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आखिर क्यों झारखंड अफीम के लिए बना सुरक्षित जगह, क्या कर रही हैं सुरक्षा एजेंसियां, जानिए वह सब कुछ जो जानना चाहिए - OPIUM IN JHARKHAND

झारखंड में अफीम की खेती क्यों बढ़ती जा रही है. जानिए रांची से राजेश कुमार सिंह और पलामू से नीरज की रिपोर्ट में.

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अफीम की फसल को नष्ट करते सुरक्षाकर्मी (ईटीवी भारत)

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Feb 26, 2025, 6:16 PM IST

रांची: पहाड़ों और जंगलों के बीच बसे खूबसूरत प्रदेश झारखंड में कभी नक्सलियों का वर्चस्व था. लेकिन अब ये राज्य नक्सलवाद के चंगुल से आजाद हो रहा है. हालांकि प्रदेश में अब एक नई समस्या ने दस्तक दे दी है. अगर जल्द ही इस समस्या का समाधान नहीं किया गया तो, यह भी नक्सलवाद की तरह एक नासूर बन सकता है.

झारखंड में हाल के वर्षों में अफीम की खेती में काफी बढ़ोतरी देखी गई है. हालांकि इसे रोकने के लिए राज्य सरकार केंद्रीय एजेंसियों के साथ मिल कर सख्त कदम उठा रही है. लेकिन वह फिलहाल तो नाकाफी दिख रहे हैं. क्योंकि अगर आंकड़ों की बात करें तो पिछले साल की तुलना में झारखंड में अफीम की खेती में कम से कम पांच गुणा वृद्धि हुई है. जनवरी 2025 से राज्य भर में चलाए गए व्यापक अभियानों के दौरान, झारखंड में 19,086 एकड़ भूमि पर अवैध अफीम की फसल नष्ट की गई है, इस दौरान, 283 मामले दर्ज किए गए और 190 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. जबकि 2024 में ये सिर्फ 3,974 एकड़ था.

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2025 में 21 फरवरी तक करीब 19 हजार एकड़ में अफीम की फसल नष्ट

2016 में पुलिस ने 259 एकड़ में लगी अफीम की फसल को नष्ट किया था. लेकिन इस साल 21 फरवरी तक 19,086 एकड़ में लगी फसल को नष्ट किया जा चुका है. सबसे ज्यादा खूंटी में 10,520 एकड़ में अफीम की फसल को नष्ट किया गया है. दूसरे स्थान पर रांची है. यहां 4624 एकड़ में फसल नष्ट की गई है. इसके अलावा, जागरूकता अभियानों के परिणामस्वरूप ग्रामीणों ने खुद की 850 एकड़ में लगी फसल को नष्ट किया है. इस जिले में अफीम की खेती के संबंध में 54 प्राथमिकी भी दर्ज की गई हैं, जिनमें 83 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.

'राज्य में पहली बार अफीम की खेती के खिलाफ व्यापक अभियान चलाया जा रहा है. खुद मुख्य सचिव इसकी मॉनिटरिंग कर रही हैं. समय-समय पर अभियान की समीक्षा हो रही है. इस अभियान में वन विभाग और एनसीबी को भी शामिल किया गया है. अब तक पुलिस के स्तर पर कार्रवाई होती थी. अभियान अब 15 मार्च तक चलेगा.' -अनुराग गुप्ता, डीजीपी

इन जिलों में होती है अधिकांश अवैध अफीम की खेती

खूंटी: 10,520 एकड़

रांची: 4,624 एकड़

पलामू: 396 एकड़

झारखंड में ही क्यों होती है अफीम की खेती

झारखंड में अफीम की खेती बढ़ने का प्रमुख कारण आर्थिक है. यहां ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी और बेरोजगारी काफी ज्यादा है. इसके अलावा यहां दुर्गम इलाके हैं, जहां आम तौर पर पुलिस नहीं जाती है. बाहर के लोग भी उन इलाकों में कम ही जाते हैं. ये बातें अफीम की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करती हैं. पारंपरिक फसलों की तुलना में अफीम की खेती से अधिक मुनाफा मिलता है. एक एकड़ में अफीम की अवैध खेती से लाखों रुपये की आमदनी हो सकती है, जबकि धान या गेहूं जैसी पारंपरिक फसलों से अपेक्षाकृत कम मुनाफा होता है. ये एक बड़ी वजह है कि किसान अफीम की अवैध खेती करते हैं. बीजों को चावल और अन्य फसलों के बीच छिपाकर लगाया जाता है, ताकि ड्रोन या पुलिस गश्त से बचा जा सके.

