हैदराबाद: सनातन धर्म में माघ महीने में पड़ने वाले सभी त्योहारों खासकर सकट चौथ 2025 का विशेष महत्व है. इस व्रत में प्रथम पूजनीय भगवान गणेश की पूजा की जाती है. इस दिन महिलाएं अपनी संतान के लिए व्रत रखती हैं. ऐसी मान्यता है कि इस व्रत से संतान को लंबी उम्र का वरदान मिलता है. आइये विस्तार से जानते हैं संकष्टी चतुर्थी के व्रत के बारे में.
लखनऊ के सिद्धिविनायक ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र के ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्र ने बताया कि महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं. शाम को भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा करके और चंद्र दर्शन करके व्रत खोलती हैं. उन्होंने कहा कि इस बार संकष्टी चतुर्थी का व्रत 17 जनवरी 2025 को रखा जाएगा. इसे सकट चौथ, वक्रतुंडी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ के नाम से भी जाना जाता है. यह व्रत हर महीने आता है, लेकिन माघ महीने में पड़ने वाले सकट की महिमा सबसे ज्यादा है.
व्रत करने से मिलेगा आशीर्वाद
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि सकट चौथ के व्रत से संतान संबंधी परेशानियों का अंत होता है. भक्तों को सौभाग्य और समृद्धि का वरदान भी मिलता है. इस दिन व्रत रखने से पूरे साल अनंत सुख, धन, सफलता और समृद्धि आती है.
संकष्ट चतुर्थी की तिथि का आरंभ
उन्होंने बताया कि चतुर्थी तिथि का आरंभ शुक्रवार 17 जनवरी 2025 प्रातः 4 बजकर 10 मिनट पर होगा, जो शनिवार 18 जनवरी 2025, प्रातः 5 बजकर 17 मिनट तक जारी रहेगा.
संकष्टी चतुर्थी का महत्व
डॉ. उमाशंकर मिश्र ने बताया कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश की कृपा पाने के लिए अत्यंत शुभ माना गया है. इस दिन की पूजा से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है, और घर में सुख-शांति का वातावरण बनता है. इस व्रत को रखने से न केवल संकटों से मुक्ति मिलती है, बल्कि यह व्यक्ति के जीवन को सुख, शांति और समृद्धि से भर देता है.
संकष्ट चौथ व्रत 2025 क्यों किया जाता है
सकट चौथ का दिन भगवान गणेश और सकट माता को समर्पित है. इस दिन माताएं अपने पुत्रों के कल्याण की कामना से व्रत रखती हैं. सकट चौथ के दिन भगवान गणेश की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है. इस पूरे दिन व्रत रखा जाता है. रात्रि में चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है. यही कारण है कि सकट चौथ पर चंद्रमा दर्शन और पूजन का विशेष महत्व होता है. इस दिन गणपति जी को पूजा में तिल के लड्डू या मिठाई अर्पित करते हैं, साथ में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत पारण करते हैं.
संकष्ट चौथ की पूजा विधि
- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाएं.
- इसके बाद सकट चौथ व्रत रखने का संकल्प करें.
- एक लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर गणेश जी और सकट माता की प्रतिमा की स्थापना करें.
- सिंदूर का तिलक लगाएं. घी का दीपक जलाएं.
- भगवान गणेश की प्रतिमा पर फूल, फल और मिठाइयां अर्पित करें.
- पूजा में तिलकुट का भोग जरूर शामिल करें.
- गणेश चालीसा का पाठ करें. अंत में बप्पा की आरती करें.
- शंखनाद से पूजा पूर्ण करें.
- प्रसाद खाकर अपने व्रत का पारण करें.
जानें क्या है व्रत कथा
ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्र के मुताबिक इस दिन विघ्न विनाशक ने अपने जीवन के सबसे बड़े संकट से मुक्ति पाई थी. इस वजह से इसे सकट चौथ कहा जाता है. मान्यताओं के मुताबिक एक बार गणेश भगवान की मां माता पार्वती स्नान के लिए गईं तो उन्होंने पहरा देने के लिए भगवान गणेश को द्वार पर खड़ा कर दिया और आदेश देते हुए कहा कि कोई भी अंदर ना आने पाए. इसके बाद वह स्नान करने चली गईं. कुछ देर के बाद भगवान गणेश के पिता और माता पार्वती के पति भोलेनाथ आए और अंदर जाने लगे. गणेशजी ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया और कहा कि किसी को भी अंदर जाने की आज्ञा नहीं है. इस बात को लेकर पिता-पुत्र दोनों में विवाद हो गया. इसपर भगवान शिव क्रोधित हो गए और त्रिशूल से भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया. जब मां पार्वती स्नान करके बाहर आईं तो उन्होंने देखा कि उनके बेटे का यह हाल हो गया है. उनका रो-रोकर बुरा हाल हो गया. वे शिवजी से नाराज होकर बोलीं कि मुझे मेरा बेटा जीवित चाहिए.
बहुत ज्यादा जिद करने पर शिवजी ने गणेशजी के सिर के स्थान पर एक हाथी का सिर लगा दिया. तभी से उन्हें गजानन कहा जाने लगा. इसके साथ ही उन्हें वरदान मिला कि देवताओं में सबसे पहले उनकी ही पूजा की जाएगा. ऐशी मान्यता है कि संकष्टी चतर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा करने से सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं.