श्रीनगर: केंद्र सरकार की तरफ से जल्द ही जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन हटाने की उम्मीद है, ताकि केंद्र शासित प्रदेश में उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में नई सरकार के शपथ ग्रहण का रास्ता साफ हो सके. राष्ट्रपति शासन हटाना क्यों जरूरी है और इसका प्रदेश के शासन पर क्या प्रभाव पड़ेगा. आइए जानते हैं...
राष्ट्रपति शासन क्यों लगाया गया?
जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन 31 अक्टूबर, 2019 को अनुच्छेद 370 और 35A को निरस्त करने और क्षेत्र को दो केंद्र शासित प्रदेशों - जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करने के बाद लगाया गया था.
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 73 के तहत राष्ट्रपति शासन का आदेश जारी किया था. यह कदम जून 2018 में महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के गिरने के बाद उठाया गया था, जब भाजपा ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था.
महबूबा मुफ्ती की सरकार गिरने के बाद राज्य संविधान की धारा 92 के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में छह महीने के लिए 'राज्यपाल शासन' लगाया गया था. 'राज्यपाल शासन' की अवधि समाप्त होने के बाद केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन लगा दिया, जो आज तक जारी है.
राष्ट्रपति शासन हटाना क्यों जरूरी?
राष्ट्रपति शासन के तहत, विधानसभा के कामकाज से संबंधित जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के कई प्रावधानों को निलंबित कर दिया गया था. नई सरकार के कार्यभार संभालने के लिए इन प्रावधानों को बहाल किया जाना चाहिए. अधिकारियों ने पुष्टि की है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से बहुत जल्द राष्ट्रपति शासन को औपचारिक रूप से रद्द करने के लिए अधिसूचना जारी की जाएगी.
एक आधिकारिक सूत्र ने कहा, "निर्वाचित सरकार को शपथ लेने की अनुमति देने के लिए राष्ट्रपति शासन की घोषणा को रद्द करने की आवश्यकता है."
राष्ट्रपति शासन को हटाए बिना, जम्मू-कश्मीर में सक्रिय विधानसभा या पूरी तरह से कार्यशील सरकार नहीं हो सकती.
राष्ट्रपति शासन हटाने की प्रक्रिया?
जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन को हटाने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी की आवश्यकता होती है. केंद्रीय कैबिनेट की सहमति के बाद राष्ट्रपति की तरफ से केंद्रीय प्रशासन को औपचारिक रूप से समाप्त करने के लिए आवश्यक अधिसूचना जारी की जाती है.
धारा 73 के तहत 2019 में राष्ट्रपति शासन की घोषणा नवगठित केंद्र शासित प्रदेश में संवैधानिक शून्यता को रोकने के लिए की गई थी, क्योंकि क्रियाशील विधानसभा का अभाव था. जम्मू-कश्मीर में अब निर्वाचित सरकार कार्यभार संभालने जा रही है, इसलिए केंद्रीय शासन को हटाया जाना जरूरी है.
करीब पांच साल बाद खत्म होगा केंद्रीय शासन
राष्ट्रपति शासन हटाना जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक शासन को बहाल करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है. केंद्र से लगभग पांच साल के सीधे नियंत्रण के बाद अब केंद्र शासित प्रदेश को एक क्रियाशील विधानसभा और उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली निर्वाचित सरकार मिलने जा रही है.
उमर अब्दुल्ला शुक्रवार को नेशनल कॉन्फ्रेंस विधायक दल के नेता चुने गए थे. उसके बाद भावी मुख्यमंत्री उमर ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से मुलाकात की और सरकार बनाने का दावा पेश किया. उन्होंने राज्यपाल को एनसी समेत कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों के समर्थन का पत्र सौंपा.
14 अक्टूबर को हो सकता है शपथ ग्रहण समारोह
सूत्रों का कहना है कि शपथ ग्रहण समारोह सोमवार 14 अक्टूबर को होने की संभावना है. पांच निर्दलीय विधायकों और आम आदमी पार्टी के एक विधायक के समर्थन के बाद एनसी-कांग्रेस गठबंधन के पास 54 विधायक हो गए हैं, जो बहुमत के आंकड़े 46 से अधिक है. वहीं, विपक्षी भाजपा के पास जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 29 सीटें होंगी.
ईटीवी भारत के साथ एक इंटरव्यू में उमर अब्दुल्ला ने कहा कि उनकी सरकार राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए एक प्रस्ताव पारित करने और इसे त्वरित कार्रवाई के लिए प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और अन्य वरिष्ठ नेताओं को सौंपने की योजना बना रही है.
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