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माओवाद और संगठित अपराध के कारण हो रही अफीम की खेती

झारखंड में नक्सली संगठनों के संरक्षण में अफीम की खेती फल-फूल रही है. वे किसानों को सुरक्षा देते हैं और बदले में उनसे ‘लेवी’ वसूलते हैं. इसके अलावा संगठित आपराधिक गिरोह भी इस अवैध धंधे में संलिप्त हैं और अंतर्राज्यीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में यहां उगाए अफीम की तस्करी कर रहे हैं. अफीम की खेती के खिलाफ सख्त कानूनी प्रावधान होने के बावजूद, स्थानीय प्रशासन और पुलिस की कमजोर निगरानी के कारण इसकी खेती काफी बढ़ रही है. इसके अलावा जंगल और दुर्गम भौगोलिक स्थिति का फायदा भी अवैध अफीम उगाने वाले को मिलता है.

शुरू में ग्रामीण बिल्कुल नादान थे. बाहर के व्यापारी आए और लालच दिया. किसानों को बीज, उर्वरक और पटवन का पैसा एडवांस में मिल जाता है. किसानों को इसकी खेती की लत लग चुकी है. अफीम की फसल को बचाने के लिए ही पत्थलगड़ी की साजिश रची गई. यही वजह है कि पुलिस और बाहरियों को गांव में घुसने नहीं दिया जा रहा था.- मंगल मुंडा, सामाजिक कार्यकर्ता

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अफीम की खेती के लिए पत्थलगड़ी की साजिश

झारखंड के कई इलाकों में अफीम की फसल के लिए पत्थलगड़ी का इस्तेमाल किया गया. खूंटी में अड़की थाना क्षेत्र के कुरुंगा गांव के सामाजिक कार्यकर्ता मंगल मुंडा ने ईटीवी भारत से बात करते हुए जो बातें बताई हैं, उसे सुनकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे. उन्होंने कहा कि शुरू में ग्रामीण बिल्कुल नादान थे. बाहर के व्यापारी आए और लालच दिया. किसानों को बीज, उर्वरक और पटवन का पैसा एडवांस में मिल जाता है. किसानों को इसकी खेती की लत लग चुकी है. अफीम की फसल को बचाने के लिए ही पत्थलगड़ी की साजिश रची गई. यही वजह है कि पुलिस और बाहरियों को गांव में घुसने नहीं दिया जा रहा था.

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झारखंड सरकार अफीम की खेती रोकने के लिए लगातार कर रही प्रयास

मुख्य सचिव अलका तिवारी ने संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे अफीम की खेती को 100% नष्ट करें और अभियान जारी रखें. उन्होंने मामलों की तुलना में गिरफ्तारियों की कम संख्या पर चिंता व्यक्त की है और अधिकारियों से अधिक गिरफ्तारियां करने और सजा सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करने को कहा है. अफीम की फसल को नष्ट करने को लेकर इस साल अब तक 190 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. डीजीपी अनुराग गुप्ता ने पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे वन विभाग द्वारा अफीम की खेती को लेकर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट को आधार बनाकर संबंधित लोगों पर एफआईआर करें. अब तक वन विभाग सिर्फ अतिक्रमण का मामला दर्ज करता था.

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पलामू में अफीम की खेती नष्ट करने के साथ-साथ खेती करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का निर्देश जारी किया गया है. अफीम की खेती करने वालों को गिरफ्तार करने को कहा गया है और पूरे नेटवर्क पर नजर रखी जा रही है. खेती में शामिल रहने वालों के खिलाफ सबूत मिलने पर सख्त कार्रवाई की जाएगी, चाहे वह कोई भी व्यक्ति हो. चौकीदार के माध्यम से अपील भी की जा रही है. - वाईएस रमेश, डीआईजी, पलामू

पलामू में अफीम की खेती के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है, इंटरस्टेट भी चलाया गया है. कई खेती करने वाले भी गिरफ्तार हुए है.आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस छापेमारी कर रही है. - रीष्मा रमेशन, एसपी पलामू

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अफीम की खेती को रोकने के लिए क्या किया जा रहा प्रयास

झारखंड पुलिस और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) ने कई विशेष अभियान चलाकर अफीम की अवैध खेती को नष्ट कर रही है. इसके अलावा कहां अफीम की खेती हो रही है इसकी निगरानी के लिए ड्रोन और सैटेलाइट इमेजिंग की मदद ली जा रही है. एक तरफ जहां अफीम को खेत को नष्ट कर और लोगों को गिरफ्तार कर उन्हें हतोत्साहित किया जा रहा है. वहीं दूसरी तरफ किसानों को वैकल्पिक साधनों से जोड़ा भी जा रहा है. सरकार किसानों को वैकल्पिक फसलें जैसे औषधीय पौधों, बांस, सब्जियों और फलों की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है. किसानों को मधुमक्खी पालन, पशुपालन और कृषि आधारित लघु उद्योगों की तरफ मोड़ा जा रहा है.

