नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है जिसमें तथाकथित 'चुनावी बॉण्ड घोटाले' की जांच विशेष जांच दल (SIT) द्वारा शीर्ष अदालत के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में कराने की मांग की गई है. अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत के निर्देशों पर सामने आए चुनावी बॉण्ड के आंकड़े दिखाते हैं कि इसका बड़ा हिस्सा कॉर्पोरेट्स द्वारा राजनीतिक दलों को अनुबंध, लाइसेंस और सरकारों या प्राधिकारियों से पट्टे प्राप्त करने के बदले प्रत्युपकार के रूप में दिया गया है.
इसके अलावा, आरोप लगाया गया कि कॉर्पोरेट्स द्वारा राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड अनुकूल नीतिगत बदलावों के लिए और प्रवर्तन निदेशालय (ED), आयकर या केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) जैसी एजेंसियों द्वारा कार्रवाई के करीब दिए गए थे. याचिका में दावा किया गया है कि कई कंपनियां जो इन एजेंसियों की जांच के दायरे में थीं, उन्होंने संभावित रूप से जांच के नतीजों को प्रभावित करने के लिए सत्ताधारी पार्टी को बड़ी रकम का दान दिया है. याचिका में कहा गया है, 'हालांकि ये स्पष्ट अदायगियां कई हजार करोड़ रुपये की हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने लाखों करोड़ रुपये के अनुबंधों और एजेंसियों द्वारा हजारों करोड़ रुपये की नियामक निष्क्रियता को प्रभावित किया है और ऐसा लगता है कि उन्होंने घटिया या खतरनाक दवाओं को बाजार में बेचने की अनुमति दी है, जिससे देश में लाखों लोगों का जीवन खतरे में पड़ गया है.'
इसमें कहा गया है कि चुनावी बॉण्ड पर खुलासा किए गए डेटा से संकेत मिलता है कि कम से कम 20 कंपनियों ने अपने निगमन के तीन साल के भीतर 100 करोड़ रुपये से अधिक के चुनावी बॉन्ड खरीदे और कुछ मामलों में, जब उन्होंने बॉन्ड खरीदे तो कंपनियां केवल कुछ महीने पुरानी थीं जिससे कंपनी अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है. एनजीओ कॉमन कॉज द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि डेटा से पता चला है कि विभिन्न घाटे में चल रही कंपनियां और शेल कंपनियां चुनावी बॉण्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को भारी रकम दान कर रही थीं और चुनावी बांड की शुरुआत के कारण फर्जी कंपनियों की संख्या में वृद्धि हुई, जिनका इस्तेमाल कॉरपोरेट घरानों द्वारा अवैध धन को सफेद करने के लिए किया गया.
इसके अलावा, इसमें कहा गया है कि चुनावी बॉण्ड घोटाले में 2जी घोटाले या कोयला घोटाले के विपरीत धन का लेन-देन किया गया है, जहां धन के लेन-देन का कोई सबूत नहीं होने के बावजूद अदालत की निगरानी में जांच के आदेश दिए गए थे. याचिका में कहा गया है, 'इस प्रकार, इस मामले की जांच में न केवल प्रत्येक मामले में पूरी साजिश को उजागर करने की आवश्यकता है, जिसमें कंपनी के अधिकारी, सरकार के अधिकारी और राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों के अलावा ईडी/आईटी और सीबीआई जैसी एजेंसियों के संबंधित अधिकारियों को भी जांच के दायरे में शामिल करने की जरूरत है, जो इस साजिश का हिस्सा बन गए प्रतीत होते हैं.' याचिका में शीर्ष अदालत द्वारा चुने गए और सुप्रीम कोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की देखरेख में काम करने वाले त्रुटिहीन जांच अधिकारियों की एसआईटी द्वारा जांच की मांग की गई है.
ये भी पढ़ें - 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला के 12 साल बाद: केंद्र ने संशोधन की मांग करते हुए SC का रुख किया