नई दिल्ली:अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्ज पर आज शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है. कोर्ट ने फैसले में कहा कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्ज को नए सिरे से तय किया जाएगा. इसके लिए तीन जजों की पीठ बनाई गई है. बता दें, देश की सर्वोच्च अदालत ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस बात का फैसला कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक रहेगा कि नहीं यह नई बेंच की जिम्मेदारी होगी. CJI चंद्रचूड़ समेत 4 जजों की पीठ एकमत थी. वहीं, 3 जज की राय जुदा थी. चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस पारदीवाला एकमत थे. वहीं, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा के फैसले अलग-अलग थे. इसके साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से अपने फैसल में 1967 के उस फैसले को निरस्त कर दिया, जिसमें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा देने से इंकार करने की बात कही थी.
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ 10 नवंबर को अपने पद से रिटायर हो रहे हैं. सेवानिवृत्त होने से पहले डीवाई चंद्रचूड़ का आज कार्यकाल का आखिरी दिन है. इस केस में सात जजों की एक पीठ ने आठ दिनों तक सुनवाई करने के बाद एक फरवरी को फैसला सुरक्षित रखा था, जिस पर अब फैसला आया है.
सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा कि क्या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है, जो धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उसे संचालित करने का अधिकार देता है. इस सात सदस्यीय पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल हैं.
बता दें, 1 फरवरी को एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के मुद्दे पर शीर्ष अदालत ने कहा कि एएमयू अधिनियम में 1981 का संशोधन, जिसने प्रभावी रूप से इसे अल्पसंख्यक दर्जा प्रदान किया, केवल 'आधे-अधूरे मन से' किया गया और संस्थान को 1951 से पहले की स्थिति बहाल नहीं की. जबकि एएमयू अधिनियम, 1920 अलीगढ़ में एक शिक्षण और आवासीय मुस्लिम विश्वविद्यालय को शामिल करने की बात करता है, 1951 का संशोधन विश्वविद्यालय में मुस्लिम छात्रों के लिए अनिवार्य धार्मिक शिक्षा को समाप्त कर देता है.
इस विवादास्पद प्रश्न ने बार-बार संसद की विधायी सूझबूझ और न्यायपालिका की उस संस्था से जुड़े जटिल कानूनों की व्याख्या करने की क्षमता का परीक्षण किया है, जिसकी स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान के नेतृत्व में प्रमुख मुस्लिम समुदाय के सदस्यों द्वारा मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज के रूप में की गई थी. कई साल बाद 1920 में, यह ब्रिटिश राज के तहत एक विश्वविद्यालय में तब्दील हो गया था.