वाराणसी :1992 में अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद उन सभी मस्जिदों पर पहरा बढ़ा दिया गया, जिनके बारे में यह कहा जाता था कि इन मस्जिदों का निर्माण मंदिरों को तोड़कर किया गया है. इनमें से एक मथुरा का कृष्ण जन्मस्थान मंदिर शामिल था तो दूसरी ओर बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद थी. इसके बाद मस्जिद को लोहे की ऊंची दीवारों से कवर कर दिया गया. 31 साल पहले यानी 1992 के बाद ज्ञानवापी परिसर के हर राज अंदर ही दफन होकर रह गए थे. कानूनी अड़चनों की वजह से ज्ञानवापी परिसर में प्रवेश तो दूर इसकी दीवारों को छूना भी मुश्किल था. श्रृंगार गौरी मामले में दायर याचिका के बाद बनाए गए कमीशन की कार्यवाही के तहत मस्जिद परिसर की वीडियोग्राफी सर्वे और फिर एएसआई सर्वे के बाद वह चीजें बाहर आईं जिसका इंतजार हर किसी को था. 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद 4 जनवरी 1993 को तत्कालीन जिलाधिकारी सौरभ चंद्र के निर्देशन में मस्जिद के तीन कमरें, जिन्हें तहखाना कहा जाता है, उसमें ताला लगा दिया गया. इन सब के बीच कल कोर्ट के आदेश के बाद देर रात जिलाधिकारी वाराणसी ने तहखाने में पूजा-पाठ शुरू करा दिया. आइए जानते हैं तहखाने का राज क्या है, और क्या कहते हैं इसके मालिक.
कई सालों के बाद बाहर आ रहा तहखाने का राज :तहखाने में पहले आम जनमानस का आना-जाना लगा रहता था. दोनों तहखानों का राज अब सालों बाद बाहर आ रहा है. ऐसें में इन तहखानों की हकीकत क्या है? क्या वाकई में इनके अंदर सांपों का बसेरा है या फिर शिवलिंग या हिंदुओं की आस्था से जुड़े मंदिरों के अवशेष विद्यमान हैं? इन्हीं सवालों का जवाब तलाशते हुए ईटीवी भारत की टीम दो तहखानों में से एक के मालिक से बातचीत की. जब विवाद शुरू हुआ तो अंदर मौजूद दो तहखाने में से एक हिंदू पक्ष के पंडित सोमनाथ व्यास के पास रहा. जबकि दूसरा हिस्सा यानी दूसरा तहखाना मस्जिद की देखरेख करने वाली कमेटी अंजुमन इंतजामियां मसाजिद के हिस्से में गया. जबकि जिसे तीसरा तहखाना बताया जा रहा है, वो तहखाना है ही नहीं. वह श्रृंगार गौरी यानी पश्चिमी गेट पर स्थित मस्जिद की गैलरी से होते हुए ऊपर जाने का एक रास्ता है.
वसीयत में इनको मिला मालिकाना हक :18 अप्रैल, 1669 को औरंगजेब के पुराने श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त कराने की बात कही जाती है. उसकी जगह पर ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण के बाद भी तमाम दस्तावेजों में है. उस वक्त मुगलों के आगे किसी की नहीं चलती थी, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया और देश आजाद हुआ तो उसके बाद इस पुराने मंदिर परिसर को लेकर कागजी कार्रवाई शुरू हुई. ज्ञानवापी परिसर में हमेशा से ही व्यास परिवार का कब्जा हुआ करता था. कानूनी दस्तावेजों पर गौर करें तो पाएंगे कि ज्ञानवापी परिसर और ज्ञानवापी मस्जिद में मौजूद दो तहखाने में से एक के मालिक पंडित बैजनाथ व्यास ने अपनी वसीयत अपने नाती पंडित सोमनाथ व्यास समेत अन्य तीन नातियों के नाम कर दी. इसमें ज्ञानवापी समेत मस्जिद परिसर में मौजूद एक तहखाने और ज्ञानवापी हाता व यहां मौजूद उनके घर पर नातियों का हक हो गया.
