नई दिल्ली:भारत के नए मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना अपने परिवार में देश के टॉप कानूनी पद पर पहुंचने वाले पहले व्यक्ति हैं. हालांकि, 47 साल पहले उनके चाचा परिवार में पहले सीजेआई बन जाते अगर इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने उन्हें नजरअंदाज नहीं किया होता.
सीजेआई खन्ना को उनके कानूनी करियर में प्रेरणा देने वाले दिवंगत जस्टिस हंस राज खन्ना 1977 में देश के शीर्ष कानूनी पद के लिए उम्मीदवार थे, लेकिन इमरजेंसी के दौरान उन्होंने असहमतिपूर्ण फैसला सुनाया, जिसके बाद उन्होंने यह अवसर खो दिया.
कौन थे जस्टिस हंस राज खन्ना?
1912 में जन्मे जस्टिस हंस राज खन्ना ने अमृतसर में अपनी शिक्षा पूरी की. शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने एक वकील के रूप में अपना करियर शुरू किया. उसके बाद, उन्हें 1952 में जिला और सत्र न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया और बाद में उन्होंने दिल्ली और पंजाब के हाई कोर्ट में भी जज के रूप में काम किया.1971 में, वे सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचे. वह1977 में भारत के मुख्य न्यायाधीश पद के लिए एक मजबूत दावेदार थे.
किस निर्णय के कारण हंस राज खन्ना नहीं बन सके चीफ जस्टिस
बता दें कि 1976 में पांच जजों की संविधान पीठ ने एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला मामले में फैसला सुनाया, जिसमें यह निर्धारित करना था कि राज्य के हित में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को निलंबित किया जा सकता है.