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म्यांमार: संघर्ष के चलते कलादान परियोजन का काम रुका, भारत के सामने खड़ी हुई यह चुनौती - Myanmar Conflict

Myanmar Conflict: म्यांमार के रखाइन और चिन प्रांतों में जुंटा सेना और विद्रोही समूह अराकान सेना के बीच संघर्ष बढ़ गया है. जिसके कारण महत्वपूर्ण कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट का काम पूरी तरह से रुक गया है. इस कारण भारत सरकार म्यांमार में संघर्षरत दोनों पक्षों के साथ संपर्क बनाए रखने के लिए दोहरी रणनीति अपना रही है. पढ़ें विशेष रिपोर्ट.

Myanmar Conflict
म्यांमार संघर्ष

By Aroonim Bhuyan

Published : Apr 7, 2024, 4:15 PM IST

Updated : Apr 7, 2024, 4:29 PM IST

नई दिल्ली: म्यांमार में जुंटा सेना और विद्रोही सशस्त्र गुट के बीच संघर्ष बढ़ गया है. जिसके कारण महत्वपूर्ण कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट (केएमटीटीपी) का काम रुक गया है. इन सबके बीच भारत अपने पूर्वी पड़ोसी देश में अपने हितों की रक्षा के लिए नाप-तौल कर कदम उठा रहा है. केएमटीटीपी परियोजना पश्चिम बंगाल में हल्दिया बंदरगाह को म्यांमार में सितवे बंदरगाह (Sittwe Port) से जोड़ती है, जिसे भारत के वित्त-पोषण से बनाया गया था. यह गलियारा कलादान नदी नाव मार्ग के जरिये सितवे को म्यांमार के चिन प्रांत में पलेतवा शहर से जोड़ता है. जबकि पलेतवा सड़क मार्ग से मिजोरम से जुड़ा हुआ है. निर्माणाधीन जोरिनपुई-पलेतवा रोड को छोड़कर, सिटवे बंदरगाह सहित परियोजना के सभी हिस्से पूरे हो चुके हैं.

केंद्रीय बंदरगाह, जहाजरानी एवं जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल और म्यांमार के उप-प्रधानमंत्री और केंद्रीय परिवहन एवं संचार मंत्री एडमिरल टिन आंग सान ने पिछले साल मई में म्यांमार के रखाइन प्रांत में सिटवे बंदरगाह का उद्घाटन किया था. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सिटवे बंदरगाह अब म्यांमार सेना के कब्जे में है, जबकि पलेतवा शहर विद्रोही समूह रखाइन अराकान सेना के नियंत्रण में है. अराकान सेना थ्री ब्रदरहुड एलायंस का हिस्सा है, जिसने पिछले साल अक्टूबर में म्यांमार की जुंटा सेना और सैन्य शासन के खिलाफ ऑपरेशन 1027 शुरू किया था. म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस आर्मी (एमएनडीएए) और ताआंग नेशनल लिबरेशन आर्मी (टीएनएलए) थ्री ब्रदरहुड अलायंस में शामिल अन्य दो विद्रोही समूह हैं.

मिजोरम-म्यांमार सीमा पर किसी क्षेत्र में रहने वाले म्यांमार के राजनीतिक कार्यकर्ता किम ने फोन पर ईटीवी भारत को बताया कि कलादान परियोजना का काम पूरी तरह रुक गया है. उन्होंने कहा कि पलेतवा शहर पूरी तरह से अराकान सेना के नियंत्रण में है जो अब अपना प्रशासन स्थापित करने की प्रक्रिया में है. साथ ही उन्होंने बताया कि संघर्ष के बावजूद मिजोरम और म्यांमार के चिन प्रांत के बीच सीमा व्यापार चल रहा है. किम ने कहा कि भारत सरकार संघर्षग्रस्त चिन प्रांत में अराकानी लोगों को आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति की अनुमति दे रही है. इनमें चीनी, सरसों का तेल, मूंगफली का तेल, बिस्कुट, दवाइयां और पेट्रोल शामिल हैं. इसके लिए अराकान आर्मी ने भारत सरकार की सराहना की है.

दरअसल, इस साल की शुरुआत में मिजोरम से राज्यसभा सदस्य के. वनलालवेना (K. Vanlalvena) ने कलादान परियोजना का जायजा लेने के लिए म्यांमार में अराकान सेना के विद्रोहियों से मुलाकात की थी. साथ ही उन्होंने निर्माण कार्य में लगी भारत की सरकारी कंपनी इरकॉन (IRCON) के अधिकारियों से भी मुलाकात की थी. मिजोरम सरकार की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, इरकॉन और म्यांमार में इसके दो सहयोगी ठेकेदारों के साथ अपनी बैठक के दौरान वनलालवेना ने कलादान परियोजना पर काम की धीमी प्रगति पर निराशा व्यक्त की. उन्होंने इरकॉन और उसके ठेकेदारों से काम में तेजी लाने का आग्रह किया.

