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लाल सागर में हौथी हमलों ने बढ़ाई भारतीय व्यापार जगत की मुश्किलें, पढ़ें क्या हैं चिंता के कारण

Red Sea Reasons For Concern : लाल सागर में हौथी हमलों ने भारतीय व्यापार जगत की चिंता बढ़ा दी है. ना सिर्फ आयात पर बल्कि निर्यात को कारोबार पर भी इसका असर पड़ा है. ईटीवी भारत के लिए एस सरकार बता रहे हैं क्या हैं चिंता के कारण...

Red Sea Reasons For Concern
प्रतिकात्मक तस्वीर

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 27, 2024, 2:51 PM IST

कोलकता :लाल सागर संकट के गहराने से यूरोप, उत्तरी अमेरिका उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व के कुछ हिस्सों के साथ भारत के व्यापार पर असर पड़ा है. एक ओर जहां बासमती चावल और समुद्री उत्पादों के निर्यात पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है. वहीं दूसरी ओर रूस और यूक्रेन से सूरजमुखी तेल के आयात पर भी इसका उपयोग पड़ा है. अक्सर ठंड के मौसम में इस्तेमाल होने वाले ये उत्पाद 6 से 7 रुपये प्रतिकिलोग्राम तक महंगा हो गया है. इसके बावजूद उत्पाद समय से नहीं पहुंच रहे हैं. इसमें करीब 18 से 20 दिन की देरी हो रही है.

घरेलू बाजार में बासमती चावल की कीमतों में करीब 10 प्रतिशत की गिरावट आई है क्योंकि इसके सबसे बड़े उपभोक्ता मध्य पूर्व तक निर्यात में समस्या आ रही है.फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (FIEO) के महानिदेशक और सीईओ डॉ. अजय सहाय ने कहा कि लाल सागर संकट अब लंबा होता दिख रहा है. हौथी हमलों में ईरान की संलिप्तता से महौल और खराब होगा. लॉजिस्टिक्स अब एक बड़ी चिंता बन गई है जो निर्यात और आयात को प्रभावित कर रही है.

गुरुवार को जारी क्रिसिल रेटिंग्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्य पूर्व में लाल सागर के आसपास चल रहे संकट का प्रभाव उद्योग और क्षेत्र-विशिष्ट और व्यापार बारीकियों के आधार पर अलग-अलग होने की उम्मीद है. एक ओर, कृषि वस्तुओं और समुद्री खाद्य पदार्थों जैसे क्षेत्रों में काम करने वाले कारोबारियों को माल खराब होने या ट्रांसपोटेशन में लागत बढ़ने से होने वाली समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे कारोबारियों की जोखिम को सहने की क्षमता कम हो गई है.

दूसरी ओर, कपड़ा, रसायन और पूंजीगत सामान जैसे क्षेत्रों में काम करने वाले कारोबारी ट्रांसपोटेशन की उच्च लागतों को वहन करने की बहुत कम क्षमता रखते हैं क्योंकि इस सेगमेंट में कारोबार पहले ही काफी मार्जिन पर होता है. इसका असर हमें अगली कुछ तिमाहियों में नजर आयेगा. वर्तमान स्थितियों के कारण ऑर्डर रुक गये हैं और पूंजी प्रवाह का चक्र पर इसका असर दिख रहा है.

भारतीय कंपनियां यूरोप, उत्तरी अमेरिका, उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व के हिस्से के साथ व्यापार करने के लिए स्वेज नहर के माध्यम से लाल सागर मार्ग का उपयोग करती हैं. पिछले वित्त वर्ष में भारत के 18 लाख करोड़ रुपये के निर्यात का 50% और 17 लाख करोड़ रुपये के आयात का 30% इन क्षेत्रों से आया था. पिछले वित्त वर्ष में भारत का कुल व्यापारिक व्यापार (निर्यात और आयात संयुक्त) 94 लाख करोड़ रुपये था, जिसमें 68% (मूल्य के संदर्भ में) और 95% (मात्रा के संदर्भ में) समुद्र के माध्यम से भेजा गया था.

नवंबर 2023 से लाल सागर क्षेत्र में नौकायन करने वाले जहाजों पर बढ़ते हमलों ने जहाजों को केप ऑफ गुड होप के वैकल्पिक, लंबे मार्ग पर विचार करने के लिए मजबूर किया है. इससे न केवल डिलीवरी का समय 15-20 दिनों तक बढ़ गया है, बल्कि माल ढुलाई दरों और बीमा प्रीमियम में वृद्धि के कारण लागत में भी काफी वृद्धि हुई है.

क्रिसिल ने कहा कि समुद्री खाद्य पदार्थों (मुख्य रूप से झींगा) पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव देखने को मिल सकता है क्योंकि उत्पादन का 80-90% निर्यात किया जाता है. इसका 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सा लाल सागर के माध्यम से निर्यात किया जाता है. उनकी खराब होने वाली प्रकृति और कम मार्जिन निर्यातकों को बढ़ती माल ढुलाई लागत और लैटिन अमेरिकी आपूर्तिकर्ताओं के प्रतिस्पर्धी दबाव के प्रति संवेदनशील बनाती है.

हैदराबाद स्थित जेमिनी एडिबल्स एंड फैट्स इंडिया के प्रबंध निदेशक प्रदीप चौधरी ने कहा कि मौजूदा संकट के कारण सूरजमुखी तेल वाले जहाज विभिन्न बंदरगाहों पर अटके हुए हैं. भारतीय बाजार में अब सूरजमुखी तेल की आपूर्ति नहीं हो रही है. हम जैसे कारोबारी ऊंची कीमत पर खरीदारी कर रहे हैं. इसके परिणामस्वरूप कीमतें बढ़ गई हैं.

बासमती चावल (उत्पादन का 30-35% इन क्षेत्रों में भेजा जाता है), निर्यातक दबाव महसूस कर रहे हैं क्योंकि बढ़ती माल ढुलाई लागत ने निर्यात पर अंकुश लगा दिया है और उनकी सूची का एक हिस्सा अब घरेलू बाजार में बेचा जा रहा है, जिससे प्राप्तियों में कमी आई है. ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया ने कहा कि स्थिति चिंताजनक है क्योंकि बासमती चावल की कीमतें गिर रही हैं. निर्यातकों को बहुत नुकसान होगा.

पूंजीगत सामान क्षेत्र के इंजीनियरिंग, खरीद और निर्माण कंपनियां के साथ काम करने वाले कारोबारी (प्रत्येक 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक के निर्यात और आयात के साथ) व्यापार मार्गों में निरंतर व्यवधान से प्रभावित हुए हैं. डिलीवरी में देरी के कारण इन्वेंट्री बढ़ रहा है और उन्हें मंदी का सामना करना पड़ रहा है.

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