गया: बिहार का गया जिला दुनिया भर में मोक्ष और ज्ञान की नगरी से प्रसिद्ध है. वैसे यहां के लोग एक और खासियत के लिए भी जाने जाते हैं, उनकी वो खासियत पहाड़ों और पथरीली मिट्टी से टकराने की है. यहां के लोग मन में किसी संकल्प को ठान लेते हैं तो उसे पूरा करके ही दम लेते हैं. चाहे वो दशरथ मांझीहो, जिन्होंने अपनी पत्नी फगुनिया की पीड़ा से दुखी होकर पहाड़ से टक्कर ली तो पर्वत पुरुष बन कर पहाड़ को चिर कर आम रास्ता बना दिया. या फिर लौंगी भुइयां हों जिन्होंने गांव में पानी पहुंचाने के लिए पथरीले रास्ते को काटकर नहर बना दी.
सुग्रीव राजवंशी ने पेश की मिसाल:अब इन महान पुरुषों के साथ एक और नाम जुड़ गया है. जिन्हें कम लोग ही जानते हैं. हम आपको इनके संघर्ष और लक्ष्य के लिए समर्पण की कहानी बताते हैं. जिन्होंने 16 वर्षों में पथरीली मिट्टी को काटकर एक नहीं तीन तालाबों की खुदाई कर पानी निकाल दिए. इस व्यक्ति का नाम है सुग्रीव राजवंशी.
पथरीली भूमि पर तीन तालाब खोद डाला :जिले के अतरी प्रखंड में चकरा पंचायत अंतर्गत रंगपुर भोजपुर गांव है. गांव गया के जेठियन और नालंदा जिले के राजगीर पंच पहाड़ी के बीच में स्थित है. गांव में 300 घरों की आबादी होगी जिस में एक सुग्रीव राजवंशी भी हैं. 40 वर्ष की उम्र से सुग्रीव ने पथरीली मिट्टी को काट कर तालाब खोदना शुरू किया और आज 55 वर्ष की उम्र में इन्होंने पंच पहाड़ी की तराई में पथरीली भूमि पर तीन तालाब खोद दिए.
5-6 एकड़ भूमि की सिंचाई की जाती : सुग्रीव के तालाबों से जानवर पानी पीते हैं. साथ ही आसपास की भूमि की सिंचाई भी की जाती है. जिस जमीन पर तालाब बनाए हैं वो वन विभाग की बताई जाती है. हालांकि अब इनके दो तालाब सुख गए हैं, एक तालाब में पानी है. जिससे 5-6 एकड़ भूमि की सिंचाई की जाती है.
सुग्रीव राजवंशी मैट्रिक पास हैं. उन्होंने 1985 में अपनी बहन के घर में रहकर मैट्रिक की परीक्षा दी थी. हलांकि उन्हें मलाल है कि अपने 6 बच्चों में सिर्फ एक को पढ़ा सके. सुग्रीव बताते हैं की पर्वत पुरुष दशरथ मांझी उनके गुरु हैं. उनके कार्यों से वो प्रभावित होकर कुछ करने की इच्छा रखते थे, पर गरीबी इतनी थी कि वह कुछ कर नहीं सकते थे.
''एक दिन दशरथ मांझी की प्रेरणा ने ऐसा झिंझोड़ा की पथरीली भूमि पर तालाब खोदने का संकल्प ले लिया. हालांकि यह संकल्प आसान नहीं था क्योंकि इसको पूरा करने की कठिनाई पहाड़ काटने से कम नहीं थी.''- सुग्रीव राजवंशी
2009 में चलाई थी पहली कुदाल : सुग्रीव बताते हैं कि साल 2009 में तालाब खोदने के लिए पहली कुदाल चलाई थी. बिना रुके, थके दो वर्षों तक मिट्टी काटते रहे जिसके परिणाम स्वरूप 130 फिट लंबा, 50 फिट चौड़ा और 15 फिट गहरा पहला तालाब बनाया. सुग्रीव बताते हैं कि पहले तालाब को खोदकर वो रुके नहीं बल्कि अपने कार्यों को जारी रखा और एक-एक कर 2024 तक 3 तालाब के खोदने के कार्य को पूर्ण कर लिया.
तालाबों का कर दिया नामकरण : सुग्रीव ने अपनी मेहनत और संघर्षों से निर्माण किए तालाबों का नामकरण भी कर दिया है. इनके द्वारा निर्माण किए गए तीनों तालाबों में प्रभात सरोवर, वंदना सरोवर और गठबंधन सरोवर है. सुग्रीव नामकरण के पीछे कारण बताते हैं कि प्रभात सरोवर इसलिए रखा क्योंकि वे सुबह 3 बजे से खुदाई शुरू करते और सूरज उगने से पहले बंद कर देते.
