मुंबई:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को राष्ट्रपति भवन में तीसरे कार्यकाल के लिए पद की शपथ ली. उनके साथ अन्य 72 मंत्रियों ने भी शपथ ली. एनडीए सरकार की नई मंत्रिपरिषद में जगत प्रकाश नड्डा को शामिल करने से संकेत मिलता है कि भाजपा अध्यक्ष पद के बदलाव के लिए पूरी तरह तैयार है. गौरतलब है कि जेपी नड्डा जनवरी 2020 से पार्टी के प्रमुख हैं. सवाल उठता है कि बीजेपी अध्यक्ष की दौड़ में कौन हो सकता है? हम सत्तारूढ़ दल के सामने कई विकल्प तलाशते हैं. अध्यक्ष पद की दौड़ में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के विश्वासपात्र सुनील बंसल और विनोद तावड़े के बीच मुकाबला होने की संभावना है.
विनोद तावड़े को मिल सकती है जिम्मेदारी
कभी भाजपा द्वारा विधान सभा की उम्मीदवारी खारिज कर विपक्ष का सॉफ्ट टारगेट बन चुके विनोद तावड़े को अब राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है. भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने संकेत दिए हैं कि तावड़े को जल्द ही कोल्हापुर में बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी.
2020 से केंद्रीय स्तर पर पार्टी निर्माण के लिए कड़ी मेहनत कर रहे तावड़े को उनके मंत्री पद से भी हटा दिया गया था. राष्ट्रीय स्तर पर कई महत्वपूर्ण आयोजनों में अग्रणी रहने वाले और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य तावड़े ने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पैठ मजबूती से जमा ली है. मोदी और शाह की ताकत के कारण विनोद तावड़े इस समय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की दौड़ में हैं. नतीजतन, केंद्रीय स्तर पर तावड़े के वजन बढ़ने की तस्वीर इस समय देखने को मिल रही है.
तावड़े से मंत्री पद लिया वापस
2014 में राज्य में भाजपा और शिवसेना गठबंधन की सरकार आने के बाद मुंबई के बोरीवली विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए विनोद तावड़े को राज्य का शिक्षा मंत्री का पद दिया गया था. हालांकि, पांच साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उन्हें मंत्रिमंडल से हटा दिया गया था. 2019 के विधानसभा चुनाव में तावड़े की उम्मीदवारी वापस ले ली गई थी, लेकिन पार्टी संगठन में नाइंसाफी के बावजूद तावड़े ने राष्ट्रीय स्तर पर कई जिम्मेदारियां संभालीं.
2020 में भाजपा के राष्ट्रीय सचिव का पद मिलने के बाद राज्य की राजनीति में उनका दखल कम हो गया. बिहार जैसे बड़े राज्य की कमान संभालते हुए तावड़े लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए अपने सांगठनिक कौशल के बल पर नीतीश कुमार जैसे नेता को भाजपा के साथ लाने में कामयाब रहे. इसका फायदा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन पर राज करते हुए भाजपा को मिला, जिसका असली श्रेय तावड़े द्वारा की गई योजनाबद्ध राजनीति को जाता है.
अध्यक्ष पद की दौड़ में अन्य नेता
भाजपा के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल 30 जून को समाप्त हो जाएगा. लोकसभा चुनाव को देखते हुए उन्हें एक्सटेंशन भी दिया गया था. अब भाजपा को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष मिलेगा क्योंकि उनका नाम मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है. अध्यक्ष पद के लिए सुनील बंसल का नाम भी शामिल है. ओम माथुर और के बंसल के नाम भी इस लिस्ट में शामिल हैं.
इस साल के लोकसभा चुनाव में बंसल ने शाह के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश में माइक्रो प्लानिंग की थी, जबकि पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, ओडिशा राज्यों के प्रभारी रहे बंसल के नेतृत्व में भाजपा को अच्छी सफलता मिली थी. दूसरी ओर, राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े ने बिहार के साथ हरियाणा, चंडीगढ़ के प्रभारी के तौर पर लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया है. इस प्रदर्शन के आधार पर यह देखना होगा कि पार्टी नेतृत्व योग्यता के आधार पर अध्यक्ष पद के लिए किसे चुनता है. चर्चा में अलग-अलग नाम रखकर गलत उम्मीदवार को आगे लाने की भाजपा की नीति को भुलाया नहीं जाएगा.
तावड़े ने विधानसभा चुनाव को लेकर जताय भरोसा
विनोद तावड़े जब राज्य मंत्रिमंडल में थे, तब मराठा आरक्षण का मुद्दा गरमाया हुआ था. उस समय भाजपा में यह आंदोलन चल रहा था कि राज्य का नेतृत्व कोई मराठा नेता करे, ताकि राज्य में गठबंधन सरकार पर असर न पड़े. तब भी विनोद तावड़े का नाम पीछे रह गया था. अब विनोद तावड़े ने देश के केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा पार्टी को दिलाया है और पार्टी के लिए ऊर्जावान राज्य तैयार कर रहे हैं. इसके चलते तावड़े तय कर रहे हैं कि विधानसभा चुनाव में किसे उम्मीदवार बनाया जाए. राज्य में कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव आने वाले हैं. इसका सीधा असर राज्य की राजनीति पर पड़ेगा.
तावड़े की 'प्रतीक्षा करो और देखो' नीति
बेशक, ये सभी मामले अभी चर्चा के स्तर पर हैं, लेकिन एक बात जगजाहिर है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पसंदीदा नेता को ही भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाएगा. भाजपा में संघ स्वयंसेवक या अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से आए नेता को प्राथमिकता दी जाती है. उसमें भी टीम से आए व्यक्ति को ज्यादा तरजीह मिलती है. तावड़े एबीवीपी (ABVP) से आगे आए हैं. ऐसे में अहम सवाल ये है कि टीम उनके नाम पर कैसे राज करेगी?
अगर विनोद तावड़े राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से चूक जाते हैं तो उन्हें राज्य की राजनीति में अहम पद दिया जा सकता है. कुछ राजनीतिक विश्लेषक तो उन्हें 'महाराष्ट्र का भावी मुख्यमंत्री' भी बता रहे हैं. हालांकि, तावड़े खुद 'प्रतीक्षा करो और देखो' की मुद्रा में हैं. इससे पहले भी वे दलीय राजनीति का अनुभव कर चुके हैं. तावड़े जानते हैं कि टूटने की प्रक्रिया में हमारा धैर्य ही ताकत है. इसलिए वे धैर्य बनाए रखते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ते रहेंगे. उन्हें करीब से जानने वाले कहते हैं कि ऐसा करते समय वह अपने लक्ष्य से नजर नहीं हटाएंगे.
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