नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें संकटग्रस्त एड-टेक फर्म बायजू के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही पर रोक लगा दी गई थी.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने एनसीएलएटी के उस आदेश को भी पलट दिया जिसमें बायजू को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के साथ 158.9 करोड़ रुपये के बकाया निपटान को मंजूरी दी गई थी.
पीठ में शामिल न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने बीसीसीआई को 158.9 करोड़ रुपये की निपटान राशि ऋणदाताओं की एक समिति के पास जमा कराने का निर्देश दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक अलग एस्क्रो खाते में रखी गई 158 करोड़ रुपये की राशि को ऋणदाताओं की समिति के एस्क्रो खाते में जमा किया जाएगा और इसका रखरखाव ऋणदाताओं द्वारा किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि एनसीएलएटी के नियम 11 का सहारा लेना उचित नहीं है और कानूनी प्रक्रिया को दबाने के लिए अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग नहीं किया जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एनसीएलएटी ने एड-टेक प्रमुख के खिलाफ दिवालियेपन की कार्यवाही बंद करते समय विवेक का प्रयोग नहीं किया, तथा मामले में नए सिरे से निर्णय देने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एनसीएलएटी के आदेश के खिलाफ अमेरिकी फर्म ग्लास ट्रस्ट कंपनी एलएलसी की अपील पर आया है.
2 अगस्त को एनसीएलएटी ने संकटग्रस्त एड-टेक फर्म को राहत प्रदान करते हुए उसके खिलाफ दिवालियेपन की कार्यवाही को रद्द कर दिया था और बीसीसीआई के साथ उसके 158.9 करोड़ रुपये के बकाया भुगतान को मंजूरी दे दी थी.
एनसीएलएटी का फैसला बायजू के लिए बड़ी राहत लेकर आया था क्योंकि इसने प्रभावी रूप से इसके संस्थापक बायजू रवींद्रन को कंपनी के वित्त और संचालन पर नियंत्रण वापस दे दिया था. हालांकि, 14 अगस्त को शीर्ष अदालत ने एनसीएलएटी के फैसले को 'अनुचित' करार दिया और बायजू और अन्य को नोटिस जारी करते हुए एनसीएलएटी के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी.