हैदराबाद :ैंगोलिन दुनिया की दुर्लभ स्तनपायी है. इसके शल्क के कारण टाइगर भी इसका शिकार नहीं करते हैं. दूसरी ओर पर्यावरण के जानकारों के अनुसार वैश्विक स्तर पर इसकी सबसे ज्यादा तस्करी होती है. कई देशों में मान्यता है कि इसे शल्क का उपयोग अस्थमा से कैंसर जैसे गंभीर रोगों के इलाज के उपयोग आने वाली दवाइयों में होता है. वहीं कई कारणों से इसके मीट की काफी डिमांड है. वैश्विक स्तर पर इस प्रजाति के अस्तित्व पर संकट को देखते हुए आम लोगों में जागरूकता लाने के लिए हर साल फरवरी के तीसरे शनिवार (17 फरवरी 2024) को विश्व पैंगोलिन दिवस मनाया जाता है. यह एक विश्वव्यापी उत्सव है जिसका उद्देश्य इसके महत्व और इसकी दुर्दशा के बारे में जागरूकता बढ़ाना है.
कोई व्यवस्थित अध्ययन नहीं होने के कारण भारत में पैंगोलिन की वर्तमान आबादी अज्ञात है. भारतीय व चीनी पैंगोलिन भारत के वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की अनुसूची I में सूचीबद्ध किया गया है. इस कारण इसे उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्रदान है. इस कारण किसी भी रूप में शिकार, व्यापार या प्रजातियों या उनके शरीर के अंगों और इनसे तैयार उत्पादों का किसी अन्य रूप में उपयोग प्रतिबंधित है. यही नहीं इसे इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) रेड लिस्ट में शामिल है. भारतीय पैंगोलिन का वैज्ञानिक नाम मैनिस क्रैसिकाउडेटा (Manis Crassicaudata) है. भारतीय पैंगोलिन उत्तर-पूर्वी क्षेत्र को छोड़कर, हिमालय के दक्षिण में पूरे देश में पाया जाता है वहीं चीनी पैंगोलिन असम और पूर्वी हिमालय से होकर गुजरता है.
प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ-वन्यजीव) को हाल ही में पैंगोलिन के लिए पंचवर्षीय संरक्षण कार्य योजना तैयार करने के लिए एक अध्ययन समूह काम कर रहा है. मध्य भारत में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और ओडिशा पैंगोलिन को पकड़ने के प्रमुख क्षेत्र हैं. उत्तर पूर्वी राज्यों में पैंगोलिन के मांस की खपत काफी अधिक है. असम और मेघालय दोनों उप-प्रजातियों के संरक्षण के लिए एक समग्र योजना बनाने में मध्य भारत के राज्यों में शामिल हो सकते हैं, इसके अस्तित्व की कहीं बेहतर संभावना होनी चाहिए.
एशिया में पैंगोलिन प्रजातियां
- भारतीय पैंगोलिन (मोटी पूंछ वाला पैंगोलिन), मैनिस क्रैसिकौडाटा
- फिलीपीन पैंगोलिन, मैनिस क्यूलियोनेंसिस
- सुंडा पैंगोलिन (मलायन पैंगोलिन), मैनिस जावनिका
- चीनी पैंगोलिन, मैनिस पेंटाडेक्टाइला