मेलबर्न :ऑस्ट्रेलिया बनाम भारत, बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफ़ी , मेलबर्न का ऐतिहासिक मैदान. ये शब्द क्रिकेट की दुनिया में बहुत अहमियत रखते हैं. ऐसे में अगर एक 19 वर्षीय लड़के (सैम कोंस्टास) को 90000 दर्शकों के सामने अपना पहला टेस्ट खेलने का मौक़ा मिले तो शायद एक बार के लिए रोंगटे खड़े हो जाएं. और जब आप उस टीम के सदस्य बनने जा रहे हैं, जिसने पिछले दस साल से सीरीज़ में हार का सामना किया है तो दबाव का चरम पर होना आम बात है.
हालांकि ऑस्ट्रेलिया के कप्तान पैट कमिंस ने कोंस्टास को भारत के ख़िलाफ़ बॉक्सिंग डे टेस्ट में अपने डेब्यू के दौरान युवावस्था की मासूमियत को बरक़रार रखने के लिए प्रोत्साहित किया है.
कमिंस इतनी सहजता के साथ इतनी कारगर बात को इसलिए कह पा रहे हैं, क्योंकि उन्होंने ख़ुद इस दबाव का सामना किया था. और उस अनुभव के साथ एक युवा को अपनी मासूमियत और साहस को बरकरार रखने की बात की जा रही है. कमिंस ने 2011 में दक्षिण अफ़्रीका के ख़िलाफ सिर्फ 18 साल की उम्र में डेब्यू किया था. उस वक़्त वह ऐसा करते हुए, ऑस्ट्रेलिया के दूसरे सबसे युवा टेस्ट क्रिकेटर बने थे. सिर्फ़ तीन प्रथम श्रेणी मैचों के बाद ही उन्हें अंतर्राष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेटर का तमगा दे दिया गया था.
उन्हें जोहान्सबर्ग में प्लेयर ऑफ द मैच चुना गया था. उस मैच में उन्होंने 79 रन देकर 6 विकेट लिए थे और विजयी रन भी बनाए थे. सबसे कम उम्र में डेब्यू करने के मामले में कोंस्टास का नाम चौथे नंबर पर आएगा और यह उनका 12वां प्रथम श्रेणी मैच होगा.
कमिंस ने अपने टेस्ट डेब्यू को याद करते हुए कहा कि उनके पास काफ़ी कम अनुभव था और उनकी उम्र भी कम थी. इस कारण से उन पर ज़्यादा दबाव नहीं था. उन्होंने कहा, "मैंने हाल ही में सैम से कहा था, 'मुझे याद है जब मैं 18 साल का था तो मैं सोच रहा था कि मुझ पर काफ़ी कम दबाव था क्योंकि मैं युवा था. मैं तब यह सोच रहा था कि अगर मैं उस मैच में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाता तो वह मेरी गलती नहीं होती. यह चयनकर्ताओं की गलती होती, जिन्होंने मुझे टीम में चयनित किया. तुम बहुत युवा हो और बॉक्सिंग डे टेस्ट जैसे मंच में तुम्हें डेब्यू करने का मौक़ा मिल रहा है. तुम्हें ज़्यादा कुछ नहीं सोचते हुए, इस पल का आनंद लेना है'.