नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उसके कंधे इतने चौड़े हैं कि वह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की आड़ में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से किसी भी आरोप या आलोचना को सहन कर सकता है, लेकिन लंबित प्रकरणों के संबंध में अदालत के समक्ष पक्षकार सोशल मीडिया पर तथ्यों को विकृत नहीं कर सकते हैं.
न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि यह बहुत सामान्य बात है कि न्यायाधीश वकीलों द्वारा की जा रही दलीलों के दौरान कभी-कभी कार्यवाही में किसी पक्ष के सपोर्ट में और कभी-कभी विपक्ष में प्रतिक्रिया देते हैं.
पीठ ने 8 अप्रैल को पारित एक आदेश में कहा, 'हालांकि, यह कार्यवाही के किसी भी पक्ष या उनके वकील को सोशल मीडिया पर तथ्यों को विकृत करने वाली टिप्पणियां या संदेश पोस्ट करने या कार्यवाही के सही तथ्यों का खुलासा नहीं करने का कोई अधिकार या छूट नहीं देता है.'
शीर्ष अदालत ने फैसले के लिए आरक्षित एक मामले के संबंध में भ्रामक फेसबुक पोस्ट के संबंध में असम के विधायक करीम उद्दीन बरभुइया के खिलाफ अवमानना कार्रवाई शुरू करते हुए ये टिप्पणियां कीं. पीठ ने बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की आड़ में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से लंबित मामलों के संबंध में प्रकाशित टिप्पणियों या पोस्ट पर अपना असंतोष व्यक्त किया.
बेंच ने कहा कि 'हालांकि, हमारे कंधे किसी भी दोष या आलोचना को सहन करने के लिए पर्याप्त हैं, लेकिन भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की आड़ में सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से अदालत में लंबित मामलों के संबंध में प्रकाशित टिप्पणियों या पोस्टों की प्रवृत्ति है. अदालतों के अधिकार को कमज़ोर करना या न्याय की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना गंभीरता से विचार करने योग्य है.'
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील जयदीप गुप्ता ने तर्क दिया कि फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर ऐसी पोस्ट प्रकाशित करके, कथित अवमाननाकर्ता ने इस अदालत के समक्ष लंबित कार्यवाही में हस्तक्षेप करने का प्रयास किया था. अदालत के समक्ष तर्क दिया गया था, 'जब मामला फैसले के लिए आरक्षित था, तो कथित अवमाननाकर्ता अपने फेसबुक अकाउंट पर ऐसी कोई पोस्ट प्रकाशित नहीं कर सकता था, और यह अदालत की कार्यवाही और न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करने का एक स्पष्ट प्रयास था.'