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टी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के छोटे चाय उत्पादकों से पत्तियां न खरीदने के फैसले पर हंगामा - Ruckus among Tea Manufacturers

असम में छोटे चाय उत्पादक चाय कंपनियों के सोषण से हताश और निराश है. चाय निर्माता कंपनियों ने 1 जून से छोटे किसानों से मिल हाउस में कच्ची चाय की पत्तियां नहीं लेने का फैसला किया है, जिसके बाद अब सभी छोटे चाय किसान परेशान हैं. यह फैसला असम बॉट लीफ टी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ने लिया है.

By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 22, 2024, 7:53 PM IST

Tea Manufacturers Association
टी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (फोटो - IANS Photo)

मोरन: राज्य के छोटे चाय उत्पादक गुणवत्तापूर्ण चाय के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, ताकि असम की चाय अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सके. लेकिन गरीब छोटे चाय उत्पादक अब चाय कंपनियों के शोषण से हताश और निराश हैं. राज्य के हजारों छोटे चाय किसान 1 जून से मिल हाउस में कच्ची चाय की पत्तियां नहीं लेने के कंपनियों के फैसले से परेशान हैं, जब वे पहले से ही कच्ची चाय की पत्तियों की गिरती कीमतों के दबाव में हैं.

क्या है विवाद: असम बॉट लीफ टी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एबीएलएमटीए) के 1 जून से छोटे चाय उत्पादकों से कच्ची चाय की पत्तियां नहीं खरीदने के फैसले के सामने आने के बाद छोटे चाय उत्पादकों में आक्रोश फैल गया है. इसके अलावा इसने अब ऑल असम स्मॉल टी ग्रोअर्स एसोसिएशन के साथ-साथ छोटे पैमाने के चाय उत्पादकों के बीच भी अनिश्चितता पैदा कर दी है.

चाय उत्पादक संघ द्वारा छोटे चाय उत्पादकों से कच्ची चाय की पत्तियां नहीं खरीदने के फैसले की घोषणा के बाद ऑल असम स्मॉल टी फार्मर्स एसोसिएशन ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की. ऑल असम स्मॉल टी ग्रोअर्स एसोसिएशन के केंद्रीय प्रचार सचिव योगेश विकास चेतिया ने कहा कि असम बॉट लीफ टी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन द्वारा पूरी तरह से एकतरफा तरीके से लिया गया निर्णय तर्कहीन, उत्तेजक और छोटे चाय उत्पादकों द्वारा उत्पादित कच्ची चाय की पत्तियों की कीमतों को कम करने की गहरी साजिश है.

उन्होंने कहा कि निर्माता संघ के इस तरह के एकतरफा फैसले से न केवल छोटे चाय उत्पादक नाराज हैं, बल्कि उनके अस्तित्व का रास्ता भी बंद होने का खतरा पैदा हो गया है. उन्होंने चेतावनी दी कि असम में लाखों छोटे चाय किसानों को बंधक नहीं बनाया जा सकता है.

किस वजह से हुआ हंगामा?: उल्लेखनीय है कि राज्य में चाय कारखानों ने कच्ची चाय की पत्तियों में कीटनाशकों की मौजूदगी का हवाला देते हुए 1 जून से कच्ची चाय की पत्तियां नहीं उठाने का फैसला किया है. ऐसे में राज्य के लाखों छोटे चाय उत्पादकों का भविष्य गहरी अनिश्चितता में है.

असम के लघु चाय उत्पादक संघ द्वारा उल्लिखित आंकड़ों के अनुसार, पूरे असम में 2 लाख से अधिक छोटे चाय उत्पादक संघ के साथ पंजीकृत हैं. इनमें से डिब्रूगढ़ जिले में 27,000 और तिनसुकिया में 56,000 चाय उत्पादक हैं. इन दो जिलों में चाय उत्पादकों की संख्या सबसे अधिक है, जबकि कई अन्य जिले एसोसिएशन से संबद्ध नहीं हैं.

एसोसिएशन ने कहा कि ऑल असम स्मॉल टी ग्रोअर्स एसोसिएशन ने राज्य सरकार के उद्योग विभाग से इस संबंध में विशेष उपाय करने का आग्रह किया है. क्योंकि कई चाय श्रमिकों के परिवार सीधे तौर पर इन छोटे चाय उत्पादकों पर निर्भर हैं. ऐसे में लाखों चाय बागान श्रमिक अपनी आजीविका से वंचित हो जायेंगे.

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