दिल्ली

delhi

ETV Bharat / spiritual

Pitra Paksha 2024: श्राद्ध करते समय ध्यान रखें ये जरूरी बातें, वरना भुगतने पड़ेंगे परिणाम - Pitra Paksha 2024

Pitra Paksha 2024: हिंदू धर्म में श्राद्ध के विभिन्न प्रकार बताए गए हैं. वहीं, जीवन में कामनाओं की पूर्ति के लिए भी श्राद्ध के कई रूप हैं. ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्र के मुताबिक केवल पितृ पक्ष में ही नहीं बल्कि अन्य अवसरों तथा विवाह के समय भी पितरों के श्राद्ध किए जाते हैं.

PITRA PAKSHA 2024
श्राद्ध में ध्यान रखने योग्य बातें (ETV Bharat)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 24, 2024, 8:54 AM IST

Updated : Sep 24, 2024, 9:07 AM IST

हैदराबाद: हिंदू शास्त्र में श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं. ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है. वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है. पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है. इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है.

लखनऊ के ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्र ने बताया कि श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए. पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं. धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है.

उन्होंने कहा कि श्राद्ध में पितरों को यह आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे. इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं. यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है.

ज्योतिषाचार्य ने कहा कि श्राद्ध से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं. मगर ये बातें श्राद्ध करने से पूर्व जान लेना बहुत जरूरी है क्योंकि कई बार विधिपूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भी दे देते हैं.

  1. श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए. यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं. दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए.
  2. श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है. पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिए जाए तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है. पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है.
  3. श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं.
  4. ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं जब तक ब्राह्मण मौन रहकर भोजन करें.
  5. जो पितृ शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए. इससे वे प्रसन्न होते हैं. श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए. पिंडदान पर साधारण या नीच मनुष्यों की दृष्टि पहने से वह पितरों को नहीं पहुंचता.
  6. श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते, श्राप देकर लौट जाते हैं. ब्राह्मण हीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है.
  7. श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है. तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है. वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं. कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाते हैं.
  8. दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए. वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है. अत: इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है.
  9. चाहे मनुष्य देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है.
  10. जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहनी वाली अपनी बहिन, जमाई और भानजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते.
  11. श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए. जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याचक को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है.
  12. शुक्लपक्ष में, रात्रि में, युग्म दिनों (एक ही दिन दो तिथियों का योग) में तथा अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए. धर्म ग्रंथों के अनुसार सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है, यह समय सभी कार्यों के लिए निंदित है. अत: शाम के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए.
  13. श्राद्ध में प्रसन्न पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष और स्वर्ग प्रदान करते हैं. श्राद्ध के लिए शुक्लपक्ष की अपेक्षा कृष्णपक्ष श्रेष्ठ माना गया है.
  14. रात्रि को राक्षसी समय माना गया है. अत: रात में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए. दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए. दिन के आठवें मुहूर्त (कुतपकाल) में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है.
  15. श्राद्ध में ये चीजें होना महत्वपूर्ण हैं- गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल. केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है. सोने, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है.
  16. तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं. ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णु लोक को चले जाते हैं. तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं.
  17. रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं. आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए.
  18. चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं.
  19. भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं- 1- नित्य, 2- नैमित्तिक, 3- काम्य, 4- वृद्धि, 5- सपिण्डन, 6- पार्वण, 7- गोष्ठी, 8- शुद्धर्थ, 9- कर्मांग, 10- दैविक, 11- यात्रार्थ, 12- पुष्टयर्थ
  20. श्राद्ध के प्रमुख अंग इस प्रकार हैं-तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने के लिए दिया जाता है. श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है. भोजन व पिण्ड दान- पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है. श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिण्ड दान भी किए जाते हैं. वस्त्रदान- वस्त्र दान देना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है. दक्षिणा दान- यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता.
  21. श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें. श्राद्ध के दिन भोजन के लिए आए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं.
  22. पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है. इसलिए ब्राह्मणों को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें.
  23. तैयार भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें. इसके बाद हाथ जल, अक्षत यानी चावल, चन्दन, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें.
  24. कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं. इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं. पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं.
  25. ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं. ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं.
  26. पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए. पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है. पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिंडों ( एक ही परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए. एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है.

पढ़ें:जीवन में कामनाओं को पूरा करने के लिए किए जाते हैं विभिन्न प्रकार के श्राद्ध, जानिए कैसे

Last Updated : Sep 24, 2024, 9:07 AM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details