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सरकार और कुछ एनजीओ द्वारा जागरूकता अभियान चलाया जा रहा

झारखंड की जमीन पर किसी भी तरह अफीम की खेती ना हो इसके लिए सरकार और कई गैर-सरकारी संगठन (NGO) ग्रामीण इलाकों में अफीम की खेती के दुष्परिणामों को समझाने के लिए जागरूकता अभियान चला रहे हैं. वहीं, स्कूलों और पंचायतों के माध्यम से किसानों को इसके कानूनी और सामाजिक दुष्प्रभावों के बारे में बताया जा रहा है. सख्त कानूनी कार्रवाई की जा रही है और ग्रामीणों को चेतावनी दी जा रही है. सरकार ने अफीम की खेती से जुड़े लोगों के खिलाफ कड़े कदम उठाने का फैसला किया है. इसमें भूमि जब्त करने, जेल की सजा और भारी जुर्माने जैसे प्रावधान शामिल हैं. नशा तस्करों और अफीम व्यापारियों के खिलाफ झारखंड पुलिस और केंद्रीय एजेंसियां संयुक्त रूप से कार्रवाई कर रही हैं.

अफीम की फसल (ईटीवी भारत)

झारखंड में अफीम की फसल को नष्ट करने के लिए क्या किया जा रहा है

ईटीवी भारत से बात करते हुए डीजीपी अनुराग गुप्ता ने कहा कि राज्य में पहली बार अफीम की खेती के खिलाफ व्यापक अभियान चलाया जा रहा है. खुद मुख्य सचिव इसकी मॉनिटरिंग कर रही हैं. समय-समय पर अभियान की समीक्षा हो रही है. इस अभियान में वन विभाग और एनसीबी को भी शामिल किया गया है. अबतक पुलिस के स्तर पर कार्रवाई होती थी. अभियान अब 15 मार्च तक चलेगा. उनसे यह पूछा गया कि क्या यह समझा जाए कि पहले भी इसी स्तर पर अफीम की खेती हो रही थी लेकिन पुलिस वहां तक नहीं पहुंच पा रही थी. जवाब में उन्होंने कहा कि यह कहना मुश्किल है कि पहले क्या हो रहा था. हम आज की बात कर सकते हैं. उन्होंने दो टूक कहा कि अफीम की खेती करने वालों की अब खैर नहीं. उन्होंने बताया कि जहां फसल को नष्ट किया गया है, वहां दोबारा खेती शुरू की गई है या नहीं, इसकी सैटेलाइट इमेज से मिलान की तैयारी की जा रही है.

अफीम की खेत को नष्ट करते झारखंड पुलिस के जवान (ईटीवी भारत)

क्या है अफीम की कीमत

भारत में मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में कुछ किसानों को अफीम उगाने की अनुमति दी जाती है. इसके लिए बाकायदा लाइसेंस दिया जाता है. वैध तरीके से उगाए गई इस अफीम का इस्तेमाल दवाइयों और अन्य औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है. इस अफीम के लिए सरकार ने मूल्य भी तय कर रखा है. भारत में आमतौर पर वैध अफीम की खरीद नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) और सेंट्रल ब्यूरो ऑफ नारकोटिक्स (CBN) द्वारा की जाती है.2023-24 में कानूनी अफीम की कीमत 2000 से 3000 प्रति किलोग्राम थी. हालांकि अवैध रूप से अफीम की कीमतों में कई गुणा की बढ़ोतरी हो जाती है.

