नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को खूंखार गैंगस्टर अरुण गवली की समयपूर्व रिहाई के पक्ष में फैसला देने से इनकार करते हुए चर्चित हिंदी ब्लॉकबस्टर 'शोले' के एक लोकप्रिय डायलॉग को याद किया. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने गवली के वकील से कहा कि उन्हें पता होना चाहिए कि 'हर कोई अरुण गवली नहीं है. फिल्म 'शोले' में एक मशहूर डायलॉग है, 'सो जा बेटा, नहीं तो गब्बर आ जाएगा'. पीठ ने कहा कि यह डायलॉग इस मामले में बिल्कुल फिट बैठता है.
गवली का प्रतिनिधित्व कर रहीं वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन ने दलील दी कि मामले में अन्य सह-आरोपियों को जमानत दी गई है और बॉम्बे हाई कोर्ट ने समय से पहले रिहाई देकर सही किया है. उन्होंने कहा कि उनका मुवक्किल हृदय रोग से पीड़ित है और उसके फेफड़ों में खराबी है. हालांकि, पीठ ने कहा कि वह उनकी दलील को स्वीकार करने को तैयार नहीं है और उसने 3 जून के अपने आदेश को बरकरार रखा, जिसमें बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ के 5 अप्रैल के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी गई थी. शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई 20 नवंबर को तय की है.
हाई कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को 2006 की छूट नीति के तहत समय से पहले रिहाई के लिए गवली के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया था. सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता राजा ठाकरे ने पेश किया कि गवली के खिलाफ 46 से अधिक मामले हैं. इनमें हत्या के लगभग 10 मामले शामिल हैं. उन्होंने कहा कि गैंगस्टर 17 साल से अधिक समय से सलाखों के पीछे है. इस मोड़ पर पीठ ने पूछा क्या कारावास की अवधि के दौरान उसमें सुधार हुआ है?