रांची:झारखंड की राजधानी रांची का बड़ा तालाब मुसीबत का सबब बन गया है. तालाब के पानी से दुर्गंध आ रहा है. इसकी वजह से राहगीर तो परेशान हैं ही, सबसे ज्यादा परेशानी बड़ा तालाब के आसपास रहने वाले लोगों को झेलनी पड़ रही है. झारखंड हाईकोर्ट भी इस मसले पर सिस्टम को फटकार लगा चुका है. हाय-तौबा मची तो रांची नगर निगम के स्तर पर ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव किया गया. फिटकिरी भी डाली गई. लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात.
दुर्गंध फैला रहा है रांची का बड़ा तालाब, चुटकी में हो सकता है समाधान (ईटीवी भारत) एक दौर था जब मछली पकड़ने के लिए मछुआरे इस तालाब में जाल डाला करते थे. आसपास के लोग नहाया करते थे. लेकिन शहरीकरण का दौर इस सुनहरे तालाब के लिए अभिशाप बन गया. अपर बाजार के आसपास के नालों और अस्पताल का मेडिकल वेस्ट गिरने लगा. अब यह तालाब सिर्फ छठ पर्व का गवाह बनकर रह गया है. क्योंकि पर्व के वक्त इसकी साफ सफाई होती है ताकि श्रद्धालु अर्घ्य दे सकें.
एक्सपोजर विजिट पर क्यों गई थी नगर निकाय की टीम
आश्चर्य की बात है कि तत्कालीन रघुवर सरकार के कार्यकाल में झारखंड के शहरी निकायों मसलन नगर निगम, नगर परिषद और नगर पंचायत के अधिकारी, नगर प्रबंधक और विभागीय अधिकारियों की टीम अंबिकापुर मॉडल को समझने के लिए एक्पोजर विजिट पर गई थी. वहां की व्यवस्था देख अधिकारी बेहद आशान्वित थे. इस टीम ने अंबिकापुर का रानी सति मंदिर तालाब भी देखा, जो कभी गंदगी का पर्याय था, आज वहां का पानी ई-बॉल के इस्तेमाल की वजह से स्वच्छ हो गया है. ये सब देखने के बाद भी वापस लौटते ही एक्सपोजर टीम के कागज-कलम धरे के धरे रह गये. एक्सपोजर विजिट पर किए गये सरकारी खर्च पानी में चले गये.
इस समस्या का संभव है समाधान
इस समस्या के समाधान के लिए ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है. झारखंड के पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में गंदे और बदबूदार तालाबों को बचाने के लिए एक पहल शुरू हुई है, जिसे कई राज्य अपना रहे हैं. इसके पानी को बैक्टिरिया और फंगस के मिश्रण से तैयार ई-बॉल के इस्तेमाल से साफ किया जा रहा है. यह पर्मानेंट सोल्यूसन साबित हो सकता है.
छत्तीसगढ़ के साइंटिस्ट के पास है समस्या का हल
छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर स्थित हॉर्टिकल्चर विभाग में लैब साइंटिस्ट हैं डॉ प्रशांत शर्मा. ईटीवी भारत की रांची टीम ने इनसे फोन पर बात की तो इन्होंने गंदे तालाबों के पानी से दुर्गंध हटाने और उसे स्वच्छ करने का तरीका बताया. उन्होंने बैक्टिरिया और फंगस के मिश्रण से कंसोरटिया तैयार किया है. इसको ई-बॉल नाम दिया गया है. जो इको सिस्टम के लिए सेफ है.
उन्होंने बताया कि तालाब की गहराई और उसके क्षेत्रफल के हिसाब से ई-बॉल को तय मात्रा में पानी में डाला जाता है. यह सिलसिला कई चरण में चलता रहता है. उनके मुताबिक आठ माह के भीतर इसका रिजल्ट आना शुरू हो जाता है. ट्रीटमेंट शुरू करने से पहले पानी की हर गुणवत्ता की जांच थर्ड पार्टी से कराई जाती है. फिर ट्रीटमेंट के बाद अलग-अलग स्टेज पर पानी की जांच कराई जाती है.
उन्होंने बताया कि आज उत्तर प्रदेश के तुलसीपुर स्थित सूर्यकुंड के अलावा लखनऊ और बनारस में इसका खूब इस्तेमाल किया जा रहा है. मध्यप्रदेश, दिल्ली, राजस्थान और ओड़िशा में भी ई-बॉल का इस्तेमाल हो रहा है. साउथ के भी कई राज्य ई-बॉल मंगवा रहे हैं. जी-20 समिट के दौरान खजुराहो के तालाब की सफाई के लिए भी इसका इस्तेमाल किया गया था. उन्होंने बताया कि छठ पूजा को ध्यान में रखकर कई प्रदेशों से लोग ई-बॉल के लिए उनसे संपर्क करते हैं. पूजा के नाम पर वह मुफ्त में ई-बॉल मुहैया कराते हैं.
डॉ प्रशांत शर्मा के मुताबिक एक एकड़ में मौजूद तालाब के ट्रीटमेंट के लिए अधिकतम 08 हजार रुपए के ई-बॉल की जरुरत होती है. उन्होंने बताया कि झारखंड के डाल्टनगंज, हजारीबाग और जमशेदपुर की कई छठघाट समितियों को उन्होंने ई-बॉल मुहैया कराया था. लेकिन आजतक झारखंड के नगर निकायों के स्तर पर किसी ने संपर्क नहीं किया.
क्या कर रहा है रांची नगर निगम?
रांची नगर निगम के आयुक्त अमित कुमार ने ईटीवी भारत को बताया कि यह कोई नई समस्या नहीं है. ज्यादा गर्मी पड़ने पर हर साल इस तालाब से दुर्गंध आती है. पिछले दिसंबर माह से नाले के पानी को डायवर्ट भी कर दिया गया है. पिछले कुछ माह में इस तालाब से भारी मात्रा में गाद भी निकाला गया. उसका इस्तेमाल पहाड़ी मंदिर को संरक्षित करने में किया गया है. उम्मीद थी कि तालाब के पानी की गुणवत्ता पर इसका असर होगा लेकिन कोई प्रभाव नहीं पड़ा. उन्होंने कहा कि कई वर्षों से इस तालाब में नाले के पानी गिरता रहा है. इस समस्या को लेकर निगम गंभीर है.
उन्होंने बताया कि भुवनेश्वर के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वाटर एक्वा कल्चर से भी बात हुई है. कई अन्य संस्थाओं से भी सलाह ली जा रही है. अब देखना है कि इस तालाब के कंडीशन पर कौन सा मॉडल कारगर होगा. राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से भी इस काम में मदद ली जा रही है. यह एक लॉन्ग टर्म प्लान है. अलग-अलग जगहों से रिपोर्ट आने के बाद ही इसका सॉलिड हल निकल पाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि बारिश शुरू होते ही पानी से दुर्गंध आने की समस्या खत्म हो जाती है. उन्होंने ईटीवी भारत की टीम से अंबिकापुर के साइंटिस्ट डॉ प्रशांत शर्मा का फोन नंबर मांगा ताकि उनके सुझाव पर भी गौर किया जा सके.
नगर निगम के आयुक्त के रुख से साफ है कि इस समस्या का जल्द निपटारा नहीं होने वाला है. फिलहाल, कागजी कार्रवाई शुरू हुई है. अब देखना है कि अंबिकापुर मॉडल वाले सुझाव पर विचार के लिए रांची नगर निगम कितना समय लेता है.
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