सुप्रीम कोर्ट का चुनाव आयोग को प्रमाणित मतदान रिकॉर्ड तत्काल प्रकाशित करने का निर्देश देने से इनकार - Supreme Court News
देश में हो रहे आम चुनाव के पहले दो चरणों के संबंध में डेटा को प्रकाशित करने की कथित देरी को लेकर चुनाव आयोग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली गई. याचिका में मांग की गई कि अदालत चुनाव आयोग को निर्देश दे कि मतदाता रिकॉर्ड को तत्काल प्रकाशित किया जाए. लेकिन सुप्रीम अदालत ने आयोग को ऐसा कोई भी निर्देश देने से इनकार कर दिया है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को चल रहे आम चुनाव के पहले दो चरणों के संबंध में डेटा प्रकाशित करने में कथित देरी की पृष्ठभूमि के खिलाफ प्रमाणित मतदाता रिकॉर्ड के तत्काल प्रकटीकरण की मांग करने वाली याचिका पर भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) को निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया.
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे से कहा कि अदालत एनजीओ के आवेदन पर विचार करने के लिए उत्सुक नहीं है, जिसमें चल रहे लोकसभा चुनाव के बीच, मतदान के 48 घंटों के भीतर लोकसभा चुनाव 2024 में डाले गए वोटों की संख्या सहित सभी मतदान केंद्रों पर मतदान के अंतिम प्रमाणित डेटा का खुलासा करने की मांग की गई है.
बता दें कि वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे एनजीओ एसोसिएशन एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. एनजीओ ने भारत के चुनाव आयोग को फॉर्म 17C, डाले गए वोटों के रिकॉर्ड का खुलासा करने का निर्देश देने की भी मांग की थी.
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया अदालत कोई अंतरिम राहत देने के लिए इच्छुक नहीं है, क्योंकि 2019 की याचिका (एडीआर द्वारा दायर) में से एक प्रार्थना 2024 के आवेदन में एक प्रार्थना (बी) के समान है. शीर्ष अदालत ने मामले की आगे की सुनवाई गर्मी की छुट्टियों के बाद तय की है.
पीठ ने कहा कि एनजीओ एडीआर ने अपने 2024 के आवेदन में जिस अंतरिम राहत की प्रार्थना की थी, वह 2019 की याचिका में दी गई अंतिम राहतों में से एक है. पीठ ने कहा कि 'अंतरिम राहत देने का मतलब अंतिम राहत देना होगा.' न्यायमूर्ति दत्ता ने दवे से कहा कि इस आवेदन पर चुनाव के बाद विचार किया जा सकता है और 'चुनाव के बीच में, हाथ हटाओ! हम हस्तक्षेप नहीं कर सकते, हम भी जिम्मेदार नागरिक हैं.'