लखनऊ: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने पार्टी के महासचिव पद से त्यागपत्र दे दिया है. लगातार विवादित बयान देने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य समाजवादी पार्टी के कई नेताओं के निशाने पर थे और उनके बयानों को निजी बयान बताया जा रहा था. देवी-देवताओं सहित हिंदू धर्म को लेकर स्वामी प्रसाद लगातार विवादित टिप्पणी कर रहे थे. इसको लेकर सपा के वरिष्ठ नेताओं ने भी स्वामी प्रसाद मौर्य पर हमला बोला था.
बयानों को निजी बताए जाने से नाराजगी
मंगलवार को स्वामी प्रसाद मौर्य ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को संबोधित पत्र लिखकर राष्ट्रीय महासचिव पद से त्यागपत्र दे दिया. वह विधान परिषद के सदस्य बने रहेंगे. उन्होंने पत्र में लिखा है कि लगातार समाजवादी पार्टी को मजबूत करने का काम करते रहे हैं. उनके बयानों को पार्टी के नेताओं की तरफ से निजी बताया गया, जबकि कई अन्य नेता कई तरह के बयान दे रहे हैं. राष्ट्रीय महासचिव जैसे महत्वपूर्ण पद के साथ भेदभाव हो रहा है. ऐसे में मैं अपमानित महसूस कर रहा हूं. ऐसी स्थितियों में मैं त्यागपत्र दे रहा हूं, बिना राष्ट्रीय महासचिव पद के भी संगठन को मजबूत करने का काम करता रहूंगा.
कहा- हमेशा सपा का जनाधार बढ़ाने की कोशिश की
स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने पत्र में लिखा है कि जब से समाजवादी पार्टी में सम्मिलित हुआ, लगातार जनाधार बढ़ाने की कोशिश की. सपा में शामिल होने के दिन ही मैंने नारा दिया था "पच्चासी तो हमारा है, 15 में भी बंटवारा है". हमारे महापुरूषों ने भी इसी तरह की लाइन खींची थी. भारतीय संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर आंबेडकर ने "बहुजन हिताय बहुजन सुखाय" की बात की तो डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कहा कि "सोशलिस्टो ने बांधी गांठ, पिछड़ा पावै सो में साठ. शहीद जगदेव बाबू कुशवाहा व रामस्वरूप वर्मा जी ने कहा था "सौ में नब्बे शोषित हैं, नब्बे भाग हमारा है". इसी प्रकार सामाजिक परिवर्तन के महानायक कांशीराम साहब का भी वही था नारा "85 बनाम 15".
45 से 110 किए सपा के विधायक
स्वामी प्रसाद मौर्य ने पत्र में आगे लिखा है कि पार्टी द्वारा लगातार इस नारे को निष्प्रभावी करने एवं वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में सैकड़ों प्रत्याशियों का पर्चा व सिंबल दाखिल होने के बाद अचानक बदलने के बावजूद पार्टी का जनाधार बढ़ाने में वे सफल रहे. उसी का परिणाम था कि सपा के पास जहां मात्र 45 विधायक थे वहीं विधानसभा चुनाव 2022 के बाद यह संख्या 110 विधायकों की हो गई थी. तद्नतर बिना किसी मांग के मुझे विधान परिषद् में भेजा और ठीक इसके बाद राष्ट्रीय महासचिव बनाया, इस सम्मान के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद.
नहीं माना गया सुझाव
उन्होंने लिखा है कि पार्टी को ठोस जनाधार देने के लिए जनवरी-फरवरी 2023 में मैंने सुझाव रखा कि जातिवार जनगणना कराने, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ों के आरक्षण को बचाने, बेरोजगारी व बढ़ी हुई महंगाई, किसानों की समस्याओं व लाभकारी मूल्य दिलाने, लोकतंत्र व संविधान को बचाने, देश की राष्ट्रीय संपत्तियों को निजी हाथ में बेचे जाने के विरोध में प्रदेशव्यापी भ्रमण कार्यक्रम के लिए रथ यात्रा निकाली जाए, जिस पर आपने सहमति देते हुए कहा था होली के बाद इस यात्रा को निकाला जाएगा. आश्वासन के बाद भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आया. नेतृत्व की मंशा के अनुरूप मैंने पुनः कहना उचित नहीं समझा.
आदिवासियों, दलितों व पिछड़ों को जोड़ने की कोशिश की
स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा है कि पार्टी का जनाधार बढ़ाने का काम मैंने अपने तौर-तरीके से जारी रखा. इसी क्रम में आदिवासियों, दलितों व पिछड़ों को जो जाने-अनजाने भाजपा के मकड़जाल में फंसकर भाजपामय हो गए थे, उनके सम्मान व स्वाभिमान को जगाकर वापस लाने की कोशिश की तो पार्टी के ही कुछ छुटभैये और बड़े नेताओं ने "निजी बयान" कहकर इस धार को कुंठित करने की कोशिश की. मैंने अन्यथा नहीं लिया. मैंने ढोंग ढकोसला, पाखंड व आडंबर पर प्रहार किया तो भी यही लोग फिर इसी प्रकार की बात कहते नजर आए. कहा कि हमें इसका भी मलाल नहीं, क्योंकि मैं तो भारतीय संविधान के निर्देश के क्रम में लोगों को वैज्ञानिक सोच के साथ खड़ा कर सपा से जोड़ने की अभियान में लगा रहा. यहां तक कि इसी अभियान के दौरान, मुझे गोली मारने, हत्या कर देने, तलवार से सिर कलम करने, जीभ काटने, नाक-कान काटने, हाथ काटने आदि-आदि लगभग दो दर्जन धमकियों व हत्या के लिए 51 करोड़, 51 लाख, 21 लाख, 11 लाख, 10 लाख आदि भिन्न-भिन्न रकम देने की सुपारी भी दी गई. अनेकों बार जानलेवा हमले भी हुए, यह बात दीगर है कि प्रत्येक बार में बाल-बाल बचता चला गया.
कहा- पार्टी ने मेरे साथ भेदभाव किया
उल्टे सत्ताधारियों द्वारा मेरे खिलाफ अनेकों एफआईआर भी दर्ज कराई गई किंतु अपनी सुरक्षा की बिना चिंता किए हुए में अपने अभियान में निरंतर चलता रहा.
स्वामी प्रसाद ने लिखा है कि हैरानी तो तब हुई जब पार्टी के वरिष्ठतम नेताओं ने चुप रहने के बजाय मौर्य जी का निजी बयान कह करके कार्यकर्त्ताओं के हौसले को तोड़ने की कोशिश की. मैं नहीं समझ पाया. एक राष्ट्रीय महासचिव हूं, जिसका कोई भी बयान निजी बयान हो जाता है और पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव व नेता ऐसे भी हैं, जिनका हर बयान पार्टी का हो जाता है. एक ही स्तर के पदाधिकारियों में कुछ का निजी और कुछ का पार्टी का बयान कैसे हो जाता है, यह समझ के परे है. दूसरी हैरानी यह है कि मेरे इस प्रयास से आदिवासियों, दलितों, पिछड़ो का रुझान समाजवादी पार्टी की तरफ बढ़ा है. बढ़ा हुआ जनाधार पार्टी का और जनाधार बढ़ाने का प्रयास व वक्तव्य पार्टी का न होकर निजी कैसे? यदि राष्ट्रीय महासचिव पद में भी भेदभाव है, तो मैं समझता हूं ऐसे भेदभावपूर्ण, महत्वहीन पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं है. इसलिए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से में त्यागपत्र दे रहा हूं, कृपया इसे स्वीकार करें. पद के बिना भी पार्टी को सशक्त बनाने के लिए में तत्पर रहूंगा.
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