कई महीनों तक गांव के लोगों को इनके बारे में पता नहीं चला, लोग खुदाई देखकर परेशान होते थे कि आखिर ऐसा कौन कर रहा है? तालाब से गांव की आबादी लगभग 1 किलोमीटर दूर है. कई महीनों बाद लोगों ने सुग्रीव को जब पथरीली मिट्टी को काटते देखा तब लोगों को पता चला कि सुग्रीव ही हैं जो खुदाई कर रहे हैं. जबकि दूसरे सरोवर की कहानी इनके प्रेरणा पुरुष दशरथ मांझी से जुड़ी है.
सुग्रीव बताते हैं कि एक ऐसा समय आया जब उन्हें गांव के लोगों से ताने सुनने पड़े, गांव के लोग उनके संघर्षों की कदर करने के बजाय 'पगला' जैसे शब्दों से पुकारने लगे. पत्नी भी नाराज थी कि घर में कोई कमाने वाला नहीं है. काम करने के बजाए ये मिट्टी काटने में लगे हैं. तब ऐसी स्थिति में सुग्रीव की हिम्मत ने जवाब दे दिया. हौसले टूटने लगे, लेकिन तभी दशरथ मांझी के संघर्ष याद आए. फिर क्या था हर दिन दशरथ मांझी की वंदना कर खुदाई करने लगे और अब उसका नाम ही वंदना सरोवर रख दिया.
दिलचस्प है गठबंधन तालाब : सुग्रीव राजवंशी ने सबसे आखिर में गठबंधन तालाब की खुदाई की. हालांकि इनके गठबंधन शब्द का राजनीतिक कोई अर्थ नहीं है. सुग्रीव ने अपने आखिरी तालाब का नामांकरण गठबंधन इसलिए किया क्योंकि दो तालाबों की खुदाई में घर के सदस्य भी उनके कार्य से खुश नहीं थे, लेकिन जब दो तालाब की भूमिका सामने आने लगी तो घर के सदस्य भी तीसरे तालाब को खोदने में हाथ बंटाने लगे. सुग्रीव ने उनकी मदद को याद रखने के लिए उसका नाम ही गठबंधन रख दिया.
डीएम ने बनवाया था रास्ता : सुग्रीव राजवंशी बताते हैं कि 1990 के दशक में गया जिला पदाधिकारी के रूप में जब राजबाला वर्मा पदस्थापित थीं. तब उन्होंने अतरी के टेकरा पहाड़ी से होकर रास्ता बनाने का निर्देश दिया था. उस काम को करने के लिए सुग्रीव राजवंशी लगे थे. तत्कालीन डीएम राजबाला वर्मा ने पहाड़ी से होकर रास्ता बनाने के कार्यों के मार्गदर्शन के लिए दशरथ मांझी को जिम्मेदारी सौंपी थी. एक साल तक सुग्रीव ने दशरथ मांझी के मार्गदर्शन में काम किया. तभी से वह दशरथ मांझी को अपना गुरु मानने लगे.
पगला कहते थे गांव के लोग : सुग्रीव की बेटी मेनका कुमारी कहती हैं कि उनके पिता के जरिए खोदे गए तालाबों से सभी लाभाविन्त हुए हैं. लेकिन जब वो खुदाई कर रहे थे, तब हम लोगों को भी गांव के लोगों से बातें सुननी पड़ती थी, लेकिन वो अपने इरादे पर अटल रहे. आज जंगली जानवर पानी पीते हैं या उस से सिंचाई होती है तो बड़ा सूकून होता है. हालांकि इस कार्य के कारण व्यक्तिगत रूप से परिवार का विकास नहीं हुआ.
'सुखाड़ में जानवर मर रहे थे' :सुग्रीव राजवंशी की पत्नी सुमीर देवी बताती हैं कि ''2009 में सुखाड़ हुआ था, तब पशु पंछी पानी की व्यवस्था नहीं होने के कारण मर रहे थे. इसी को देख उनके पति ने गड्ढा खोदना शुरू किया और पानी की व्यवस्था की, लेकिन फिर बाद में इन्होंने तालाब बनाना शुरू कर दिया. इस कार्य में लगे होने की वजह से घर में कठिनाई होती रही लेकिन फिर भी वह अपने कार्यों से पीछे नहीं हटे. वह कहते थे कि हमें खाना दो या ना दो हम अपने जीवन में कम से कम एक तालाब का निर्माण करेंगे.''
गुरबत में जिंदगी काट रहा है परिवार : सुग्रीव ने पशुओं को पानी पिलाने और खेतों में सिंचाई के लिए तालाब की खुदाई की. उनके इस कार्यों की प्रशंसा 2015 में जिला प्रशासन और प्रखंड स्तरीय अधिकारियों के द्वारा खूब की गई. हालांकि उनकी आर्थिक तंगियों से संबंधित किसी ने कोई सहयोग नहीं किया. मिट्टी की टूटी हुई झोपड़ी में सुग्रीव राजवंशी और उनका परिवार रहने को मजबूर है.