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बांग्लादेश के राजनीतिक इतिहास में कार्यवाहक सरकार की रही है अहम भूमिका, जानें कैसे बनी यह प्रणाली - Bangladesh

Interim Governments In Bangladesh: बांग्लादेश में कार्यवाहक सरकार प्रणाली को पहली बार 1996 के आम चुनावों के दौरान लागू किया गया था. इस चुनाव को व्यापक रूप से स्वतंत्र और निष्पक्ष माना गया, जिसमें हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग विजयी हुई थी.

Interim Governments In Bangladesh
बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन (AP)

By Aroonim Bhuyan

Published : Sep 17, 2024, 10:56 PM IST

नई दिल्ली: बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम ने सोमवार को कहा कि जनता लंबे समय तक अंतरिम सरकार को सत्ता में बने रहने को बर्दाश्त नहीं करेगी, जिसके बाद फिर से भारत के पड़ोसी देश में पिछली कार्यवाहक सरकारों की प्रभावशीलता और अत्याचारों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है.

डेली स्टार ने एक चर्चा के दौरान फखरुल के हवाले से कहा, "एक सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि 80 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि यह सरकार जब तक चाहे तब तक बनी रहे. मुझे नहीं पता कि उन्हें यह कहां से या कैसे मिला, लेकिन लोग इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे." उन्होंने चेतावनी दी कि भ्रम पैदा करने से बचने के लिए ऐसी बातें कहना या रिपोर्ट करना सोच-समझकर किया जाना चाहिए.

उन्होंने अंतरिम सरकार के कार्यकाल को बढ़ाने के उद्देश्य से कुछ समूहों की गतिविधियों पर भी चिंता जताई. उन्होंने कहा, "कई संगठन और समूह इस अंतरिम सरकार को अनिश्चित काल तक बनाए रखने के उद्देश्य से काम करना शुरू कर चुके हैं." उन्होंने कहा, "अगर वे सभी बदलाव करते हैं और सुधारों को लागू करते हैं, तो जनता या संसद की कोई जरूरत नहीं होगी."

बांग्लादेश में मौजूदा अंतरिम सरकार ने 8 अगस्त को सत्ता संभाली थी, जब अवामी लीग की प्रधानमंत्री शेख हसीना को 5 अगस्त को पद से इस्तीफा देकर देश छोड़कर भागना पड़ा था. शेख हसीना सरकार के खिलाफ विद्रोह शुरू में नौकरी कोटा में सुधार की मांग करने वाले छात्रों के आंदोलन से शुरू हुआ था.

बांग्लादेश के राष्ट्रपति ने 6 अगस्त को संसद को भंग कर दिया था, जिसके बाद अंतरिम सरकार ने सत्ता संभाली. यह सरकार संविधान से इतर थी. हालांकि, बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट के अपीलीय डिवीजन ने 9 अगस्त को अस्थायी सरकार की वैधता की पुष्टि की, जिसमें राज्य के मामलों को प्रबंधित करने और संवैधानिक शून्यता को संबोधित करने की तत्काल आवश्यकता का हवाला दिया गया, जैसा कि पहले भी होता रहा है.

विडंबना यह है कि इस साल जनवरी में संसदीय चुनाव से पहले बीएनपी और अन्य विपक्षी दलों की मांग के अनुसार अंतरिम सरकार बनाने से हसीना ने इनकार कर दिया था. जिसके कारण, बीएनपी सहित प्रमुख विपक्षी दलों ने चुनावों का बहिष्कार किया था और शेक हसीना के नेतृत्व में अवामी लीग ने लगातार चौथी बार सत्ता में वापसी की थी.

हालांकि, चुनावों के बाद पर्यवेक्षकों ने हसीना के सरकार चलाने के निरंकुश तरीके के खिलाफ विद्रोह की लहर देखी. आखिरकार एक बड़े पैमाने पर विद्रोह होने से उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया और एक अंतरिम सरकार की स्थापना की, जिसके मुख्य सलाहकार प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, बैंकर और नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस हैं.

राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने 8 अगस्त को बंगभवन में यूनुस और उनके सलाहकारों की परिषद को पद की शपथ दिलाई. वर्तमान में मंत्रिमंडल में एक मुख्य सलाहकार, 19 सलाहकार और मुख्य सलाहकार के दो विशेष सहायक शामिल हैं.

बांग्लादेश में यह पहली बार नहीं है कि देश में अंतरिम सरकार बनाई गई है. बांग्लादेश में अंतरिम सरकारों (जिन्हें कार्यवाहक सरकार के रूप में जाना जाता है) ने देश के राजनीतिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, खासकर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में.

