नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि ऐसा लगता है कि राज्य सरकारों के पास उन लोगों को मुफ्त सुविधाएं देने के लिए पर्याप्त पैसा है, जो काम नहीं करते, लेकिन वे जिला न्यायपालिका के जजों के वेतन और पेंशन के संबंध में वित्तीय बाधाओं का हवाला देते हैं. यह मामला जस्टिस बीआर गवई और एजी मसीह की पीठ के समक्ष आया. अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने पीठ के समक्ष दलील दी कि न्यायिक अधिकारियों के वेतन और सेवानिवृत्ति लाभों के संबंध में निर्णय लेते समय सरकार को वित्तीय बाधाओं पर विचार करना होगा.
पीठ ने अगले महीने दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक दलों द्वारा किए गए वादों की ओर इशारा किया. महाराष्ट्र सरकार की लाडली-बहना योजना का भी हवाला दिया. एजी ने दलील दी कि सरकार की पेंशन देनदारी पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है. उन्होंने जोर देकर कहा कि वेतन पेंशन स्केल तय करते समय वित्तीय बाधाओं पर विचार किया जाना चाहिए.
पीठ ने कहा कि राज्य सरकारों के पास ऐसे लोगों को भुगतान करने के लिए पर्याप्त पैसा है, जो काम नहीं करते हैं, लेकिन जब जिला न्यायपालिका से संबंधित मामला आता है तो वित्तीय बाधाओं का हवाला देते हैं. पीठ ने कहा कि दिल्ली में, हमारे पास अब किसी न किसी पार्टी की ओर से घोषणाएं हैं कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो वे 2500 रुपये का भुगतान करेंगे.