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शिगेरू इशिबा का जापान का PM बनना भारत के लिए शुभ संकेत, एक्सपर्ट ने बताई वजह - Shigeru Ishiba Japan PM - SHIGERU ISHIBA JAPAN PM

Shigeru Ishiba Japan PM : जापान की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता शिगेरू इशिबा प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हैं. वह 1 अक्टूबर को पद संभालेंगे. इशिबा का जापानी पीएम बनना भारत के लिए अच्छा संकेत है. विशेषज्ञ से जानें इसके पीछे की वजह.

Why Shigeru Ishiba becoming Japan PM good news for India expert explains reasons
शिगेरू इशिबा का जापान का PM बनना भारत के लिए शुभ संकेत (AP)

By Aroonim Bhuyan

Published : Sep 29, 2024, 5:27 PM IST

नई दिल्ली: जापान की सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) के अध्यक्ष चुने गए शिगेरू इशिबा 1 अक्टूबर को प्रधानमंत्री पद संभालेंगे. इशिबा के जापानी प्रधानमंत्री बनना भारत के लिए अच्छी बात है. इशिबा फुमियो किशिदा की जगह लेंगे, जिन्होंने LDP के अध्यक्ष पद के चुनाव में भाग नहीं लेने का फैसला किया. एलडीपी का प्रमुख ही पार्टी के सत्ता में रहने पर प्रधानमंत्री बनाता है.

इशिबा का जन्म एक राजनीतिक परिवार में हुआ था, उनके पिता जिरो इशिबा (Jiro Ishiba) 1958 से 1974 तक टोटोरी प्रांत के गवर्नर थे, बाद में जापान के गृह मंत्री बने थे. कीओ विश्वविद्यालय (Keio University) से स्नातक करने के बाद इशिबा ने अपने पिता की मृत्यु के बाद राजनीति में प्रवेश करने से पहले वित्तीय क्षेत्र में काम किया.

इशिबा का राजनीतिक करियर
इशिबा 33 वर्ष की आयु में एलडीपी के सदस्य के रूप में 1986 के आम चुनाव में प्रतिनिधि सभा के लिए चुने गए और उस समय जापानी संसद नेशनल डायट (National Diet) के सबसे कम उम्र के सदस्य थे. इशिबा, जूनियर डायट सदस्य के रूप में 1990 में खाड़ी युद्ध के दौरान अपने अनुभवों और 1992 में उत्तर कोरिया की यात्रा से पहले कृषि नीति में विशेषज्ञता रखते थे, जिसके बाद रक्षा मुद्दों में उनकी रुचि जगी.

शिगेरू इशिबा (AP)

उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री किइची मियाजावा के कार्यकाल में कृषि उप-मंत्री के रूप में कार्य किया, लेकिन 1993 में एलडीपी छोड़कर जापान रिन्यूअल पार्टी में शामिल हो गए. कई पार्टियां बदलने और 1997 में एलडीपी में वापस आने के बाद इशिबा ने कई प्रमुख पदों पर कार्य किया. वह पूर्व प्रधानमंत्री यासुओ फुकुदा के कार्यकाल में रक्षा एजेंसी के महानिदेशक और रक्षा मंत्री रहे, जबकि तारो असो के कार्यकाल में कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन मंत्री के रूप में कार्य किया.

इशिबा एलडीपी के भीतर एक प्रमुख व्यक्ति बन गए, पार्टी अध्यक्ष बनने के लिए कई बार दावेदारी पेश की. वह पहली बार 2008 में एलडीपी अध्यक्ष पद के लिए दौड़ में शामिल हुए थे, लेकिन पांचवें स्थान पर रहे. बाद में 2012 और 2018 में पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे के खिलाफ चुनाव लड़ा.

पार्टी का नेता बनने के लिए अपना गुट बनाया
पार्टी में गुटबाजी की आलोचना के बावजूद उन्होंने नेतृत्व के उद्देश्य से 2015 में खुद का गुट सुइगेत्सुकाई (Suigetsukai) स्थापित किया. आबे के इस्तीफे के बाद इशिबा ने 2020 में चुनाव लड़ा, लेकिन योशीहिदे सुगा के पीछे तीसरे स्थान पर रहे.

