नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को असम सरकार की इस बात के लिए कड़ी आलोचना की कि उसने लिखित जवाब में अदालत के समक्ष 270 विदेशियों को मटिया ट्रांजिट कैंप में हिरासत में रखने के कारणों को नहीं बताया. यह मामला न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ के समक्ष आया. पीठ ने असम के मुख्य सचिव को अगली सुनवाई पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उपस्थित रहने का निर्देश दिया.
सुनवाई के दौरान पीठ ने राज्य सरकार के वकील से कहा कि उनका हलफनामा पूरी तरह से दोषपूर्ण है, क्योंकि यह यह स्पष्ट करने में विफल रहा कि शिविर में इतने सारे लोगों को क्यों हिरासत में रखा गया है. अपने पिछले आदेश का हवाला देते हुए पीठ ने यह औचित्य मांगा कि निर्वासन की प्रक्रिया शुरू किए बिना ही लोगों को हिरासत केंद्रों में क्यों रखा जा रहा है?
पीठ ने कहा कि वह राज्य के हलफनामे से कोई स्पष्टीकरण नहीं समझ पा रही है. साथ ही पीठ ने पूछा, "270 विदेशी हैं...राज्य की कीमत पर, इन लोगों को हिरासत में क्यों रखा जाना चाहिए?" वहीं राज्य के वकील ने कहा कि इन लोगों को तभी हिरासत में लिया गया जब उन्हें विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा विदेशी घोषित किया गया था. इस पर पीठ ने पूछा, निर्वासन की प्रक्रिया क्यों शुरू नहीं हुई?
पीठ ने अपने आदेशों का पालन न करने के लिए मुख्य सचिव की वर्चुअली उपस्थिति की मांग करते हुए कहा कि "हलफनामे में हिरासत में लेने का कोई औचित्य नहीं दिया गया है... निर्वासन के लिए उठाए गए कदमों का विवरण नहीं दिया गया है. यह इस कोर्ट के आदेशों का घोर उल्लंघन है."
राज्य सरकार के वकील ने अवैध प्रवासियों के निर्वासन की प्रक्रिया के बारे में बताया. हालांकि, पीठ, राज्य के वकील के तर्क से सहमत नहीं दिखी. पीठ ने पूछा कि निर्वासन की प्रक्रिया शुरू किए बिना हिरासत में क्यों रखा जा रहा है. इस पर असम सरकार के वकील ने कहा कि हलफनामा गोपनीय है और इसे सीलबंद ही रहना चाहिए.