नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की वैधता से संबंधित एक मामले में कई नई याचिकाएं दायर होने पर नाराजगी व्यक्त की. दिन की कार्यवाही के आरंभ में वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने सुनवाई के लिए एक नई याचिका का उल्लेख किया, जिस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा "याचिकाएं दायर करने की एक सीमा होती है. बहुत सारे अंतरिम आवेदन दायर किए गए हैं. हम शायद इस पर विचार न कर पाएं." अब अप्रैल के पहले सप्ताह में इस पर सुनवाई होगी.
शीर्ष अदालत ने 12 दिसंबर 2024 के अपने आदेश के जरिए विभिन्न हिंदू पक्षों द्वारा दायर लगभग 18 मुकदमों में कार्यवाही को प्रभावी रूप से रोक दिया था, जिसमें वाराणसी में ज्ञानवापी, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद सहित 10 मस्जिदों के मूल धार्मिक चरित्र का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण की मांग की गई थी. यहां हुई झड़प में चार लोग मारे गए थे. इसके बाद न्यायालय ने सभी याचिकाओं को 17 फरवरी को प्रभावी सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया था.
12 दिसंबर के बाद, कई याचिकाएं दायर की गई. जिनमें एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, समाजवादी पार्टी नेता और कैराना सांसद इकरा चौधरी और कांग्रेस पार्टी शामिल हैं, जो 1991 के कानून के प्रभावी कार्यान्वयन की मांग कर रही हैं. यूपी के कैराना से लोकसभा सांसद चौधरी ने 14 फरवरी को मस्जिदों और दरगाहों को निशाना बनाकर कानूनी कार्रवाई की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की मांग की थी. शीर्ष अदालत ने पहले ओवैसी की इसी तरह की प्रार्थना वाली एक अलग याचिका पर विचार करने पर सहमति जताई थी.
हिंदू संगठन अखिल भारतीय संत समिति ने 1991 के कानून के प्रावधानों की वैधता के खिलाफ दायर मामलों में हस्तक्षेप करने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था. इससे पहले, पीठ छह याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई मुख्य याचिका भी शामिल थी. जिसमें 1991 के कानून के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती दी गई थी. यह कानून किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक परिवर्तन पर रोक लगाता है तथा किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को उसी रूप में बनाए रखने का प्रावधान करता है जैसा वह 15 अगस्त, 1947 को था.