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बॉम्बे हाई कोर्ट के रवैये पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कहा- नागरिक की स्वतंत्रता सर्वोपरि - Supreme Court

Supreme Court News, Supreme Court, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नागरिक की स्वतंत्रता को सर्वोपरि बताया. अदालत ने जोर देकर कहा कि इससे संबंधित एक मामले में शीघ्रता के फैसला न लेने पर व्यक्ति अपने मौलिक अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिलने वाले अधिकार से वंचित हो जाएगा.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट

By PTI

Published : Feb 27, 2024, 3:02 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि किसी नागरिक की स्वतंत्रता सर्वोपरि है और इससे संबंधित मामले पर शीघ्रता से निर्णय नहीं लेने से व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत बहुमूल्य अधिकार से वंचित हो जाएगा.

अनुच्छेद 21 का अवलोकन करते हुए, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा से संबंधित है और संविधान की आत्मा है, शीर्ष अदालत ने हाल ही में कहा था कि उसे बॉम्बे उच्च न्यायालय से विभिन्न मामले मिले हैं, जहां जमानत या अग्रिम जमानत आवेदनों पर शीघ्रता से निर्णय नहीं लिया जा रहा है.

न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने 16 फरवरी के आदेश में कहा कि 'हमारे सामने ऐसे कई मामले आए हैं, जिनमें न्यायाधीश गुण-दोष के आधार पर मामले का फैसला नहीं कर रहे हैं, बल्कि अलग-अलग आधारों पर मामले को खत्म करने का बहाना ढूंढ रहे हैं.'

पीठ ने कहा कि 'इसलिए, हम बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध करते हैं कि जमानत/अग्रिम जमानत से संबंधित मामले पर यथाशीघ्र निर्णय लेने के लिए आपराधिक क्षेत्राधिकार का उपयोग करने वाले सभी न्यायाधीशों को हमारा अनुरोध बताएं.'

पीठ ने कहा कि 'यह कहने की जरूरत नहीं है कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 संविधान की आत्मा है, क्योंकि एक नागरिक की स्वतंत्रता सर्वोपरि है.' इसमें कहा गया है कि 'किसी नागरिक की स्वतंत्रता से संबंधित मामले पर शीघ्रता से निर्णय न करना और किसी न किसी आधार पर मामले को टालना पार्टी को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत उनके बहुमूल्य अधिकार से वंचित कर देगा.'

पीठ ने शीर्ष अदालत के रजिस्ट्रार (न्यायिक) से कहा कि वह अपने आदेश को उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को बताएं जो इसे मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखेंगे, वह इसे बॉम्बे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखेंगे. शीर्ष अदालत एक आरोपी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने 30 मार्च, 2023 के बॉम्बे हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसकी जमानत याचिका का निपटारा करते हुए उसे ट्रायल कोर्ट के समक्ष ऐसी याचिका दायर करने की अनुमति दी गई थी.

यह देखते हुए कि आरोपी लगभग साढ़े सात साल तक जेल में था, उच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि जमानत याचिका दायर करने से पहले, आरोपी ने इसी तरह की याचिका दायर की थी, जिसे अप्रैल 2022 में वापस ले लिया गया था. इस साल 29 जनवरी को शीर्ष अदालत ने पिछले साल मार्च के उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और दो सप्ताह के भीतर गुण-दोष के आधार पर मामले पर फैसला करने को कहा. इसके बाद हाई कोर्ट ने 12 फरवरी को आरोपी को जमानत दे दी.

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