अफीम की खेत को पास झारखंड पुलिस (ईटीवी भारत)

अवैध अफीम की कीमत कितनी होती है

एक अनुमान के मुताबिक झारखंड में एक एकड़ में लगी फसल से करीब तीन से चार किलो कच्चा अफीम निकला जाता है. यह उत्तम बीज, पटवन और खाद की मात्रा पर निर्भर करता है. स्थानीय तस्कर आम तौर पर 60 से 80 हजार रुपए प्रति किलो के हिसाब से किसानों से कच्चा अफीम खरीदते हैं. जब किसान खुद शहर में जाकर इसे एक लाख रुपए प्रति किलो तक बेचते हैं. यहां अफीम की कीमत इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि यह अवैध होता है और इसके लिए किसानों से लेकर तस्करों तक को काफी रिस्क उठाना पड़ता है. यही कच्चा अफीम जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहुंचता है तो प्रति किलो कीमत 3 से 4 लाख रुपए तक पहुंच जाती है. इसी अफीम को प्रोसेस कर कोकिन, हेरोइन जैसे ड्रग्स बनाएं जाते हैं और कीमत फिर से कई गुणा बढ़ जाती है.

अफीम की खेत को नष्ट करते झारखंड पुलिस के जवान (ईटीवी भारत)

अफीम की खेती करने वालों की स्वास्थ्य पर असर

सामाजिक कार्यकर्ता मंगल मुंडा बताते हैं कि अफीम की खेती करने वालों के स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ रहा है. पॉपी में चीरा लगाते समय अगर नाक में गंध चला गया तो गर्भ खराब होना तय है. दो महिलाओं का गर्भाशय निकलवाना पड़ा था . कई महिलाओं का गर्भ सड़ गया था. ग्रामीण कह देते हैं कि डायन खा गई. इस काम में बच्चों को भी लगाया जा रहा है. वैसे पुरुषों और बच्चों का शरीर सूख रहा है. अफीम की खेती करने वाले किसान अब एक बाल्टी पानी भी कुंआ से नहीं भर पा रहे हैं. कई बार पुलिस की वर्दी पहनकर भी ग्रामीणओं को सौदागर लूट लेते हैं. डर से किसान पुलिस के पास नहीं जाते थे. उन्होंने सुझाव दिया है कि पुलिस के आलाधिकारियों को प्रभावित जिलों के सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ-साथ सांसद और विधायकों के साथ समय समय पर बैठक करना चाहिए.

अफीम की खेती करने वालों के स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ रहा है. पॉपी में चीरा लगाते समय अगर नाक में गंध चला गया तो गर्भ खराब होना तय है. दो महिलाओं का गर्भाशय निकलवाना पड़ा. कई महिलाओं का गर्भ सड़ गया. ग्रामीण कह देते हैं कि डायन खा गई. इस काम में बच्चों को भी लगाया जा रहा है. पुरुषों और बच्चों का शरीर सूख रहा है. अफीम की खेती करने वाले किसान अब एक बाल्टी पानी भी कुंआ से नहीं भर पा रहे हैं.-मंगल मुंडा, सामाजिक कार्यकर्ता

मौत के सौदागरों को क्यों नहीं हो पाती है सजा

अफीम के सौदागरों को पुलिस पकड़ तो लेती है लेकिन वे कानून के दांव पेंच में जेल से बाहर निकल जाते हैं. इन्हें सजा इसलिए नहीं हो पाती है क्योंकि जब्ती की प्रक्रिया को एनडीपीएस एक्ट के प्रावधानों के तहत पूरा नहीं किया जाता है. हर थाना में डीडी किट यानी ड्रग डिटेक्शन किट दिया गया था. जब्ती की प्रक्रिया में उसका इस्तेमाल होना चाहिए. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो से जुड़कर पुलिस को काम करना पड़ता है. पुलिस को अपने स्तर से रेड और जब्ती करने पर गवाह मिलना मुश्किल होता है क्योंकि इस कारोबार को प्रतिबंधित संगठनों का समर्थन रहा है. लिहाजा, डर की वजह से स्वतंत्र गवाह सामने नहीं आ पाते हैं. ससमय गवाही नहीं दिलाए जाने का फायदा अभियुक्तों को मिल जाता है. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 के आने से अभियुक्तों को सजा दिलाने में प्रभावी साबित होने की संभावना बढ़ी है. क्योंकि अब साक्ष्यों को पुख्ता बनाने के लिए वीडियो रिकॉर्डिंग से लेकर कई तरह की प्रक्रिया पूरी करनी पड़ती है.

