नई दिल्ली :केंद्र सरकार ने 10 डिटेंशन सेंटर बनाए हैं. NRC को ध्यान में रखते हुए इन्हें बनाया गया था. 2019 के बाद सरकार ने 3 और डिटेंशन सेंटर बनाने को बात कही थी, जिसमें एक असम में, एक पंजाब में और एक कर्नाटक में बनना था. वर्तमान में असम में 6 डिटेंशन सेंटर हैं. 2011 में ही असम में 3 डिटेंशन सेंटर बना दिए गए थे.
अगस्त 2016 में सरकार ने लोकसभा में बताया था कि असम में 6 डिटेंशन सेंटर हैं. दिसंबर में लोकसभा में गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने बताया था कि 28 नवंबर 2019 तक असम के 6 सेंटरों में 970 लोग रह रहे हैं. विदेशी नागरिकों को रखने के लिए केंद्र सरकार ने 2009, 2012, 2014 और 2018 में भी राज्यों को डिटेंशन सेंटर बनाने के निर्देश दिए थे. बावजूद इसके जिस NRC को भारतीय जनता पार्टी ने प्रमुखता से 2019 में अपने संकल्प पत्र में जगह दी थी, और जिसकी वजह से विपक्षी पार्टियां लगातार उस पर हमलावर रहीं, ऐसा क्या हुआ कि 2024 के संकल्प पत्र से बीजेपी को NRC की बात हटानी पड़ी.
2019 में बनाया था मुद्दा :सवाल इसलिए है कि बीजेपी ने सीएए को तो इस बार संकल्प पत्र में जगह दी है, जबकि एनआरसी का जिक्र भी नहीं है, जबकि पिछले चुनाव में बीजेपी का यह प्रमुख चुनावी वादा था. 2019 के चुनाव में बीजेपी ने प्रमुखता से सीएए-एनआरसी को चुनावी मुद्दा बनाया था. इस मुद्दे पर खूब बयानबाजी भी हुई थी, धरना प्रदर्शन का भी दौर चला था.
शाह ने भी दिया था बयान:असम इकलौता राज्य है जहां सबसे पहले 1951 में एनआरसी तैयार की गई थी और उसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2019 में अपडेट भी किया गया था. दिसंबर 2019 में गृह मंत्री अमित शाह ने यहां तक कहा था कि 2024 से पहले NRC पूरे देश में लागू कर दी जाएगी. हालांकि दिसंबर 2023 में फिर बयान आया कि फिलहाल NRC लागू नहीं हो रही है.
दरअसल भाजपा हमेशा से कहती रही है कि अवैध घुसपैठियों की वजह से देशवासियों की सांस्कृतिक विरासत में बदलाव आ सकता है साथ ही उनके रोजगार के अवसर भी अवैध रूप से रह रहे लोग उठा लेते हैं. हालांकि 2024 में भाजपा का ये यू-टर्न मात्र चुनाव के लिए है या इस एजेंडे से पार्टी बाहर निकल गई है, ये अभी कहना मुश्किल होगा.
रिस्क नहीं उठाना चाह रही भाजपा :दरअसल विपक्षी पार्टियों ने इतना भ्रम फैला दिया है कि इससे लोगों की नागरिकता छिन जाएगी. यही वजह है कि भाजपा चुनाव के समय ये रिस्क नहीं उठाना चाह रही है.
ना सिर्फ कांग्रेस बल्कि टीएमसी और एआईएमआईएम भी लगातार इसपर हमलावर हैं, जिससे बीजेपी को ये संशय था कि एनआरसी को लेकर विरोधियों द्वारा फैलाए जा रहे भ्रम से मुस्लिम वोटरों का ध्रुवीकरण हो सकता है. नतीजा चुनाव में टीएमसी या विरोधियों को फायदा हो सकता है.