हैदराबाद:सभी केजीवन में कभी ना कभी एक ऐसा मोड़ आता है, जहां पर हर व्यक्ति खुद को हताश महसूस करने लगता है. सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या आज भी अविस्मरणीय है. 34 वर्षीय इस युवा कलाकार ने आत्महत्या कर ली थी, जिससे फिल्म उद्योग और नेटिजन्स के बीच हंगामा मच गया था. कभी किसी ने नहीं सोचा था कि इतना प्रतिभाशाली अभिनेता ऐसा काम कर सकता है.
वहीं, हाल ही में मलायका अरोड़ा के पिता अनिल मेहता ने भी आत्महत्या कर ली. अपने पिता के अचानक उठाए गए इस कदम से मलायका बेहद दुखी हैं और जो भी इस घटना के बारे में सुन रहा है, हर कोई शॉक्ड है. खबरों के मुताबिक, सुशांत सिंह राजपूत और अनिल मेहता की आत्महत्या के पीछे मुख्य वजह डिप्रेशन है. चलिए जानते हैं कि कैसे स्यूसाइड की फीलिंग से डील किया जा सकता है.
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस 10 सितंबर को दुनिया भर में मनाया जाता है, ताकि लोगों में जागरूकता पैदा हो और कई जिंदगियां बचाई जा सकें. आत्महत्या पर चर्चा इसलिए जरूरी है क्योंकि पिछले कुछ सालों में आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़े हैं.
अब यह आमतौर पर पूछा जाता है कि क्याडिप्रेशन का कोई फेज होता है, जहां व्यक्ति आत्महत्या जैसे कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाता है?
डायग्नोस्टिक एंड स्टैटिस्टिकल मैनुअल ऑफ मेंटल डिसऑर्डर (डीएसएम) के अनुसार, शोध में आत्महत्या से पहले होने वाले कुछ लक्षणों के बारे में विस्तार से बताया गया है.
अध्ययन के मुताबिक कोई भी व्यक्ति अचानक आत्महत्या जैसा बड़ा कदम नहीं उठाता. विशेषज्ञों के मुताबिक, आत्महत्या करने वाला व्यक्ति काफी देर तक इसके बारे में सोचता रहता है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ (NIH)के मुताबिक, कोई भी इस रास्ते को आसानी से नहीं चुनता. इन सभी चीजों के बारे में व्यक्ति काफी देर तक सोचता रहता है. आप कुछ संकेतों को देखकर समझ सकते हैं, जानिए क्या हैं लक्षण?
बार-बार मरने की इच्छा व्यक्त करना, अत्यधिक अपराधबोध या शर्म महसूस करना, दूसरों पर बोझ महसूस करना आदि. इसके अलावा मरने के तरीकों की योजना बनाना या उन पर शोध करना, दोस्तों से अलग हो जाना, अलविदा कहना, महत्वपूर्ण चीजें दे देना या वसीयत करना, बहुत तेज गाड़ी चलाना, कम सोना, बार-बार ड्रग्स या शराब लेने की इच्छा जैसे खतरनाक जोखिम उठाना.
आत्महत्या से पहले ये लक्षण भी हो सकते हैं:
लगातार परेशान रहना: लगातार दर्द लोगों को आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठाने के लिए तैयार कर देता है. एनआईएच के अनुसार , जो लोग हमेशा दुखी रहते हैं उनमें आत्महत्या करने की संभावना अधिक होती है. उनकी बातों में दुःख और निराशा के स्पष्ट संकेत हैं. ऐसे लोग हमेशा किसी बात को लेकर सकारात्मक होने की बजाय निराशावादी सोचते हैं.