उत्तराखंड: मजदूर शब्द सुनते ही लोगों के जहन में गंदे और फटे कपड़े पहले व्यक्ति की तस्वीर बन जाती है. लेकिन देश के विकास के लिए मजदूर एक अहम भूमिका निभाते हैं. क्योंकि हर कार्य क्षेत्र मजदूरों की मेहनत पर निर्भर करता है. ऐसे में मजदूरों को सम्मान देने और उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाने को लेकर हर साल एक मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है, ताकि श्रमिकों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति मजबूत हो सके. साल 1889 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन की बैठक में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस को मनाने का निर्णय लिया गया था. जिसके करीब 34 साल बाद एक मई 1923 को चेन्नई में मजदूर दिवस मनाया गया था.
भारत में चेन्नई से शुरू हुआ मजदूर दिवस: भारत में पहली बार एक मई 1923 को चेन्नई में मजदूर दिवस मनाया गया था. इसके बाद लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान की अध्यक्षता में मजदूर दिवस मनाने की घोषणा की गई थी. इस फैसले का कई संगठन और सोशल पार्टी ने उस दौरान समर्थन किया था. जिसके बाद देशभर में एक मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. हर साल अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस को मनाने के लिए एक थीम निर्धारित की जाती है. इसी क्रम में साल 2024 में अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाने के लिए "जलवायु परिवर्तन के बीच कार्यस्थल सुरक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित करना" यानी "ensuring workplace safety and health amidst climate change" थीम निर्धारित की गई है.
श्रम विभाग करता है मजदूरों की समस्या का समाधान: देश में श्रमिकों पर हो रहे अत्याचार के तमाम मामले सामने आते रहे हैं. छोटी छोटी जगहों पर काम करने वाले मजदूर से लेकर बड़े बड़े ऑफिसों में काम करने वाले कर्मचारियों को कई बार दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इन दिक्कतों को देखते हुए और मजदूरों की समस्याओं के समाधान, उनके उत्थान को लेकर भारत सरकार का श्रम मंत्रालय काम कर रहा है. साथ ही हर राज्य में श्रम विभाग भी बनाए गए हैं. लेबर कमीशन भी है, जहां मजदूरों को हक दिलाने की कोशिश की जाती है. आज के इस दौर में छोटी से लेकर बड़ी कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारियों से जुड़े तमाम मामले लेबर कमीशन में पहुंच रहे हैं और इनकी तादात लगातार बढ़ती जा रही है.