अफीम का फूल (ईटीवी भारत)

अफीम की फसल तैयार होने का प्रोसेस

अक्टूबर से खेत को तैयार किया जाता है. नवंबर में खेतों में मेड़ तैयार कर बीजारोपण किया जाता है. अफीम की फसल को बेहतर ग्रोथ के लिए ठंड और नमी की जरूरत होती है. नवंबर के अंत तक पौधा निकल जाता है. दिसंबर माह में फसल की लंबाई एक से डेढ़ फीट तक हो जाती है. जनवरी माह में फूल आने लगते हैं. इसके तीन रंग के फूल खिलते हैं. सबसे प्रमुख होता है सफेद. इसके बाद बैगनी और गुलाबी रंग के भी फूल खिलते हैं. कुछ खेतों में सफेद फूल में गुलाबी या बैंगनी का छींटा भी दिखता है. वैसे यह फसल तो होती है ज़हर लेकिन देखने में बेहद खूबसूरत होती है.

पॉपी निकलने के बाद उसमें लगाया जाता है चीरा

नवंबर में फसल लगाने पर फरवरी में पॉपी निकल आता है. पौधा परिपक्व होने पर गोल आकार वाले पॉपी में ब्लेड से चीरा लगाया जाता है. पॉपी के आकार के हिसाब से सामान्यत: छह से आठ चीरा लगाकर छोड़ दिया जाता है. उस चीरा से दूध की तरह दिखने वाले एक तरल पदार्थ निकलता है तो एक दिन में सूख कर उसी पॉपी पर ब्राउन रंग धारण कर लेता है. यही कच्चा अफीम होता है. खेती करने वाले हर पॉपी से निकले ब्राउन पदार्थ को खुरचकर पतीले में जमा करते हैं. कुछ दिन बाद उसी पॉपी पर पूर्व में हुई कटिंग वाले जगह को छोड़कर दोबारा चीरा लगाया जाता है. इस प्रक्रिया को कई बार दोहराया जाता है.

कच्चा अफीम, पोस्ता और डोडा का खेल

पुलिस सूत्रों के मुताबिक कच्चा अफीम को खरीदने के लिए पंजाब , राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, रांची, बिहार के खरीददार पहुंचते हैं और किसान को गुणवत्ता के हिसाब से कीमत लगाते हैं. यही व्यापारी उस कच्चे अफीम को दूसरे स्टेट में जाकर दो सो तीन गुणे दाम पर बेचते हैं. बाद में बड़े-बड़े ड्रग माफिया इसकी प्रोसेसिंग कराते हैं और हेरोइन समेत अन्य नशीले पदार्थ बनाकर प्रति ग्राम हजारों की उगाही करते हैं. वॉल्यूम के हिसाब से यह कारोबार सैकड़ों करोड़ में चला जाता है. पॉपी से कच्चा अफीम निकालने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद वह पॉपी सूखने लगता है. जिसमें से पोस्ता दाना निकलता है. इसकी भी अच्छी खासी कीमत मिलती है. इसके बाद सूख चुके अफीम के पौधे का शेष हिस्सा डोडा के रूप में इस्तेमाल होता है.

स्पेशल कोर्ट और स्पेशल थाने का स्टेटस

साल 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने एनडीपीएस यानी नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस एक्ट के तहत झारखंड के 12 जिलों में विशेष कोर्ट की स्थापना का आदेश दिया था. हाईकोर्ट के निर्देश पर खूंटी, चतरा, रांची, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिम सिंहभूम, सिमडेगा, पलामू, गढ़वा, लातेहार, हजारीबाग, गिरिडीह और धनबाद में विशेष कोर्ट के गठन का प्रस्ताव था. अबतक सिर्फ चतरा में एनडीपीएस के तहत विशेष कोर्ट का संचालन हो रहा है. अप्रैल 2024 में तत्कालीन डीजीपी अजय कुमार सिंह ने हाईलेबल मीटिंग कर हजारीबाग, जमशेदपुर, चतरा, खूंटी, सरायकेला और रांची में नारकोटिक्स थाना खोलने के लिए प्रस्ताव दिया था. अभी तक इसको भी अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है.

नशे के कारोबार पर सख्त सजा का है प्रावधान

नशे के कारोबार पर पूरी तरह से रोक नहीं लगने पर हाईकोर्ट भी फटकार लगा चुका है. जून 2024 में हाईकोर्ट अपनी मौखिक टिप्पणी में कह चुका है कि कहीं नशे के कारोबार में पुलिस की संलिप्तता तो नहीं है. एनडीपीएस एक्ट के तहत दो तरह के नशीले पदार्थ आते हैं. पहला है नारकोटिक्स यानी मादक और दूसरा है साइकोट्रॉपिक यानी मनोदैहिक. भारत में दोनों पदार्थों का उपयोग वर्जित है. इससे जुड़े अपराध के लिए मामले की गंभीरता के आधार पर एक साल से 20 साल तक की सजा का प्रावधान है.

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