बाघमुंडी : पद्मश्री दुखु माझी श्मशान में शव जलाने के बाद बची हुई लकड़ियों से बाड़ बनाते थे. इसके बाद उन्होंने पुरुलिया जिले में अनगिनत पेड़ लगाए और उन्हें बाड़ से घेर दिया. तब से दुखु माझी का नाम बदलकर 'गछ बाबा' (पेड़ बाबा) कर दिया गया. बाद में उन्हें अपने काम के लिए पद्मश्री पुरस्कार मिला लेकिन पद्मश्री दुखु अपनी जिंदगी को बेहतर नहीं बना पाए.
पद्मश्री दुखु माझी आज भी टाइल और क्लैपबोर्ड से ढके एक घर में रहते हैं. दुखु माझी पुरुलिया के बाघमुंडी के सिंदरी के रहने वाले हैं. पेड़ लगाने जैसे महान कार्य के लिए भले ही उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया हो, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति कभी नहीं सुधरी. वर्तमान में दुखु माझी को पुरुलिया शहर सहित जिले के विभिन्न हिस्सों में सार्वजनिक और निजी समारोहों में अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है.
हाल ही में वन विभाग के अधिकारियों ने दुखु माझी से जिले में वृक्षारोपण अभियान में सलाहकार बनने का प्रस्ताव रखा. हाल ही में दुखु माझी की कहानी की सोशल मीडिया पर काफी चर्चा हुई. उसके बाद एक समूह ने मांग की है कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उन्हें घर दिया जाए. दुखु माझी ने खुद ही यह दावा किया है. उन्होंने अपने पास आए वन विभाग के अधिकारियों से भी गुहार लगाई.
'गाछ बाबा' दुखु माझी ने कहा, 'आप सब तो जानते ही हैं. मेरा घर बन जाए तो अच्छा है. नहीं तो मैं कहां रहूंगा? और नहीं तो मुझे कुछ नहीं कहना है. मैंने पेड़ लगाए हैं, आगे भी लगाऊंगा. वो पेड़ ही मेरा घर हैं. वो सबका घर हैं.' सरकारी दस्तावेज कुछ और ही कहते हैं. बताया जाता है कि वित्तीय वर्ष 2017-18 में उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर मिला था तो सवाल यह है कि जब उन्हें घर मिला तो वे कहां बनाए गए? नाम न बताने की शर्त पर एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि दुखु माझी के उपलब्ध आवास योजना के मकान में उनका बेटा निर्मल माझी रहता है.