मदुरै: तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले के एक मुस्लिम डॉक्टर जोड़े ने 2010 में इस्लामी रीति-रिवाज से शादी की थी. इस शादी से दोनों का एक बेटा भी है. 2018 में महिला ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी.
न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 2021 में पति को घरेलू हिंसा से हुई मानसिक क्षति के लिए मुआवजे के तौर पर 5 लाख रुपये और गुजारा भत्ता और भरण-पोषण के लिए 25,000 रुपये प्रतिमाह देने का आदेश दिया था.
2022 में सत्र न्यायालय ने भी इस आदेश को बरकरार रखा था. जिसके चलते महिला के पति ने मद्रास हाईकोर्ट में आपराधिक समीक्षा याचिका दायर की. सुनवाई के दौरान पति की ओर से दस्तावेज दाखिल किए गए, जिसमें कहा गया कि अगस्त, सितंबर और नवंबर 2017 के महीने में तीन बार तलाक के नोटिस भेजे गए और शरीयत काउंसिल ने स्वीकृति का प्रमाण पत्र जारी किया और इसी आधार पर उसने दूसरी महिला से शादी कर ली.
बिना कानूनी तलाक के दूसरी शादी की इजाजत नहीं
डॉक्टर की आपराधिक समीक्षा याचिका पर सुनवाई करने वाले मद्रास हाईकोर्ट की मदुरे बेंच के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने अपने फैसले में कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पहली पत्नी गुजारा भत्ता पाने की हकदार है. उन्होंने कहा कि भले ही याचिकाकर्ता का धर्म मुस्लिम पुरुष को 4 शादियां करने की इजाजत देता है. लेकिन कानून बिना कानूनी तलाक लिए दूसरी शादी की इजाजत नहीं देता, इसलिए पहली पत्नी को गुजारा भत्ता मांगने का पूरा अधिकार है.
जज ने कहा कि पहले दो तलाक नोटिस जारी किए गए थे. लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है कि तीसरा नोटिस जारी किया गया था. जज ने यह भी कहा कि पत्नी का दावा है कि उसकी शादी अभी भी वैध है.