देहरादून: हर साल 9 सितंबर को हिमालय दिवस मनाया जाता है. ये दिन हिमालयी पारिस्थितिकी और क्षेत्र के संरक्षण के लिए मनाया जाता है. हिमालय वन्यजीवों के संरक्षण और देश को खराब मौसम की स्थिति से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. हिमालय भारत की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत में बहुत महत्व रखता है. यह पर्वत श्रृंखला भूगोल के साथ-साथ जीव विज्ञान और संस्कृति में भी महत्वपूर्ण है. हिमालय पर्वत पश्चिम-उत्तर पश्चिम से पूर्व-दक्षिण पूर्व तक 2400 किलोमीटर तक फैला हुआ है. इसके पश्चिम में नंगा पर्वत और पूर्व में नमचा बरवा इसके आधार हैं. उत्तरी हिमालय काराकोरम और हिंदू कुश पर्वतों से घिरा हुआ है. सिंधु-त्सांगपो सिवनी एक सीमा के रूप में कार्य करती है, जो 50 से 60 किलोमीटर चौड़ी है, जो इसे उत्तरी दिशा में तिब्बती पठार से अलग करती है.
उत्तराखंड ने लिया इनिशिएटिव: हिमालय दिवस की शुरुआत 2014 में उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने की थी. पर्यावरणविद अनिल जोशी के साथ ही अन्य भारतीय पर्यावरणविदों ने इस विचार को विकसित किया था. सभी हिमालयी राज्यों के लोगों को उनके साझा पर्यावरण के लिए एक मंच पर लाने के प्रयास के लिए इसकी शुरुआत हुई. उत्तराखंड में 2010 के मानसून, बाढ़ और 2013 केदारनाथ आपदा जैसी प्राकृतिक आपदाओं के बाद नाजुक हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने की जरूरत थी, जिसके लिए इस दिन को डेडिकेट किया गया.
हिमालय का महत्व:हिमालय न केवल भारत बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण जीवन रेखा के रूप में कार्य करता है. यह पर्वत श्रृंखला भारत की प्रमुख नदियों-गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र - का जन्मस्थान है, जो लाखों लोगों के जीवन के लिए आवश्यक हैं. हिमालय के ग्लेशियर नदियों को पानी प्रदान करते हैं, जिससे उन्हें 'जल संरक्षण का स्रोत' उपनाम मिला है. अपने भौगोलिक महत्व से परे, हिमालय एक अद्वितीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्य रखता है. बदरीनाथ, केदारनाथ, अमरनाथ और कैलाश मानसरोवर जैसे तीर्थ स्थल हिंदू धर्म में पवित्र स्थलों के रूप में पूजनीय हैं. इसके अतिरिक्त, हिमालय पौधों और जानवरों की एक विशाल श्रृंखला का घर है, जिनमें से कई वैज्ञानिक और औषधीय रुचि के हैं.