कार्यवाहक प्रणाली प्रमुख राजनीतिक दलों, विशेष रूप से अवामी लीग और बीएनपी के बीच लगातार राजनीतिक अस्थिरता और अविश्वास की प्रतिक्रिया के रूप में उभरी. इन सरकारों का गठन बिना किसी पक्षपातपूर्ण हस्तक्षेप के आम चुनावों की देखरेख करने के एकमात्र उद्देश्य से किया गया था. शुरू में शांति और निष्पक्ष चुनाव बनाए रखने में सफल होने के बावजूद प्रणाली के बाद के वर्षों में विवाद रहा, जिसके कारण इसे अंततः भंग कर दिया गया.

1980 और 1990 के दशक की शुरुआत में चुनावों में धोखाधड़ी, वोट में हेराफेरी और देश के संसाधनों के दुरुपयोग के आरोप लगे थे. पार्टियों के बीच इस अविश्वास ने किसी भी चुनाव को स्वतंत्र और निष्पक्ष मानना असंभव बना दिया.

1991 के विवादास्पद चुनावों के बाद तटस्थ कार्यवाहक सरकार की मांग ने जोर पकड़ा. अवामी लीग के नेतृत्व में विपक्ष ने दावा किया कि चुनावों में बीएनपी द्वारा धांधली की गई, जो सत्ता में आई थी. महीनों के विरोध और राजनीतिक हिंसा के बाद दोनों प्रमुख दलों के बीच समझौता हुआ. इस समझौते के कारण 1996 में संविधान में 13वें संशोधन के जरिये एक गैर-पक्षपातपूर्ण कार्यवाहक सरकार प्रणाली की औपचारिक शुरुआत हुई.

कार्यवाहक सरकार एक अस्थायी और गैर-पक्षपातपूर्ण प्रशासन थी, जिसका नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश करते थे. इसका एकमात्र कार्य आम चुनावों का प्रशासन और देखरेख करना था और यह सुनिश्चित करना था कि स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से चुनाव आयोजित किए जाएं. कार्यवाहक सरकार के पास कोई विधायी शक्तियां नहीं थीं और वह कोई दीर्घकालिक नीतिगत उपाय नहीं कर सकती थी; इसकी प्राथमिक भूमिका कानून और व्यवस्था बनाए रखना और चुनाव प्रक्रिया की तटस्थता सुनिश्चित करना था.

कार्यवाहक सरकार को 90 दिनों के भीतर चुनाव कराने थे और 120 दिनों के भीतर नव-निर्वाचित सरकार को सत्ता सौंपनी थी. यह प्रणाली इस आधार पर काम करती थी कि यह एक निष्पक्ष इकाई है जिसका चुनाव परिणामों में कोई निहित स्वार्थ नहीं है, और इस प्रकार यह मौजूदा सरकार द्वारा देश के संसाधनों का उपयोग करके चुनाव परिणामों में हेरफेर करने के खिलाफ सुरक्षा के रूप में कार्य कर सकती है.

कार्यवाहक सरकार प्रणाली 1996 में लागू हुई
कार्यवाहक सरकार प्रणाली को पहली बार 1996 के आम चुनावों के दौरान लागू किया गया था. कई महीनों के राजनीतिक गतिरोध के बाद प्रधानमंत्री खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बीएनपी सरकार ने पद छोड़ दिया, जिससे न्यायमूर्ति मुहम्मद हबीबुर रहमान के नेतृत्व में एक कार्यवाहक सरकार को कार्यभार संभालने की अनुमति मिली. इस चुनाव को व्यापक रूप से स्वतंत्र और निष्पक्ष माना गया, जिसमें हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग विजयी हुई थी.

कार्यवाहक प्रणाली की इस प्रारंभिक सफलता ने चुनाव प्रक्रिया में जनता का विश्वास बढ़ाया. इसे चुनावी धोखाधड़ी और पक्षपातपूर्ण राजनीति को लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करने से रोकने के लिए एक आवश्यक तंत्र के रूप में देखा गया.

कार्यवाहक सरकार एक बार फिर 2001 के आम चुनाव के दौरान बनाई गई. जस्टिस लतीफुर रहमान ने कार्यवाहक सरकार का नेतृत्व किया जिसने चुनावों की देखरेख की. चुनाव काफी हद तक शांतिपूर्ण रहे, और बीएनपी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने भारी जीत हासिल की. इन चुनावों के दौरान कार्यवाहक सरकार के सुचारू संचालन ने बांग्लादेश के राजनीतिक परिदृश्य में विश्वसनीय और गैर-पक्षपातपूर्ण संस्था के रूप में इसकी भूमिका को और मजबूत किया.

हालांकि, 2006 में निर्धारित आम चुनाव से पहले कार्यवाहक सरकार की व्यवस्था को लकर विवाद शुरू हो गया. विवाद तब शुरू हुआ जब बीएनपी और अवामी लीग कार्यवाहक सरकार के एक तटस्थ प्रमुख की नियुक्ति पर सहमत नहीं हो सके.

