चेन्नईः दुनिया की सबसे पुरानी और महत्वपूर्ण समुद्री प्रजातियों में से एक है समुद्री कछुआ. नीलंगराय से कोवलम तक फैले चेन्नई के तट पर बड़ी संख्या में मृत मिल रहे हैं. पर्यावरणविद इन कछुओं की मौत पर चिंता जता रहे हैं. उनका मानना है कि समुद्र में मानवीय गतिविधियों के कारण ही इन कछुओं को नुकसान पहुंच रहा है. एक विस्तृत सर्वे में इन महत्वपूर्ण जीवों बचाने के उपायों के बारे में पता चलता है.
इस सीजन में 353 कछुओं की मौतः 30 दिसंबर 2024 से जनवरी 2025 तक के आंकड़े के अनुसार चेन्नई के नीलांगराई और कोवलम तट के बीच 212 कछुओं की मौत हो गई. चेंगलपट्टू तट के सेम्मनजेरी और अलंबराई के बीच 142 कछुए मृत पाए गए. वार्षिक आंकड़ों की तुलना से मौतों में तेज वृद्धि दिखाई देती है. 2024 की शुरुआत से चेन्नई में 220 और चेंगलपट्टू में 133 कछुए, कुल मिलाकर 353 मौतें हुई.
क्या कहते हैं विशेषज्ञः ईटीवी भारत से बात करते हुए, ट्री एनजीओ के संस्थापक सुगराजा धरणी ने बताया, "हम 2002 से समुद्री कछुओं के संरक्षण पर काम कर रहे हैं. हमारे प्रयासों में मछुआरे, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, दक्षिणी ओडिशा और गोवा में गश्त करने वाले कर्मियों के बीच जागरूकता पैदा करना है. इन पहलों का समन्वय वन विभाग, मत्स्य विभाग, तटीय पुलिस और तट रक्षक जैसी सरकारी एजेंसियों के साथ किया जाता है."
क्या है मौत के कारणः दिसंबर से अप्रैल तक समुद्री कछुओं के लिए मांद बनाने का समय होता है. कछुए अंडे देने के लिए मन्नार की खाड़ी से तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और ओडिशा के समुद्र तटों की ओर पलायन करते हैं. इस प्रवास के हिस्से के रूप में, वे चेन्नई तट के करीब तैरते हैं. अक्सर तट से 5 किमी के भीतर. मोटर चालित मछली पकड़ने वाली नावें, जिन्हें कानून द्वारा 5 समुद्री मील (9.26 किमी) से आगे मछली पकड़ने के निर्देश है, अक्सर ईंधन की लागत बचाने के लिए तट के करीब चलती हैं.
जाल में क्यों फंस जाता कछुआः झींगा और केकड़ा पकड़ने के दौरान तट से 3-4 किमी के भीतर जाल डालते हैं. इनकी तलाश में भटक रहे कछुए भी फंस जाते हैं. अध्ययनों से पता चला है कि झींगा, कछुआ का पसंदीदा भोजन है. मछुआरे भी कहते हैं कि मछली पकड़ने के दौरान, औसतन तीन से चार कछुए उनके जाल में फंस जाते हैं. जिनमें से एक मर जाता है. मछुआरों का कहना है कि फंसे हुए कछुओं को वापस समुद्र में छोड़ देते हैं लेकिन इनमें से कई जीवित नहीं बच पाते हैं.