नई दिल्ली : शिक्षा के क्षेत्र में थर्ड जेंडर पर मॉड्यूल विकसित किया जा रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि स्कूलों के पाठ्यक्रम में थर्ड जेंडर की उपस्थिति को शामिल करना महत्वपूर्ण है. इससे भविष्य की पीढ़ियां उनके संघर्षों और योगदानों से परिचित हो सकेंगी. प्रशिक्षुओं के लिए विकसित किया जा रहा यह मॉड्यूल थर्ड जेंडर के विकास में शिक्षकों की भूमिका को प्रभावी बनाएगा. इसके लिए मंगलवार को दिल्ली में एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया.
कार्यशाला में राजधानी दिल्ली के सभी सरकारी डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग के प्रतिनिधि शामिल रहे. इनके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय समेत शिक्षा जगत के विशेषज्ञों एवं शिक्षकों ने भी इसमें भाग लिया. सरकार के डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (डाइट) के परियोजना समन्वयक डॉ. पवन कुमार के मुताबिक थर्ड जेंडर के प्रति संवेदनशीलता विकसित करना, समाज को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हंसराज सुमन ने थर्ड जेंडर पर कहा कि हिंदी साहित्य में विभिन्न कहानियों और कविताओं के माध्यम से हमेशा से मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया है. उन्होंने सुझाव दिया कि शिक्षकों को कक्षाओं में ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए, जो थर्ड जेंडर के योगदान को रेखांकित करते हों. थर्ड जेंडर को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि समाज उनके विषय में जाने. यह पहल न केवल विद्यार्थियों को जागरूक बनाएगी, बल्कि, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में भी सहायक होगी.