हैदराबाद:संयुक्त राष्ट्र (UN) से भारत के लिए बड़ी और खुशी की खबर सामने आई है. संयुक्त राष्ट्र ने 2024 के लिए भारत के विकास अनुमानों को संशोधित किया है. संयुक्त राष्ट्र ने इस वर्ष देश की अर्थव्यवस्था में लगभग सात फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया है. यूएन ने पिछले अनुमान को अपडेट करते हुए कहा कि इसकी इस बढ़त की बड़ी वजह सरकारी निवेश और प्राइवेट एक्सचेंज में बढ़ोतरी है. 2024 के मध्य तक विश्व आर्थिक स्थिति और संभावनाओं का डेटा गुरुवार 16 मई को जारी किया गया है.
UN ने 2024 के मध्य में विश्व आर्थिक स्थिति और संभावनाएं (WESP) शीर्षक से जारी रिपोर्ट में कहा है कि साल 2024 में इंडियन इकोनॉमी 6.9 प्रतिशत तो 2025 में 6.6 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ सकती है. इसका मेन रीजन सरकार के भारी निवेश और प्राइवेट कंजप्शन बढ़ना है. बाहरी यानी दुनिया की मांग बढ़ने और भारत के एक्सपोर्ट से ग्रोथ को और तेजी मिलती है. आने वाले वक्त में फार्मा और केमिकल क्षेत्रों से एक्सपोर्ट बढ़ने की बहुत संभावनाएं हैं.
संयुक्त राष्ट्र ने इस साल जनवरी में भारत के लिए 6.2 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगाया था, और मध्य-वर्ष के अपडेट में देश के लिए नवीनतम 6.9 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि का अनुमान ऊपर की ओर संशोधन दर्शाता है. जनवरी में लॉन्च की गई संयुक्त राष्ट्र विश्व आर्थिक स्थिति और संभावनाएं (डब्ल्यूईएसपी) 2024 रिपोर्ट में कहा गया था कि मजबूत घरेलू मांग और विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में मजबूत वृद्धि के बीच, 2024 में भारत में विकास दर 6.2 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान है.
2025 में भारत की वृद्धि का अनुमान
आर्थिक स्थिति के नये आंकलन में 2025 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि का जनवरी में अनुमान 6.6 प्रतिशत पर अपरिवर्तित है. अपडेट में कहा गया है कि भारत में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति 2023 में 5.6 प्रतिशत से घटकर 2024 में 4.5 प्रतिशत होने का अनुमान है, जो केंद्रीय बैंक के दो से छह प्रतिशत मध्यम अवधि के लक्ष्य सीमा के भीतर रहेगी. इसी तरह, अन्य दक्षिण एशियाई देशों में मुद्रास्फीति दर में 2023 में गिरावट आई और 2024 में इसके और कम होने की उम्मीद है.
मालदीव में 2.2 प्रतिशत से लेकर ईरान में 33.6 प्रतिशत तक, कुछ नरमी के बावजूद, 2024 की पहली तिमाही में खाद्य कीमतें ऊंची बनी रहीं, खासकर बांग्लादेश और भारत में. इसमें कहा गया है कि भारत में मजबूत विकास और उच्च श्रम बल भागीदारी के बीच श्रम बाजार संकेतकों में भी सुधार हुआ है. भारत सरकार पूंजी निवेश बढ़ाने की कोशिश करते हुए राजकोषीय घाटे को धीरे-धीरे कम करने के लिए प्रतिबद्ध है.