उन्होंने 2021 के चुनाव में भाग लेने से इनकार कर दिया. इशिबा ने इस साल पांचवीं और अंतिम बार चुनाव लड़ा और दूसरे दौर के चुनाव में प्रतिद्वंद्वी साने ताकाइची को हराया, और नए पार्टी नेता और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने.

विशेषज्ञों का मानना है कि इशिबा का जापान का प्रधानमंत्री बनना भारत के लिए शुभ संकेत है. भारत और जापान 'विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी' साझा करते हैं. जापान उन दो देशों में से एक है, जिनके साथ भारत वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन करता है, दूसरा रूस है.

भारत और जापान दोनों चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता का हिस्सा हैं, जिसे क्वाड के रूप में जाना जाता है, जो जापान के पूर्वी तट से अफ्रीका के पूर्वी तट तक फैले क्षेत्र में चीन की आक्रामकता के सामने एक स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत सुनिश्चित करना चाहता है.

इशिबा को राष्ट्रीय सुरक्षा पर उनके मजबूत रुख के लिए जाना जाता है, जो जापान के शांतिवादी संविधान की सीमाओं के भीतर रहते हुए अधिक सक्रिय सुरक्षा नीति की वकालत करते हैं. वह जापान के सामूहिक आत्मरक्षा के अधिकार के लगातार समर्थक रहे हैं और उन्होंने जापान सेल्फ-डिफेंस फोर्सेज (जेएसडीएफ) की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए सुधारों का समर्थन किया है.

देश की रक्षा के प्रति उनके व्यावहारिक दृष्टिकोण ने उन्हें जापान की सैन्य स्थिति और क्षेत्रीय सुरक्षा गतिशीलता में इसकी भूमिका के बारे में बहस में एक प्रमुख व्यक्ति बना दिया है.

एक्सपर्ट का क्या कहना है...
शिलांग स्थित थिंक टैंक एशियन कॉन्फ्लुएंस के फेलो और इंडो-पैसिफिक से संबंधित मुद्दों के विशेषज्ञ के. योमे (K Yhome) के अनुसार, इशिदा के राजनीतिक, रक्षा और कूटनीतिक रुझान के बारे में जो कुछ भी हम जानते हैं, उसके अनुसार उनका जापान का प्रधानमंत्री बनना भारत के लिए अच्छा संकेत है.

योमे ने ईटीवी भारत से कहा, "इशिदा एक ऐसे व्यक्ति हैं, जो क्षेत्र में सुरक्षा को मजबूत करने की गहरी समझ है. हमें इस बात का आकलन इस क्षेत्र में हो रही घटनाओं के आधार पर करना होगा - हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता और उत्तर कोरिया की परमाणु और बैलिस्टिक महत्वाकांक्षाएं."

उन्होंने बताया कि भारत के सामने भी चीन के साथ अपनी चुनौतियां हैं. योमे ने कहा, "यह एक ऐसा क्षेत्र होगा जिसमें भारत-जापान संबंधों में और अधिक तालमेल होगा. हमारे द्विपक्षीय संबंधों में निरंतरता बनी रहेगी."

भारत के साथ इशिबा के संबंध मुख्य रूप से जापान के रक्षा मंत्री के रूप में उनकी भूमिका और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और रक्षा नीतियों के साथ उनके व्यापक जुड़ाव से बढ़े हैं. रक्षा मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल ऐसे समय में था, जब जापान और भारत अपनी रणनीतिक साझेदारी को गहरा कर रहे थे, खासकर इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के संदर्भ में.

भारत-जापान रक्षा और सुरक्षा साझेदारी द्विपक्षीय संबंधों का अभिन्न स्तंभ
भारत-जापान रक्षा और सुरक्षा साझेदारी द्विपक्षीय संबंधों का एक अभिन्न स्तंभ है. रणनीतिक मामलों की ओर बढ़ते झुकाव के कारण हाल के वर्षों में भारत-जापान रक्षा आदान-प्रदान को मजबूती मिली है और इसका महत्व भारत-प्रशांत क्षेत्र की शांति, सुरक्षा और स्थिरता के मुद्दों पर साझा दृष्टिकोण से बढ़ रहा है.

