नई दिल्ली:केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2024-25 पेश करते हुए कहा कि भारत के लिए तीव्र आर्थिक विकास आवश्यक है. यह तभी संभव है जब केंद्र और राज्य सरकारें ऐसे आर्थिक सुधार जारी रखें, जिनसे लघु और मध्यम उपक्रमों के लिए कुशलता के साथ परिचालन करना और कम लागत के साथ प्रतिस्पर्धा देना संभव हो. उन्होंने कहा कि बोझिल नियामकीय प्रक्रियाओं में कमी के द्वारा सरकार व्यवसायों को ज्यादा कुशल बनने, लागत घटाने और आगे बढ़ने के नए अवसरों के दोहन में सहायता कर सकती है.
आर्थिक समीक्षा के अनुसार अत्यधिक विनियमन से कंपनियों के लिए परिचालन से जुड़े सभी फैसलों की लागत बढ़ जाती है. सरकार द्वारा पिछले एक दशक में एमएसएमई के विकास को समर्थन और प्रोत्साहन देने के लिए कई नीतियों और उपायों को लागू किए जाने की बात को स्वीकार करते हुए समीक्षा में कहा गया कि नियामकीय परिदृश्य में कुछ चुनौतियां अभी भी बरकरार हैं. इसमें कहा गया कि नियामकीय अनुपालन के दबाव से औपाचारीकरण और श्रम उत्पादकता, रोजगार में बढ़ोतरी और नवाचार बाधित होते हैं, साथ ही विकास दर पर दबाव बढ़ता है.
समीक्षा के अनुसार भारत में कंपनियों के बीच छोटा बने रहने की प्रवृत्ति देखने को मिल रही है. और इसके पीछे तर्क यह है कि वे नियामकीय विभागों और नियमों एवं श्रम तथा सुरक्षा कानूनों से बचना चाहती हैं. इसका सबसे नकारात्मक असर रोजगार सृजन और श्रम कल्याण पर पड़ता है, जबकि अधिकांश विनियमन मूल रूप से इन्हें प्रोत्साहित करने और सुरक्षा देने के लिए बनाए गए हैं.
समीक्षा के अनुसार, केंद्र सरकार ने प्रक्रिया एवं शासन सुधार के क्रियान्वयन, कर कानून के सरलीकरण, श्रम विनियमनों को तर्कसंगत बनाकर और व्यावसायिक कानूनों के गैर आपराधिकरण के माध्यम से विनियमन का बोझ कम किया है. समीक्षा कहती है कि इस मामले में, राज्यों ने भी अनुपालन के बोझ में कमी और प्रक्रियाओं के सरलीकरण एवं डिजिटलीकरण के द्वारा विनियमन को सीमित करने की कवायद में भाग लिया है.
डीपीआईआईटी द्वारा तैयार व्यावसायिक सुधार कार्य योजना (बीआरएपी) के तहत किए गए राज्यों के मूल्यांकन से पता चलता है कि विनियमन में कमी से औद्योगीकरण को तेज करने में सहायता मिलती है. इस तरह के प्रयासों से राज्यों के लिए अगले चरण के सुधारों की नींव रखे जाने का उल्लेख करते हुए, आर्थिक समीक्षा 2024-25 में लागत के लिहाज से अहम विनियमनों की व्यवस्थित समीक्षा के उद्देश्य से राज्यों के लिए तीन चरणों वाली प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है.