सागर। एमपी के सातवें और सबसे बडे़ टाइगर रिजर्व वीरांगना रानी दुर्गावती (नौरादेही) टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या बढ़ती जा रही है, लेकिन उनकी डाइट की समस्या का हल नहीं हो पाया है. दरअसल टाइगर रिजर्व में पहले से ही Herbivores (शाकाहारी जानवर) की कमी के कारण बाघों के लिए भरपूर डाइट नहीं मिल पा रही है. ऐसे में टाइगर रिजर्व में बाघों के भरपूर भोजन के लिए अलग-अलग टाइगर रिजर्व से 1500 चीतल बुलाए जा रहे हैं. जिनके आने का सिलसिला शुरू हो गया है. सुखद संकेत ये है कि इन चीतलों को टाइगर रिजर्व की आवोहवा भा गयी है और अब इनके बच्चे भी टाइगर रिजर्व में कुलाचें भरते नजर आ रहे हैं.
नौरादेही में बसाए गए बाघ
जहां तक वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व की बात करें तो यहां बाघों के संरक्षण के लिए 2018 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण परियोजना के तहत बाघिन राधा और बाघ किशन को छोड़ा गया था. महज पांच सालों में अभ्यारण्य में बाघों की संख्या 19 पहुंच गयी. सितंबर 2023 में नौरादेही टाइगर रिजर्व और दमोह के वीरांगना रानी दुर्गावती अभ्यारण्य को मिलाकर वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व की अधिसूचना जारी की गयी. अब ये इलाका विशेष रूप से बाघों के संरक्षण के लिए संरक्षित हो गया है, लेकिन अभी तक कई गांवों का विस्थापन ना होने और पहले से ही शाकाहारी जानवर की कमी के कारण बाघों की डाइट की समस्या आ रही है.
अभ्यारण्य के जमाने से ही शाकाहारी जानवर की कमी
दरअसल टाइगर रिजर्व की बात करें, तो टाइगर रिजर्व Herbivores (शाकाहारी जानवर) की कमी से जूझ रहा है. जब नौरादेही अभ्यारण्य के तौर पर इसकी पहचान थी. अभ्यारण्य के विस्तृत क्षेत्रफल में कई सारे गांव बसे थे. ऐसे में यहां मानव आबादी के दबाव और शिकार जैसे कारणों के साथ-साथ जानवरों के लिए घास की समस्या के कारण यहां शाकाहारी जानवरों की कमी देखने मिलती थी. बताया जाता है कि नौरादेही अभ्यारण्य में 2011 तक बाघ मौजूद थे, लेकिन यहां भोजन की कमी के कारण पलायन कर गए, क्योंकि विशाल क्षेत्रफल में उन्हें आहार की समस्या से जूझना पड़ता था. इसके अलावा गांव विस्थापित ना होने के कारण और विशाल क्षेत्रफल की सुरक्षा बेहतर ना होने के कारण बडे़ पैमाने पर शाकाहारी जानवरों का शिकार भी किया गया.
फिलहाल 65 गांवों का विस्थापन बकाया
टाइगर रिजर्व की अधिसूचना जारी हुए करीब पांच महीने बीत चुके हैं और विस्थापन का काम पहले से जारी था, लेकिन अभी भी 65 गांव ऐसे हैं, जिनके विस्थापन की प्रक्रिया अधूरी है और बजट के अभाव के कारण अगले वित्तीय वर्ष तक इनका विस्थापन टल गया है. ऐसे में टाइगर रिजर्व के अंदर शाकाहारी जानवरों की सुरक्षा अभी भी चुनौतीपूर्ण काम है, क्योंकि इन शाकाहारी जानवरों का शिकार लोगों के लिए कम खतरनाक होता है, ऐसे में शिकारी भी इन्हें बडे़ पैमाने पर नुकसान पहुंचाते हैं.
अब तक मिले 850 चीतल
टाइगर रिजर्व में Herbivores की कमी को देखते हुए प्रबंधन द्वारा वन मुख्यालय के लिए 1500 चीतल का प्रस्ताव भेजा गया था. इस प्रस्ताव के तहत 1000 चीतल पेंच टाइगर रिजर्व और 500 कान्हा टाइगर रिजर्व से आने का सिलसिला जारी है. अब तक 850 चीतल नौरादेही टाइगर रिजर्व में आ चुके हैं. इनकी संख्या बढ़ाने के लिए प्रबंधन द्वारा चीतलों को बाडे़ में रखा जा रहा है. साथ ही उन इलाकों में छोड़ा जा रहा है, जो इलाके विस्थापित हो चुके गांवों के कारण पूरी तरह से खाली हो गए हैं. कोशिश की जा रही है कि ये जानवर यहां के माहौल में रच बस जाएं और अपनी संख्या बढाएं.
क्या कहते हैं वन्य प्रेमी
वन और वन्यजीव के संरक्षण के लिए कार्यरत प्रयत्न संस्था के संयोजक अजय दुबे कहते हैं कि 'मध्य प्रदेश के नवगठित दुर्गावती टाइगर रिजर्व में Herbivores
की कमी सबसे महत्वपूर्ण समस्या है. जो यहां पर शाकाहारी जानवर लाए जा रहे हैं, फिलहाल उनकी सुरक्षा पर भी सवाल खडे़ हो रहे हैं, क्योकिं अभी भी बड़ी संख्या में गांव टाइगर रिजर्व की सीमा के अंदर हैं. पूरी तरह से विस्थापित नहीं हो पाए हैं. जब तक पूरी तरह से विस्थापन नहीं होगा और इलाका सुरक्षित नहीं होगा, तब तक शाकाहारी जानवरों की सुरक्षा कटघरे में है.'