भारत और जापान के बीच सुरक्षा सहयोग पर संयुक्त घोषणा (JDSC) पर 2008 में हस्ताक्षर किए गए थे, रक्षा सहयोग और आदान-प्रदान के ज्ञापन पर 2014 में हस्ताक्षर किए गए थे.

रक्षा उपकरण और प्रौद्योगिकी सहयोग के हस्तांतरण पर समझौता और वर्गीकृत सैन्य सूचना की सुरक्षा के लिए सुरक्षा उपायों पर समझौता 2015 में हस्ताक्षरित किया गया था और भारतीय नौसेना और जापान समुद्री आत्मरक्षा बल (JMSDF) के बीच गहन सहयोग के लिए कार्यान्वयन व्यवस्था पर 2018 में हस्ताक्षर किए गए थे.

जापान के आत्मरक्षा बलों और भारतीय सशस्त्र बलों के बीच आपूर्ति और सेवाओं के पारस्परिक प्रावधान पर समझौते पर 9 सितंबर, 2020 को हस्ताक्षर किए गए थे.

दोनों देशों के बीच सुरक्षा संबंधों की नींव रखने में योगदान
हालांकि इशिबा ने खुद भारत की कई यात्राएं नहीं की हैं, लेकिन रक्षा नीति में उनके काम ने दोनों देशों के बीच अधिक मजबूत सैन्य और सुरक्षा संबंधों की नींव रखने में योगदान दिया. योम ने कहा, "सुरक्षा और रक्षा में इशिबा की विशेषज्ञता को देखते हुए, उनके प्रधानमंत्री बनने से इन क्षेत्रों में भारत और जापान के बीच सहयोग के नए क्षेत्र खुलेंगे."

उन्होंने कहा कि अगर चीन के पहलू को देखा जाए तो ताइवान के प्रति जापान की नीति को ध्यान में रखना होगा. योमे ने कहा, "इशिदा ने कहा है कि ताइवान में किसी भी आपातकाल का मतलब जापान में आपातकाल होगा. ताइवान के साथ भारत के बढ़ते संबंधों को देखते हुए यह बढ़ते झुकाव का एक और क्षेत्र है."

एशियाई नाटो की स्थापना की मांग
गौरतलब है कि इशिबा क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए एशियाई नाटो ( Asian NATO ) की स्थापना की मांग कर रहे हैं. हालांकि, अमेरिका ने इसे स्वीकार नहीं किया है. योमे के अनुसार, यह जरूरी नहीं है कि यह नाटो का प्रोटोटाइप हो. उन्होंने कहा, "इशिबा सिर्फ एक क्षेत्रीय सुरक्षा गठबंधन चाहता है. इसका विचार एक सामूहिक सुरक्षा तंत्र बनाने का है."

योमे का कहना है कि भारत अपनी स्वतंत्र रणनीतिक नीति बनाए रखता है. उन्होंने कहा कि इशिबा के विचार को पुराने नाटो ढांचे से नहीं देखा जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, "नए प्रधानमंत्री का इस तरह के दृष्टिकोण के साथ आना भारत के लिए अच्छी खबर है. उनके नेतृत्व में, भारत-जापान द्विपक्षीय संबंधों को और बढ़ावा देने का बड़ा अवसर होगा, चाहे वह आर्थिक हो या लोगों से लोगों के बीच संबंध. रक्षा और सुरक्षा एक ऐसा क्षेत्र होगा जिस पर अतिरिक्त ध्यान दिया जाएगा. क्षेत्र में जापान के सामने मौजूद सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए, वह भारत की ओर देखेगा.

योम ने कहा कि चूंकि भारत और जापान दोनों को चीन के साथ सुरक्षा संबंधी चुनौतियां हैं, इसलिए दोनों देश मिलकर काम करके यह सुनिश्चित करेंगे कि यह क्षेत्र चीन-केंद्रित न हो जाए.

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