नई दिल्ली:27 जुलाई को हिजबुल्लाह ने गोलान हाइट्स के मजदल शम्स नामक ड्रूज शहर पर रॉकेट हमले किए थे. इस हमले में 12 बच्चों की मौत हो गई थी. इसके बाद इजराइल ने बेरूत के दक्षिणी उपनगरों में हमला कर हिजबुल्लाह के शीर्ष कमांडर फौद शुक्र को निशाना बनाया, जिसने गाजा युद्ध के समानांतर लेबनान की दक्षिणी सीमा पर जवाबी हमले की धमकी दी थी. इतना ही नहीं इजराइल ने ईरानी राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने पहुंचे हमास के नेता इस्माइल हनिया को भी मार गिराया.
ईरान और उसके एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस, जिसमें फिलिस्तीन, इराक, लेबनान, यमन और सीरिया के आतंकवादी समूह शामिल हैं, को एक और गंभीर झटका देते हुए इजराइल ने घोषणा की है कि उसने 13 जुलाई को हवाई हमले में अल-अक्सा फ्लड ऑपरेशन (7 अक्टूबर के हमले) के योजना बनाने वाले, हमास के शीर्ष सैन्य कमांडर मोहम्मद दीफ को मार गिराया.
इन लक्षित हत्याओं के बाद इजराइल और ईरान के बीच एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस 40 साल पुरानी दुश्मनी के एक नए चरण में प्रवेश कर गई है. वर्तमान में, एक प्रमुख नेता की मौत का हमास पर क्या प्रभाव पड़ेगा? ईरान और अन्य प्रॉक्सी समूह किस तरह से जवाबी कार्रवाई की धमकियां देंगे? भविष्य में इजराइल और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) इस खतरे का किस तरह से जवाब देंगे, इसको लेकर पूरी दुनिया परेशान है.
हमास के प्रमुख नेता बने हनिया
2017 में जब से हनिया हमास के राजनीतिक ब्यूरो के अध्यक्ष बने, तब से वे एक रणनीतिक योजनाकार, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर हमास की बढ़ती ताकत को नियंत्रित करने वाले एक प्रमुख नेता रहे और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने 7 अक्टूबर के बाद तुर्की, चीन और रूस से संपर्क करके हमास के लिए समर्थन जुटाया. उन्होंने हमास द्वारा बंधक बनाए गए लोगों की रिहाई के लिए बातचीत में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
ऐसे में उनकी मौत हमास के लिए एक बड़ा झटका है. वास्तव में, हनिया की हत्या से हमास की वैचारिक या संचालन क्षमताओं को नुकसान नहीं होने वाला है, लेकिन यह एक मोमेंट्री विराम पैदा कर सकता है. हमास के नेतृत्व ने 2004 में हमास आंदोलन के संस्थापक अहमद यासीन और अब्देल अजीज-अल-रंतिसी की हत्या देखी, लेकिन हमास को जड़ से खत्म नहीं किया गया, बल्कि यह समूह और भी मजबूत हो गया.
अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीतिक रणनीतिकारों का मानना है कि हमास याह्या सिनवार के नेतृत्व में एक आंदोलन के रूप में बना रहेगा, जिन्होंने हमास को 7 अक्टूबर को इजराइल पर हमला करने वाले लड़ाकों की 24 बटालियनों में पूरी तरह से बदल दिया था.
ईरान सीधा युद्ध नहीं चाहता
इससे पहले ईरान सीधा युद्ध नहीं करना चाहता था बल्कि एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस की सहायता से प्रोक्सी युद्ध को लंबा खींचना चाहता था, लेकिन अपने क्षेत्र में हनिया की हत्या ईरानी सिक्योरिटी सर्विस के लिए शर्मिंदगी की बात है. ऐसे में अगर ईरान निकट भविष्य में सीधे तौर पर जंग में शामिल हो जाता है, तो संघर्ष एक क्षेत्रीय युद्ध में बदल जाएगा.
ईरान ने अपनी 'यूनिटी ऑफ द एरेना' रणनीति के माध्यम से पहले ही इजराइल को मिसाइलों और ड्रोन से घेर लिया है, जिसमें इजराइल के खिलाफ एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस द्वारा संयुक्त सैन्य अभियान शामिल है. अगर ईरान अपने प्रॉक्सी द्वारा इजराइल पर एक साथ बमबारी करने का फैसला करता है, तो यह संभवतः बहुत विनाशकारी होगा और इजराइल की तरफ से अमेरिका युद्ध में आएगा, जिसे इजराइल चाहता है.
इसके अलावा, इजराइल -हमास युद्ध के बाद अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रियाल की गिरावट के कारण ईरान की अर्थव्यवस्था कमजोर है. नतीजतन, सीधे युद्ध में शामिल होकर जटिल होना ईरान के हित में नहीं है, लेकिन, इसकी रणनीति पूर्ण पैमाने पर युद्ध के बजाय, अमेरिका की सीधी भागीदारी से बचने के लिए और प्रॉक्सी के जरिए संघर्ष जारी रखना है.
क्या विकल्प चुन सकते हैं ईरान और उसके प्रॉक्सी?
ईरान और इसके समर्थित प्रतिरोध एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस जिसमें हमास, लेबनान का हिजबुल्लाह, यमन का हौथी, कताइब हिजबुल्लाह, इराक में इस्लामी प्रतिरोध, इराक में शियाओं की 47वीं पॉपुलर मोबिलाइजेशन यूनिट ब्रिगेड (पीएमयू) और इराक और सीरिया में विभिन्न शिया सशस्त्र समूह शामिल हैं, अन्य विकल्प चुन सकते हैं. जैसे हमास द्वारा इजरायल के ओटेफ अजा क्षेत्र में बस्तियों और सैन्य ठिकानों पर हमले, इराक में इस्लामी रजिस्टेंट द्वारा इराक की सीमा के पास पूर्वी सीरिया में अल-तन्फ, अल-रुकबान और अल-मलिकिया नामक अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर हमले, सीरिया के सशस्त्र समूहों द्वारा गोलान हाइट्स में इजराइल बस्तियों पर हमला.