आसनसोल: वैसे लोग जो मुश्किल से अपना गुजारा कर पाते हैं, उनके लिए शिक्षा एक सपना है. कुछ साल पहले तक डिसरगढ़ मजार शरीफ के आसपास की फकीर बस्ती में शिक्षा की रोशनी नहीं पहुंचती थी. तब ज्यादातर परिवार भीख मांगकर गुजारा करते थे. हालांकि, मजार शरीफ के सूफी साहब ने फकीर बस्ती के परिवारों के बच्चों को शिक्षा की रोशनी में लाने के लिए एक स्कूल बनवाया था. स्कूल में शिक्षा देने की जिम्मेदारी विकास प्रसाद को मिली. सूफी साहब अब नहीं रहे लेकिन विकास प्रसाद अभी भी स्कूल चला रहे हैं. शिक्षक विकास प्रसाद मात्र 1 रुपए के वेतन पर फकीर बस्ती के बच्चों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं.
डिसरगढ़ में दामोदर नदी के बगल में मजार शरीफ है. इसके बगल में कई साल पहले किसानों की बस्ती बसाई गई थी. जिनका मूल व्यवसाय मजार शरीफ में भीख मांगना या कपड़े और अन्य सामान बेचना था. कुछ लोग छतरियों की मरम्मत करते थे. लेकिन शिक्षा की रोशनी उन गरीब परिवारों तक नहीं पहुंच पाई. साथ ही इलाके में कोई सरकारी स्कूल भी नहीं था. नतीजतन उन परिवारों के बच्चों को स्कूल जाना एक सपना जैसा हो गया. इससे प्रभावित होकर 2008 में मजार शरीफ के सूफी साहब ने मजार के बगल में एक स्कूल बनवाया ताकि फकीर बस्ती के छात्र शिक्षा प्राप्त कर सकें.
वहीं इलाके के पढ़े-लिखे युवक विकास प्रसाद छात्रों को मुफ्त में घर पर ट्यूशन पढ़ाते थे. इसलिए सूफी साहब ने विकास प्रसाद को बुलाकर स्कूल की जिम्मेदारी सौंप दी. बाद में स्कूल को उच्च प्राथमिक विद्यालय के लिए मंजूरी मिल गई. वर्तमान में यहां कक्षा एक से कक्षा सात तक की पढ़ाई होती है. इलाके के पढ़े-लिखे युवक उस स्कूल में मामूली वेतन पर काम करते हैं. स्कूल में छात्रों से सिर्फ एक रुपया लिया जाता है. साथ ही कुछ परोपकारी दान से स्कूल किसी तरह चल रहा है.