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आपातकालीन चिकित्सा देखभाल पर विश्व की आबादी व नीति निर्माताओं को एकजुट करना जरूरी - EMERGENCY MEDICINE DAY - EMERGENCY MEDICINE DAY

Emergency Medicine Day: जलवायु परिवर्तन सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरे प्रस्तुत करता है. मौसम की घटनाओं, रोग की बदलती गतिशीलता और पारिस्थितिक गिरावट के माध्यम से स्वास्थ्य संकट बढ़ जाता है. प्रसिद्ध स्वास्थ्य विशेषज्ञ और एशियन सोसाइटी फॉर इमरजेंसी मेडिसिन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. टैमोरिश कोले के अनुसार 1 मार्च से भारत में हीटस्ट्रोक के 16,000 से अधिक मामले और 60 मौतें दर्ज की गई हैं, जो गर्मी से संबंधित बीमारियों में वृद्धि का संकेत है.

EMERGENCY MEDICINE DAY
आपातकालीन चिकित्सा दिवस (प्रतीकात्मक चित्र) (Getty Images)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 27, 2024, 12:11 AM IST

नई दिल्ली: आपातकालीन चिकित्सा पेशेवरों के महत्वपूर्ण योगदान और उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली आवश्यक सेवाओं को रेखांकित करते हैं. साथ ही उनके सामने आने वाली चुनौतियों और रोगी परिणामों पर महत्वपूर्ण प्रभाव के बारे में जनता और सरकार के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए 27 मई को आपातकालीन चिकित्सा दिवस मनाया जाता है.

आपातकालीन चिकित्सा दिवस की शुरुआत यूरोपियन सोसाइटी फॉर इमरजेंसी मेडिसिन (EUSEM) द्वारा की गई थी. इसे पहली बार 27 मई 2019 को मनाया गया था. इस दिन की स्थापना का लक्ष्य आपातकालीन चिकित्सा की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाना और बेहतर समर्थन की वकालत करने के साथ आपातकालीन चिकित्सा पेशेवरों के लिए संसाधन और प्रशिक्षण उपलब्ध कराना है.

दिवस का महत्व:
आपातकालीन चिकित्सा दिवस सभी के लिए पहुंच सुनिश्चित करते हुए आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं के लिए उच्च मानकों, निरंतर प्रशिक्षण और बेहतर संसाधनों की वकालत करता है. इसके अलावा यह आपातकालीन तैयारियों में सार्वजनिक भागीदारी को प्रोत्साहित करता है और आपात स्थिति और आपदाओं के लिए समन्वित प्रतिक्रियाओं को बढ़ाने के लिए स्वास्थ्य देखभाल हितधारकों के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है.

भारत का दृष्टिकोण:2021 में नीति आयोग ने 'देश स्तर पर वर्तमान स्थिति पर रिपोर्ट-माध्यमिक और तृतीयक स्तर' और 'भारत में जिला स्तर पर आपातकालीन और चोट देखभाल' शीर्षक से दो व्यापक रिपोर्ट प्रकाशित कीं. ये रिपोर्ट देश भर में आपातकालीन मामलों के स्पेक्ट्रम और मात्रा को उजागर करती हैं, जिससे एम्बुलेंस सेवाओं, स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे, मानव संसाधनों और इष्टतम देखभाल प्रदान करने के लिए आवश्यक उपकरणों में महत्वपूर्ण अंतर का पता चलता है.

एशियन सोसाइटी फॉर इमरजेंसी मेडिसिन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. टैमोरिश कोले ने कहा कि भारत में सभी प्रकार की आपात स्थितियों को संभालने के लिए अस्पतालों की क्षमता काफी भिन्न होती है. उन्होंने कहा, 'सरकारी पहल, जैसे ट्रॉमा सेंटर की स्थापना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और टेलीमेडिसिन सेवाओं का उद्देश्य आपातकालीन देखभाल को बढ़ाना है, लेकिन अधिक मजबूत कार्यान्वयन और स्केलिंग की आवश्यकता है.

