नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के अपने आगामी तीन देशों के दौरे के तीसरे और अंतिम चरण में गुयाना का दौरा करेंगे. इस दौरान वह 19 से 21 नवंबर तक वहीं रहेंगे. यह आधी सदी से भी ज्यादा समय में भारत की ओर से दक्षिण अमेरिकी देश की पहली प्रधानमंत्री यात्रा होगी. पीएम मोदी की यह यात्रा दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय आदान-प्रदान में वृद्धि और हाल के दिनों में कैरिबियन में नई दिल्ली की बढ़ती मौजूदगी को दर्शाती है.
पिछले साल जनवरी में गुयाना के राष्ट्रपति मोहम्मद इरफान अली प्रवासी भारतीय दिवस में मुख्य अतिथि थे, जो प्रवासी भारतीयों के लिए भारत सरकार का प्रमुख कार्यक्रम है. वहीं, अगले महीने उपराष्ट्रपति भारत जगदेव भारत आए. इस साल फरवरी में प्रधानमंत्री मार्क फिलिप्स भी भारत आए थे. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पिछले साल अप्रैल में गुयाना का दौरा किया था और उस समय पूरे नेतृत्व से मुलाकात की थी.
डायस्पोरा कॉन्टेक्स्ट
गुयाना के इस क्षेत्र में भारत के एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में उभरने का एक प्रमुख कारण वहां बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीयों की मौजूदगी है, जहां देश की लगभग 40 प्रतिशत आबादी भारतीय मूल की है. भारतीयों को पहली बार 1838 में गिरमिटिया मजदूर के रूप में गुयाना ले जाया गया था. यानी वहां करीब 180 साल से भी ज्यादा समय से भारतीय नागरिक रह रहे हैं.
नई दिल्ली स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ साइंसेज (ISS) के निदेशक ऐश नारायण रॉय ने ईटीवी भारत से बात करते हुए प्रवासी भारतीयों के संदर्भ में मोदी की गुयाना यात्रा के बारे में विस्तार से बताया.
रॉय ने बताया, "भारत और कैरिबियन हमेशा से ही बहुत करीब रहे हैं, क्योंकि यहां बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी रहते हैं, खास तौर पर गुयाना, सूरीनाम और त्रिनिदाद और टोबैगो में. इन देशों में रहने वाले ज़्यादातर भारतीय मूल के लोगों को अंग्रेज उत्तर प्रदेश और बिहार के भोजपुरी भाषी क्षेत्रों से लाए थे. उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत की बदौलत, तमाम मुश्किलों के बावजूद, वे ग्रामीण कृषि क्षेत्र, खास तौर पर गन्ने की खेती में योगदान दिया."
उन्होंने कहा कि जब अंग्रेजों को लगा कि दुनियाभर में चीनी का बहुत बड़ा बाजार है, तो उन्होंने सबसे पहले अफ्रीका से मजदूरों को बुलाया. हालांकि, अफ्रीकी मजदूरों के पास कृषि में विशेषज्ञता नहीं थी. तभी अंग्रेजों ने भारतीयों को गिरमिटिया मजदूर के तौर पर लेने का फैसला किया.
रॉय ने कहा, "भारतीयों के पास न केवल अर्थव्यवस्था में योगदान देने बल्कि अपनी संस्कृति को संरक्षित करने का ज्ञान और क्षमता थी. हिंदू और मुसलमान दोनों को भारत से ले जाया गया और वे आज भी दिवाली और ईद जैसे अपने त्यौहार मनाते हैं." उन्होंने कहा कि संस्कृति, धर्म, कला और संगीत जैसी भारत की सॉफ्ट पॉवर इन प्रवासी संबंधों को बहुत मजबूत बनाती है.
सांस्कृतिक कूटनीति पर भारत के जोर में भारतीय सांस्कृतिक कार्यक्रमों, गुयाना के छात्रों के लिए स्कॉलर्शिप और एजुकेशनल प्रोग्राम में सहयोग के माध्यम से संबंधों को मजबूत करना शामिल है. गुयाना के भारतीय समुदाय का भारतीय परंपराओं से गहरा संबंध है, जिससे सांस्कृतिक और शैक्षिक कार्यक्रम विशेष रूप से प्रभावशाली बनते हैं. अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रपति इरफान अली के साथ प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता करेंगे. वह गुयाना की नेशनल असेंबली के साथ-साथ भारतीय प्रवासियों को भी संबोधित करेंगे.
भारतीय प्रवासियों से जुड़ने का मौका
मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के रिसर्च फेलो सौरभ मिश्रा ने ईटीवी भारत को बताया, "प्रधानमंत्री की गुयाना यात्रा विदेश में भारतीय प्रवासियों से जुड़ने और इससे लाभ उठाने की मौजूदा सरकार की नीति के अनुरूप है."
मिश्रा ने कहा कि भारत और गुयाना दोनों ही लोकतांत्रिक देश हैं. उन्होंने कहा, "गुयाना में एक्टिव लोकतंत्र और मजबूत नागरिक समाज है. गुयाना के लिए मुख्य चिंताएं पर्यावरण संबंधी मुद्दे और जातीयता से संबंधित कुछ सामाजिक तनाव हैं."
मिश्रा ने कहा, "गुयाना में कई ऐसे क्षेत्र हैं जो समुद्र तल से नीचे हैं. ऐसे में बढ़ते समुद्र स्तर के संदर्भ में वैश्विक मंचों पर साझा दृष्टिकोण तैयार करने की संभावनाएं हैं."
एनर्जी सिक्योरिटी
गुयाना के इस क्षेत्र में भारत के लिए एक महत्वपूर्ण पार्टनर के रूप में उभरने का एक और कारण तेल और गैस के महत्वपूर्ण भंडारों की खोज है. विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव जयदीप मजूमदार ने बुधवार को प्रधानमंत्री की आगामी तीन देशों की यात्रा के बारे में मीडिया ब्रीफिंग के दौरान कहा, "जैसा कि आप जानते हैं कि गुयाना तेल और गैस की प्रमुख खोज के साथ आर्थिक और विकासात्मक परिवर्तन के शिखर पर है." इस यात्रा के बाद वह नाइजीरिया और ब्राजील भी जाएंगे. हमें हाइड्रोकार्बन सहित कई क्षेत्रों में उनके साथ साझेदारी करने की उम्मीद है.