक्र है कैसे टीम में चुने जाने के बावजूद रणजीत सिंह को रंगभेद के चलते पहला टेस्ट मैच खेलने का मौका नहीं मिला था.