इस साल मार्च में, केंद्र सरकार ने चंडीगढ़ शहर में एक पायलट कार्यक्रम भी शुरू किया, जो मोटर वाहन से संबंधित सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ितों के लिए कैशलेस उपचार प्रदान करता है.

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा नेतृत्व और राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण द्वारा देखरेख; इस पहल का उद्देश्य महत्वपूर्ण 'गोल्डन आवर' के दौरान समय पर आपातकालीन देखभाल सुनिश्चित करना और मोटर वाहन दुर्घटना निधि के माध्यम से अस्पतालों की प्रतिपूर्ति करना है. ”डॉ कोले ने कहा कि 'कुल मिलाकर, जबकि भारत में कुछ अस्पताल आपात स्थिति के लिए अच्छी तरह से सुसज्जित हैं, आपातकालीन देखभाल क्षमताओं में महत्वपूर्ण असमानताएं हैं. सभी नागरिकों के लिए प्रभावी आपातकालीन चिकित्सा देखभाल तक समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए आपातकालीन विभागों, प्रशिक्षण और प्रणालीगत सुधारों में निरंतर निवेश की आवश्यकता है.

आपातकालीन चिकित्सा देखभाल के अभाव में मृत्यु:

72वीं विश्व स्वास्थ्य सभा के प्रतिनिधियों ने 30 मई 2019 को आपातकालीन और आघात देखभाल पर एक प्रस्ताव अपनाया, जिसका उद्देश्य गंभीर रूप से बीमार और घायलों के लिए समय पर उपचार सुनिश्चित करना है. यह प्रस्ताव निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होने वाली मौतों की महत्वपूर्ण संख्या को संबोधित करता है. बता दें कि उचित अस्पताल पूर्व और आपातकालीन देखभाल जरूरी है.खासकर चोटों से लेकर गर्भावस्था की जटिलताओं तक विभिन्न स्थितियों को शामिल किया गया है.

डॉ. कोले ने कहा, 'जैसा कि डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट है, सड़क यातायात की चोटों के कारण सालाना होने वाली लगभग 13.5 लाख (1.35 मिलियन) जिंदगियों को बचाया जा सकत है. और ऐसी घटनाओं से जुड़ी दीर्घकालिक विकलांगताओं को कम करने के लिए दुर्घटना पीड़ितों के लिए त्वरित आपातकालीन चिकित्सा देखभाल तक पहुंच महत्वपूर्ण है.'

जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य आपात स्थिति
जलवायु परिवर्तन सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भयानक खतरे प्रस्तुत करता है. मौसमी घटनाएं, रोग की बदलती गतिशीलता और पारिस्थितिक गिरावट के माध्यम से स्वास्थ्य संकट बढ़ रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, अनुमान है कि 2030 और 2050 के बीच जलवायु-संबंधित कारकों, विशेष रूप से गर्मी के तनाव, कुपोषण और संक्रामक बीमारियों के कारण सालाना 250,000 अतिरिक्त मौतें होंगी.

'बढ़ते तापमान से हीटवेव की आवृत्ति और गंभीरता बढ़ जाती है, जिससे गर्मी से संबंधित बीमारियों और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है, जबकि चक्रवात और बाढ़ जैसी चरम जलवायु घटनाएं चोटों, विस्थापन और जलजनित और वेक्टर-जनित बीमारियों की महामारी को बढ़ावा देती हैं. इसके अलावा, जलवायु में उतार-चढ़ाव पारिस्थितिक तंत्र को बाधित करता है और भोजन और जल सुरक्षा के संबंध में चुनौतियों को बढ़ाता है, जिसके परिणामस्वरूप कुपोषण, निर्जलीकरण और दूषित जल स्रोतों से फैलने वाली बीमारियां होती हैं, जो विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले समुदाय को प्रभावित करती हैं.

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