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सुप्रीम कोर्ट: सरकारों के पास मुफ्त सुविधाओं के लिए पैसा उपलब्ध है, लेकिन जजों को वेतन देने में वित्तीय बाधा - SC MONEY AVAILABLE FOR FREEBIES

सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ 2015 में ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रही थी.

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प्रतीकात्मक तस्वीर. (ANI)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 8, 2025, 7:11 AM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि ऐसा लगता है कि राज्य सरकारों के पास उन लोगों को मुफ्त सुविधाएं देने के लिए पर्याप्त पैसा है, जो काम नहीं करते, लेकिन वे जिला न्यायपालिका के जजों के वेतन और पेंशन के संबंध में वित्तीय बाधाओं का हवाला देते हैं. यह मामला जस्टिस बीआर गवई और एजी मसीह की पीठ के समक्ष आया. अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने पीठ के समक्ष दलील दी कि न्यायिक अधिकारियों के वेतन और सेवानिवृत्ति लाभों के संबंध में निर्णय लेते समय सरकार को वित्तीय बाधाओं पर विचार करना होगा.

पीठ ने अगले महीने दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक दलों द्वारा किए गए वादों की ओर इशारा किया. महाराष्ट्र सरकार की लाडली-बहना योजना का भी हवाला दिया. एजी ने दलील दी कि सरकार की पेंशन देनदारी पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है. उन्होंने जोर देकर कहा कि वेतन पेंशन स्केल तय करते समय वित्तीय बाधाओं पर विचार किया जाना चाहिए.

पीठ ने कहा कि राज्य सरकारों के पास ऐसे लोगों को भुगतान करने के लिए पर्याप्त पैसा है, जो काम नहीं करते हैं, लेकिन जब जिला न्यायपालिका से संबंधित मामला आता है तो वित्तीय बाधाओं का हवाला देते हैं. पीठ ने कहा कि दिल्ली में, हमारे पास अब किसी न किसी पार्टी की ओर से घोषणाएं हैं कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो वे 2500 रुपये का भुगतान करेंगे.

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि मुफ्तखोरी की संस्कृति को एक विचलन माना जा सकता है. वित्तीय बोझ के संबंध में व्यावहारिक चिंताओं की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित किया. एमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता परमेश्वर के ने संविधान के अनुच्छेद 309 का हवाला देते हुए तर्क दिया कि इसका मतलब यह नहीं है कि न्यायपालिका के पास इस मामले में कोई कहने का अधिकार नहीं है.

परमेश्वर ने कहा कि अगर हम अधिक विविधतापूर्ण न्यायपालिका चाहते हैं, तो मुझे लगता है कि हमें अपने न्यायाधीशों को बेहतर वेतन देने और अपने न्यायाधीशों की बेहतर देखभाल करने की आवश्यकता है. नई पेंशन योजना का हवाला देते हुए, अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार ने समय के साथ राज्य के खजाने पर पड़ने वाले संचयी वित्तीय बोझ सहित कई कारकों को ध्यान में रखा है.

सर्वोच्च न्यायालय अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ द्वारा 2015 में दायर एक याचिका पर विचार कर रहा था, और इसने पहले पाया था कि भारत में जिला न्यायाधीशों को देय पेंशन दरें बहुत कम हैं. सर्वोच्च न्यायालय कल मामले की सुनवाई जारी रखेगा.

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