नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली है. अब सभी की निगाहें मोदी 3.0 कार्यकाल पर हैं. सही अर्थों में इस बार गठबंधन सरकार है, ऐसे में क्या यह पुराने तरीके से काम करेंगे या बदलाव होगा. दरअसल 2024 के लोकसभा चुनावों में चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं. 'अजेय' मोदी लहर की चमक थोड़ी कम हो गई, क्योंकि बीजेपी बहुमत से 32 सीटें पीछे रह गई है. 2019 से तुलना करें तो 63 सीटों का नुकसान हुआ है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार कितनी अलग हो सकती है. इस पर वरिष्ठ पत्रकार एन राम ने ईटीवी भारत से बात की. पढ़िए साक्षात्कार के प्रमुख अंश.
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ईटीवी भारत:मोदी को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में लगातार तीसरा कार्यकाल मिला. अब हम क्या बदलाव देख सकते हैं? क्या आपको लगता है कि शासन पिछले कार्यकाल जैसा ही रहेगा?
एन राम :नहीं, यह पिछले 10 वर्षों से बहुत अलग होगा. वास्तव में, यह रिजल्ट गेम चेंजर है. मोदी अपने पहले कार्यकाल में डेवलपमेंट ओरिएंटेड प्रोग्राम पर आए थे. उन्हें 32% वोट मिले और वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर आए. फिर, 2019 में पार्टी ने उस स्थिति में सुधार करते हुए 37% वोट शेयर हासिल किया और 303 सीटें हासिल कीं, और मुझे लगता है कि यहां से पूरा एजेंडा बदल गया.
सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) जिसे पहले कार्यकाल के अंत में पेश किया गया था, दूसरे कार्यकाल में लागू हुआ. ये दूसरे कार्यकाल में और अधिक एग्रेसिव हो गया. साम्प्रदायिक मंच अधिक सशक्त एवं आक्रामक हो गया. एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) से काफी चिंता पैदा हुई. और फिर कश्मीर और अनुच्छेद 370. इसी का नतीजा है कि इंडिया गुट पार्टियों ने शासित राज्यों और राज्य सरकारों के खिलाफ वर्चुअल वॉर शुरू किया. विपक्ष शासित राज्यों में विधायी पहलों को विफल करने के लिए राज्यपालों का इस्तेमाल किया गया और उन्होंने बेहद शत्रुतापूर्ण व्यवहार किया, यहां तक कि प्रमुख राजनेताओं के खिलाफ भी कई एजेंसियों को तैनात कर दिया.
भाजपा का विरोध करने वालों द्वारा शासित राज्य अब दो प्रमुख ताकतों के कारण सांस ले सकते हैं. पहले हैं चंद्रबाबू नायडू और दूसरे हैं नीतीश कुमार. ये दोनों अतीत में भाजपा के आलोचक रहे हैं, विशेषकर नायडू. आंध्र प्रदेश और बिहार दोनों के लिए विशेष दर्जे की मांग की जा रही है. वे राज्य या राज्य के अधिकारों के पक्ष में मुखर होकर बोलते हैं. इसलिए भाजपा के लिए पहले की तरह सरकार चलाना मुश्किल हो जाएगा, खासकर मोदी और अमित शाह के लिए... मुझे लगता है कि वे पुराने तरीके से काम नहीं कर सकेंगे.
वह (मोदी) इन दो तथाकथित किंगमेकरों पर निर्भर हैं. विशेषकर चंद्रबाबू नायडू, जो एक मजबूत और अनुभवी नेता हैं. उनकी पार्टी टीडीपी ने अपने बल पर काम किया है. नीतीश कुमार की पार्टी को भी भाजपा और कुछ अन्य के साथ सीटें मिली हैं. सरकार के अंदर सौदेबाजी होगी. क्योंकि ये मंत्री (टीडीपी और जेडीयू से जुड़े) अब डमी नहीं रहेंगे. वे कम से कम अपना दावा तो करेंगे.
जनता दल सेक्युलर भी है. कर्नाटक में उन्हें सिर्फ दो सीटें मिलीं. लेकिन उन्हें करीब 5.6% वोट मिले. और यदि आप उन्हें देखें, तो वे कर्नाटक में भाजपा के पक्ष में बैलेंस बनाते हैं. उनकी मोलभाव करने की क्षमता अन्य दो जैसी नहीं है, लेकिन उन्हें नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता.
मीडिया की कवरेज और एग्ज़िट पोल पर :एग्जिट पोल हकीकत से कोसों दूर थे. हमारे कई ईमानदार पत्रकार जमीनी तथ्य लेकर आए. और मैं इसे उदाहरण के लिए 'हिंदू' में जानता हूं. हमारे संपादक सुरेश नामपथ को जमीनी स्तर से रिपोर्ट मिलती है. और एग्जिट पोल आने के बाद भी यह बिल्कुल स्पष्ट था कि बीजेपी 250 के नीचे रहेगी.
मुझे नहीं पता कि एग्जि पोल इतने गलत कैसे हो सकते हैं. सबसे बड़ी विश्वसनीयता वाले प्रदीप गुप्ता (एक्सिस माई इंडिया सीईओ) जो लाइव टेलीविजन पर रोए. उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया. हालांकि देखने के लिहाज से यह अच्छा सीन नहीं है, क्योंकि वह पहले बहुत विश्वसनीय निष्कर्ष लेकर आए थे. आप किसी पेशेवर के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं कर सकते. लेकिन मेरा मतलब यही है. इन एग्जिट पोल्स का यही हश्र है. वे दबाव में आ जाते हैं. उन्हें यह बताना होगा कि उन सभी ने इसे गलत कैसे समझा.
ईटीवी भारत:बीजेपी सरकार के लिए गठबंधन सरकार कोई नई बात नहीं है. 1998 से 2004 तक उनकी गठबंधन सरकार रही. आपको क्यों लगता है कि यह मोदी के लिए कठिन काम होगा?