नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश की प्रमाणित प्रति के बिना या केवल डाउनलोड की गई प्रति के साथ विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करने की प्रथा नियमों का उल्लंघन है. बेंच ने इस बात पर जोर देते हुए कहा "अब समय आ गया है कि अनुशासन की भावना पैदा की जाए ताकि कोर्ट को गुमराह न किया जाए."
सुप्रीम कोर्ट ने कहा अब समय आ गया है...
जस्टिस दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने कहा कि, पीठ के न्यायाधीशों का संयुक्त अनुभव रहा है कि हाई कोर्ट से आने वाले और निर्णय के लिए न्यायालय के समक्ष रखे जाने वाले अधिकांश मामलों में विशेष अनुमति याचिकाओं के साथ ऐसे आवेदन भी संलग्न किए जाते हैं, जिनमें ऐसी याचिकाओं में उल्लिखित निर्णयों और आदेशों की प्रमाणित प्रतियां दाखिल करने से छूट मांगी जाती है.
कोर्ट के इस नरम रुख ने वादियों में यह विश्वास पैदा किया...
बेंच ने 5 अगस्त को पारित आदेश में कहा कि, न्यायालय हमेशा ऐसे आवेदनों में दिए गए बयानों को सही मानकर स्वीकार करता है. बेंच ने कहा, "कोर्ट के इस नरम रुख ने वादियों में यह विश्वास पैदा कर दिया है कि वे सच्चाई से दूर बयान देकर भी बच सकते हैं... अब समय आ गया है कि अनुशासन की भावना पैदा की जाए ताकि न्यायालय को धोखा न दिया जाए."
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने आगे कहा कि आपराधिक कार्यवाही में विशेष अनुमति याचिकाओं के संबंध में, सुप्रीम कोर्ट नियम, 201 के आदेश XXII के नियम 3 में यह व्यवस्था है कि, याचिकाओं के साथ अपील किए गए निर्णय या आदेश की प्रमाणित प्रति संलग्न की जानी चाहिए. इसमें कहा गया है कि सिविल मामलों से संबंधित विशेष अनुमति याचिकाओं के लिए 2013 के नियम XXI के नियम 4 में भी ऐसा ही प्रावधान है.
बेंच ने कहा, 2013 के नियमों के आदेश V के नियम 1 (19) में यह व्यवस्था दी गई है कि रजिस्ट्रार न्यायालय के अधिकारों का प्रयोग निर्णयों, डिक्री, आदेशों, प्रमाणपत्रों या प्रमाणपत्र प्रदान करने वाले आदेशों की प्रमाणित प्रतियों को दाखिल करने से छूट के लिए आवेदन के संबंध में प्रावधान के अधीन कर सकता है. प्रावधान यह है कि विशेष अनुमति याचिका के साथ निर्णय या आदेश की प्रमाणित प्रति दाखिल करने से छूट के लिए आवेदन विशेष अनुमति याचिका के साथ न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा.
कोर्ट को गुमराह न किया जाए
बेंच ने कहा, "हम यह कह सकते हैं कि मुकदमा करने वाले, यह जानते हुए कि न्यायालय अन्य बातों के साथ-साथ, विवादित निर्णय और आदेश की प्रमाणित प्रति दाखिल करने से संबंधित मामलों के संबंध में उदार है, शायद ही कभी ऐसी प्रति के लिए आवेदन करते हैं और प्राप्त करते हैं..." न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने आगे कहा कि "यह सभी को मालूम है कि विशेष अनुमति याचिकाओं का एक बड़ा प्रतिशत बिना याचिकाकर्ता द्वारा वास्तव में ऐसी प्रमाणित प्रति दाखिल किए सूचीबद्ध होने के पहले दिन ही खारिज और निपटारा हो जाता है. यहां तक कि किसी भी वादी से यह वचन नहीं लिया जाता है कि वह उच्च न्यायालय के संबंधित अनुभाग या विभाग द्वारा उसे दिए गए निर्णय और आदेश की प्रमाणित प्रति दाखिल करेगा."
बेंच ने कहा, "हमें यह देखकर दुख हो रहा है कि 2013 के नियमों में विशेष अनुमति याचिका के साथ विवादित निर्णय और आदेश की प्रमाणित प्रति संलग्न करने के विशिष्ट प्रावधान होने के बावजूद, ऐसे प्रावधानों का उल्लंघन अधिक देखा जाता है." साथ ही पीठ ने कहा कि ऐसी स्थिति को बने रहने नहीं दिया जाना चाहिए. जब तक नियम मौजूद हैं, तब तक इनका पर्याप्त अनुपालन होना चाहिए. पीठ ने यह भी कहा कि भले ही विशेष अनुमति याचिका प्रस्तुत करने की तिथि पर प्रमाणित प्रति उपलब्ध न हो, लेकिन ऐसी प्रति के लिए आवेदन का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा, ताकि न्यायालय छूट के लिए प्रार्थना पर विचार कर सके.
दीवानी और फौजदारी पक्ष में विशेष अनुमति याचिका
सुप्रीम कोर्ट ने 20 अगस्त, 2024 से उन सभी वादियों के लिए अनिवार्य कर दिया है, जो हाई कोर्ट द्वारा पारित निर्णय आदेश की प्रमाणित प्रति के बिना दीवानी और फौजदारी पक्ष में विशेष अनुमति याचिका दायर करने का प्रस्ताव रखते हैं. ऐसी प्रतियों के लिए आवेदन करने की पावती प्रस्तुत करना होगा, साथ ही भविष्य में ऐसे निर्णय को रिकॉर्ड में रखने का वचन भी देने होंगे.
कलकत्ता हाई कोर्ट के एक निर्णय और आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने 5 अगस्त, 2021 के एक निर्णय और आदेश पर विचार करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसमें कलकत्ता उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत दायर एक आवेदन को खारिज कर दिया था. हाईकोर्ट की राय थी कि उक्त आवेदन में प्रतिवादी के रूप में शिकायतकर्ता ने धारा 200, सीआरपीसी के तहत शिकायत के साथ क्षेत्राधिकार मजिस्ट्रेट से संपर्क किया था, इसलिए आरोपों के संबंध में उचित निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए आरोप तय होने से पहले उसे सबूत पेश करने की अनुमति दी जानी चाहिए.
25 जून, 2024 की यह एसएलपी 11 जुलाई, 2024 को प्रस्तुत की गई थी. चूंकि विशेष अनुमति याचिका पर 774 दिनों का समय लगा था, इसलिए याचिकाकर्ताओं ने देरी की माफी के लिए आवेदन किया और याचिकाकर्ताओं ने आरोपित आदेश की प्रमाणित प्रति दाखिल करने से छूट के लिए भी आवेदन किया. अदालत ने 29 जुलाई, 2024 को एसएलपी पर विचार किया. बेंच ने कहा, "उस दिन, यह महसूस करते हुए कि कुछ गड़बड़ है, हमने एक आदेश दिया जिसमें याचिकाकर्ताओं को पैराग्राफ में दिए गए बयान के समर्थन में रिकॉर्ड दस्तावेज लाने के लिए एक आवेदन दायर करने की आवश्यकता थी..."
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