यह इशारा करता है कि भारत म्यांमार में संघर्षरत दोनों पक्षों से संपर्क में है. किम ने कहा कि भारत सरकार के जुंटा नेता मिन आंग ह्लाइंग (Min Aung Hlaing) के साथ भी अच्छे संबंध हैं. म्यांमार में निवर्तमान भारतीय राजदूत विनय कुमार ने 29 मार्च को ह्लाइंग के साथ बैठक की थी. दोनों ने भारत और म्यांमार के बीच सहयोग पर चर्चा की. न्यूज वेबसाइट मिज्जिमा (Mizzima) की रिपोर्ट के अनुसार, रूस में भारत के नए राजदूत के रूप में नियुक्त होने के बाद म्यांमार से रवाना होने से पहले विनय कुमार ने नेपीता में 1,000 बिस्तरों वाले सैन्य अस्पताल के लिए दवाएं और चिकित्सा आपूर्ति भी दान की.

शिलॉन्ग स्थित थिंक टैंक एशियन कॉन्फ्लुएंस में शोधार्थी के योहोम (K Yhome) के अनुसार, भारत म्यांमार में अपने रणनीतिक और सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए संतुलन बनाकर काम कर रहा है. योहोम ने कहा कि भारत दोहरी रणनीति अपना रहा है. भारत सरकार किसी भी अवांछित परिणाम को कम करने के लिए म्यांमार में संघर्षरत सभी पक्षों के साथ जुड़ने की कोशिश कर रही है. इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि संघर्ष में शामिल दोनों पक्षों के साथ संचार बना रहेगा, यह जुड़ाव दशकों से चल रहा है.

सैन्य तख्तापलट के बाद से पैदा हुईं सुरक्षा चुनौतियां
म्यांमार भारत समेत अपने सभी पड़ोसी देशों के लिए जटिल राजनीतिक स्थिति पेश करता है. भारत संघर्ष के अनपेक्षित परिणाम से बचने के लिए इन विविध संबंधों का निर्माण कर रहा है. योहोम के अनुसार, जहां तक कलादान परियोजना का सवाल है, 2021 में सैन्य तख्तापलट के कारण इसे गंभीर सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जब जुंटा सेना ने नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू-ची की निर्वाचित सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया था. उन्होंने कहा कि रखाइन में जुंटा और अराकान सेना के बीच संघर्ष शुरू होने के बाद से कलादान परियोजना के लिए सुरक्षा चुनौतियां बनी हुई हैं.

अराकान आर्मी का गठन 10 अप्रैल 2009 को किया गया था. यह यूनाइटेड लीग ऑफ अराकान (ULA) की सैन्य शाखा है. रखाइन प्रांत में स्थित इस जातीय सशस्त्र समूह का नेतृत्व वर्तमान में कमांडर-इन-चीफ त्वान म्रात नैंग (Twan Mrat Naing) और उप-डिप्टी कमांडर-इन-चीफ न्यो त्वान अवंग (Nyo Twan Awng) कर रहे हैं. अराकान सेना का कहना है कि उसकी सशस्त्र क्रांति का उद्देश्य अराकान लोगों की संप्रभुता को बहाल करना है.

म्यांमार में बुनियादी ढांचे पर चीन की नजर
अराकान सेना को कचिन प्रांत में कचिन विद्रोहियों द्वारा प्रशिक्षित किया गया था. कचिन के चीन के साथ भी संबंध हैं. म्यांमार की महत्वपूर्ण भू-रणनीतिक स्थिति के कारण चीन म्यांमार में बुनियादी ढांचे में निवेश की रुचि रखता है. एक तरफ चीन के म्यांमार की केंद्रीय सरकार के साथ अच्छे संबंध हैं, साथ ही वह जातीय सशस्त्र समूहों को भी अपने फायदे के लिए समर्थन देता है. चीनी सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि सशस्त्र विद्रोही समूहों के प्रभाव वाले इलाकों से गुजरने वाली उसकी पाइपलाइनों को कोई नुकसान न हो. योहोम कहते हैं कि जिस क्षेत्र से कलादान परियोजना गुजरती है, वहां अराकान सेना का प्रभाव है, इसलिए भारत अराकान सेना पर निर्भर है. ऐसे में नई दिल्ली को संतुलन बनाकर आगे बढ़ना पड़ रहा है.

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Last Updated : Apr 7, 2024, 4:29 PM IST

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