नई दिल्ली : भारत में टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के पूर्व प्रमुख डॉ. कुलदीप सिंह सचदेवा ने शनिवार को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में एक कार्यक्रम में कहा कि तपेदिक (टीबी) के लापता मामलों के साथ-साथ निदान और उपचार में देरी 2025 तक देश में घातक संक्रमण को समाप्त करने के भारत के मिशन में प्रमुख बाधाएं हैं.
24 मार्च को विश्व तपेदिक दिवस से पहले द लांसेट इंफेक्शियस डिजीज जर्नल में प्रकाशित नवीनतम वैश्विक शोध के अनुसार, भारत में टीबी की घटनाओं में 2015 और 2020 के बीच केवल 0.5 प्रतिशत की मामूली गिरावट आई है.
अध्ययन में बताया गया है कि 2020 में भारत में टीबी के मामले प्रति एक लाख जनसंख्या पर 213 थे, जबकि मौतें 3.5-5 लाख के बीच थीं - दोनों ही लक्ष्य से काफी ऊपर हैं.
टीबी के लापता मामले निरंतर टीबी संचरण का एक महत्वपूर्ण स्रोत बने हुए हैं. वर्तमान में गोवा स्थित मोल्बियो डायग्नोस्टिक्स के अध्यक्ष और मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. कुलदीप ने एक न्यूज एजेंसी को बताया, समुदाय में सभी मामलों तक पहुंचने, उनका शीघ्र निदान करने और इलाज करने और इलाज में उनका समर्थन किए बिना टीबी को खत्म करना संभव नहीं है.
सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने कहा कि जनता में जागरूकता बढ़ाना और स्वास्थ्य संबंधी व्यवहार को बढ़ावा देना, उसके बाद अल्ट्रापोर्टेबल एक्स-रे जैसे संवेदनशील उपकरणों के साथ स्क्रीनिंग करना, जिन्हें उनके करीब तैनात किया जा सकता है, ऐसे मामलों तक पहुंचने के कुछ तरीके हैं.
उन्होंने कहा, 'जिन लोगों की स्क्रीनिंग पॉजिटिव आती है, उन्हें अत्यधिक संवेदनशील और विशिष्ट आणविक परीक्षणों के साथ अंतिम पुष्टि की आवश्यकता होगी.'
डॉ. कुलदीप ने यह भी बताया कि निदान और उपचार के बीच देरी से घातक बीमारी का प्रसार बढ़ रहा है.