नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूक्रेन के दौरे पर हैं और उन्होंने राष्ट्रपति जेलेंस्की से गर्मजोशी से गले मिलकर और हाथ मिलाकर मुलाकात की, जिस पर मॉस्को और अमेरिका की पैनी नजर है. यह एक ऐतिहासिक क्षण है, क्योंकि 30 साल के अंतराल में पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने यूक्रेन का दौरा किया है. यह यात्रा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह रूस-यूक्रेन संघर्ष के बीच हो रही है.
पीएम मोदी की यह यात्रा जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत के रणनीतिक संतुलन को दर्शाती है. यह यात्रा पीएम मोदी की मॉस्को यात्रा और वहां राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात के एक महीने बाद हो रही है. इस संबंध में ईटीवी भारत ने दोनों देशों के द्विपक्षीय पहलुओं पर भारत के पूर्व राजनायिक जितेंद्र त्रिपाठी से बात की. पीएम मोदी की यूक्रेन यात्रा को लेकर जितेंद्र त्रिपाठी ने कहा ," प्रधानमंत्री का यात्रा के दो डाइमेंशन हैं. पहला द्विपक्षीय और दूसरा बहुपक्षीय."
30 साल में भारतीय प्रधानमंत्री का दौरा
उन्होंने कहा, "द्विपक्षीय रूप से पिछले 30 साल में किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री ने यूक्रेन का दौरा नहीं किया है, हालांकि यूक्रेन भारत को वनस्पति तेल और कोयले को प्रमुख रूप से सप्लाई करता है. साथ ही भारत यूक्रेन से फार्मास्यूटिकल्स, खनिज और इस्पात निर्यात करता रहा है."
युद्ध के बीच कारोबार
युद्ध के समय में भी इस साल की पहली छमाही में भारत और यूक्रेन ने 1.07 बिलियन डॉलर का कारोबार किया, जिसमें से 0.66 बिलियन यूक्रेन ने भारत को निर्यात किया और 0.41 बिलियन भारत ने यूक्रेन को निर्यात किया. वहीं, रक्षा सहयोग भी भारत-यूक्रेन संबंधों का एक अनिवार्य हिस्सा है.
जितेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि यूक्रेन के पास एक गैस टरबाइन है, जिसे वह भारतीय नौसेना और लड़ाकू विमानों को सप्लाई करेगा. यह भी संभव है कि प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान भारत और यूक्रेन के बीच भारतीय युद्धपोतों को गैस टरबाइन की सप्लाई और प्रोडक्शन को लेकर किसी समझौते पर हस्ताक्षर किए जाएं.
भारत की विदेश नीति बातचीत पर निर्भर
उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों की ओर से कई बहसों और संघर्ष में मध्यस्थता करने के भारत के प्रस्तावों के बावजूद, प्रधानमंत्री मोदी मध्यस्थता करने के लिए यूक्रेन नहीं जा रहे हैं क्योंकि भारत की विदेश नीति हमेशा से बातचीत और कूटनीति पर आधारित रही है, क्योंकि युद्ध किसी भी समस्या को खत्म नहीं करता, बल्कि कई समस्याओं को जन्म देता है.
पूर्व राजनयिक ने कहा, "भारत मध्यस्थता नहीं करेगा, क्योंकि भारत की नीति है कि दोनों देशों के बीच किसी भी विवाद का समाधान बातचीत के माध्यम से किया जाना चाहिए. भारत ने कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के मध्यस्थता प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था. इसलिए, पीएम मोदी की यात्रा वार्ता के लिए अनुकूल माहौल तैयार करेगी, ताकि दोनों पक्ष एक साथ बैठकर चर्चा करने के लिए सहमत हों. वह निश्चित रूप से विवाद को सुलझाने में दोनों देशों के बीच बर्फ को पिघला सकते हैं."