लॉर्ड विश्वेश्वर विश्वनाथ वर्सेस अंजुमन इंतजामिया मसाजिद :1991 में पंडित सोमनाथ व्यास ने 610/1991 के तहत कोर्ट में लॉर्ड विश्वेश्वर विश्वनाथ वर्सेस अंजुमन इंतजामिया मसाजिद के खिलाफ एक केस दायर किया. इसमें तीन अन्य वादी बनाए गए. इसमें उन्होंने ज्ञानवापी परिसर और मस्जिद पर हिंदुओं का हक बताया और इस पर पूजा-पाठ का अधिकार मानते हुए इसे हिंदुओं को सुपुर्द करने की मांग की. यहीं से इस पूरे मामले में विवाद शुरू हुआ. हालांकि, 2019 में अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने कोर्ट से इस पूरे प्रकरण में ज्ञानवापी मस्जिद का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की मांग की थी, लेकिन अंजुमन इंतजामिया ने इस पर स्टे ले लिया और मामला हाईकोर्ट में चला गया.
ऐसे बढ़ा विवाद :इस विवाद के बाद श्रृंगार गौरी मामले ने तूल पकड़ लिया और नियमित दर्शन को लेकर 5 महिलाओं ने एक याचिका दायर की, जिसमें कमीशन बनाने की मांग की गई. कोर्ट ने नए सिरे से ज्ञानवापी परिसर में सर्वे कराने के आदेश दिए. वहीं, सबसे बड़ी बात यह है कि 6-7 मई 2022 को कार्यवाही शुरू हुई, लेकिन वो पूरी नहीं हो सकी. इसके बाद शनिवार यानी 14 मई 2022 को फिर से कोर्ट के आदेश पर ज्ञानवापी परिसर में स्थित तहखानों के सर्वे के लिए टीम पहुंची, इस बीच नाटकीय तरीके से चीजें लगातार सामने आती रहीं. बयानों के दौर भी चलते रहे. कुछ ने तीन तहखाने होने की बात कही तो कुछ ने तहखानों की संख्या 4 बताई. इन सब के बाद जब 22 जुलाई 2024 के आदेश पर आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया की टीम ने 2023 में यहां सर्वे किया तो तहखाना के अंदर से बहुत सी मूर्तियां और मलबा व अन्य चीजों की भी जानकारी बाहर तक पहुंची. सर्वे रिपोर्ट में स्पष्ट भी किया गया है कि तहखाना के अंदर सनातन संस्कृति के बहुत से साक्ष्य मौजूद हैं.
दो तहखानों में से एक के मालिक पंडित सोमनाथ व्यास का साल 2000 में निधन हो चुका है. मरने से पहले उन्होंने अपनी वसीयत में अपने नाती पंडित शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास और पंडित जैनेंद्र कुमार पाठक को अपना वारिस बना दिया था. ज्ञानवापी परिसर में चलने वाले मुकदमे से लेकर सारी संपत्ति का मालिकाना हक इनको मिल गया. यहां तक कि उस तहखाने का भी, जिसको 29 साल बाद 14 मई को कोर्ट के आदेश पर खोला गया.
तीन नहीं दो हैं तहखाने :ईटीवी भारत से बातचीत में शैलेंद्र पाठक ने बताया कि तहखाना दो ही है. एक की चाबी उनके पास और प्रशासन के पास है. जबकि दूसरे तहखाना की चाबी अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के अधीन हैं. वहां भी एक ताले की दो चाबी है. इसमें एक प्रशासन के पास और एक मस्जिद कमेटी के पास है. सभी तालों को खोलने के लिए चाबियां उपलब्ध करवाई गईं थीं. कोई भी ताला तोड़ा नहीं गया है, लेकिन जो तीसरा तहखाना मीडिया रिपोर्ट में बताया जा रहा है. वो दरअसल तहखाना है ही नहीं, बल्कि श्रृंगार गौरी मंदिर के पिछले हिस्से में मस्जिद के पश्चिमी भाग के थोड़ा सा दूर एक गेट है, जो गैलरीनुमा हिस्से में खुलकर सीढ़ियों से ऊपर जाता है. यानी कमेटी के ऑफिस के पास वह कोई तहखाना नहीं बल्कि ऊपर जाने का रास्ता है.