2006 के अंत में राष्ट्रपति इयाजुद्दीन अहमद ने कार्यवाहक सरकार बनाई. मुख्य न्यायाधीश केएम हसन मुख्य सलाहकार की भूमिका निभाने में असमर्थ थे, क्योंकि अवामी लीग ने आरोप लगाया था कि खालिदा जिया के नेतृत्व वाली निवर्तमान बीएनपी सरकार ने कार्यवाहक सरकार को प्रभावित करने के लिए हसन को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया था. विवाद के कारण देश में हिंसा और अशांति फैल गई और जनवरी 2007 में होने वाले आम चुनाव रद्द कर दिए गए.

फखरुद्दीन अहमद ने जनवरी 2007 में नई कार्यवाहक सरकार बनाई
अर्थशास्त्री और बांग्लादेश बैंक के पूर्व गवर्नर फखरुद्दीन अहमद ने जनवरी 2007 में बांग्लादेश सशस्त्र बलों के समर्थन से नई कार्यवाहक सरकार बनाई. कार्यवाहक सरकार को 90 दिनों के भीतर चुनाव कराने थे, लेकिन उसने सुधारों और स्थिरता की आवश्यकता का हवाला देते हुए अपने शासन को लगभग दो साल के लिए बढ़ा दिया. इस अवधि के दौरान उन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाया, अवामी लीग और बीएनपी दोनों के प्रमुख राजनीतिक नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और कई बार चुनाव स्थगित किए गए. आखिरकार, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दबाव में दिसंबर 2008 में आम चुनाव हुए, जिसमें अवामी लीग ने भारी जीत हासिल की.

2011 में कार्यवाहक सरकार प्रणाली को खत्म कर दिया गया
2011 में, प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सरकार ने 15वें संविधान संशोधन के साथ कार्यवाहक सरकार प्रणाली को ही समाप्त कर दिया. इस संशोधन का बीएनपी और अन्य दलों ने विरोध किया. जिसके कारण देश में 2014 के आम चुनाव को स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं माना गया क्योंकि ये अंतरिम सरकार के साथ नहीं हुए थे.

चुनावों से पहले सरकार की तरफ से विपक्ष पर कार्रवाई की गई, जिसमें बीएनपी प्रमुख और विपक्षी नेता खालिदा जिया को नजरबंद कर दिया गया. अन्य विपक्षी सदस्यों की व्यापक गिरफ्तारी हुई, विपक्ष द्वारा हिंसा और हड़तालें, धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले और सरकार द्वारा न्यायेतर हत्याएं हुईं, जिसमें चुनाव के दिन लगभग 21 लोग मारे गए थे.

शेख हसीना लगातार दूसरी बार जीतने वाली पहली प्रधानमंत्री बनीं
लगभग सभी प्रमुख विपक्षी दलों ने चुनावों का बहिष्कार किया, जिसके परिणामस्वरूप 300 प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सीटों में से 153 पर निर्विरोध चुनाव हुए और प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व वाले अवामी लीग के महागठबंधन ने भारी बहुमत से जीत हासिल की. शेख हसीना बांग्लादेश के इतिहास में लगातार दूसरी बार फिर से निर्वाचित होने वाली पहली प्रधानमंत्री बनीं.

दिसंबर 2018 में बांग्लादेश में संसद के 300 प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्यों को चुनने के लिए फिर से आम चुनाव हुए. शेख हसीना और अवामी लीग के नेतृत्व वाले महागठबंधन की एक और शानदार जीत हुई. चुनाव हिंसा से प्रभावित थे और विपक्षी राजनेताओं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने बड़ी धांधली का आरोप लगाया था क्योंकि कोई अंतरिम सरकार नहीं थी.

विपक्षी नेता कमाल हुसैन ने चुनाव नतीजों को खारिज करते हुए इसे 'हास्यास्पद' कहा था और एक तटस्थ सरकार के तहत नए चुनाव कराने की मांग की थी. चुनाव में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल हुआ था.

सोमवार को बीएनपी के फखरुल ने स्पष्ट किया कि यूनुस के नेतृत्व वाली नई अंतरिम सरकार के तहत स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव होने चाहिए. उन्होंने कहा कि चुनाव के बाद निर्वाचित प्रतिनिधियों को यह तय करना चाहिए कि कौन से सुधार या बदलाव जरूरी हैं. फखरुल के हवाले से कहा गया, "संसद तय करेगी कि कुछ पहलुओं में संशोधन किया जाए, संविधान को फिर से लिखा जाए या इसे रद्द कर नया संविधान लाया जाए." तो, क्या नई अंतरिम सरकार निकट भविष्य में चुनाव कराएगी और एक लोकप्रिय निर्वाचित सरकार बनेगी? इस पर सभी की नजरें होंगी.

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